क्या सरकार जीडीपी के आंकड़ों को बढ़ा चढ़ा कर दिखा रही है?

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भारत के एक पूर्व आर्थिक सलाहकार का मानना है कि भारत की आर्थिक वृद्धि को बढ़ाकर पेश किया जा रहा है। भारतीय अखबार के एक कॉलम में अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा कि उनके शोध से पता चलता है कि भारत ने विकास को कैसे मापा है और इसी के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सालाना 2.5% से अधिक नजर आ रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकारों के पैनल ने सुब्रमण्यन के निष्कर्षों को खारिज कर दिया है और कहा है कि उनके दावों को पोइंट-टू-पोइंट खारिज किया जाएगा।  हालाँकि सुब्रमण्यन की इन टिप्पणियों ने भारत के आर्थिक विकास के आंकड़ों की विश्वसनीयता के बारे में सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं।

2018 में यह सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था थी लेकिन कई प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने तर्क दिया कि नई कार्यप्रणाली में गलतियां हैं क्योंकि यह वास्तव में अर्थव्यवस्था कितनी है उसके बारे में नहीं बता पाती।

आइए पूरे विवाद को समझते हैं-

2015 में, भारत ने जीडीपी को मापने के तरीके को बदल दिया था। इनमें से सबसे बड़ा बदलाव था- जीडीपी को अब बुनियादी लागतों के बजाय बाजार की कीमतों का उपयोग करके मापा जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो जीडीपी की गणना पहले थोक मूल्यों के आधार पर की जाती थी जिस पर उत्पादकों को उनके उत्पाद मिलते थे। अब इसकी गणना उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान की गई बाजार की कीमतों के आधार पर की जाती है।

और तिमाही और वार्षिक जीडीपी वृद्धि के आंकड़ों का आकलन करने के लिए 2004-05 से 2011-12 तक आधार वर्ष को स्थानांतरित कर दिया गया था। तब से कई अर्थशास्त्री इस नई कार्यप्रणाली के बारे में जांच कर रही है।

सुब्रमण्यन ने एक तरह से इन्हीं बदलावों को टारगेट किया है और कहा कि वित्तीय वर्ष 2011-12 और 2016-17 के बीच आर्थिक विकास की दर को बढ़ाचढ़ा कर दिखाया गया।

आधिकारिक अनुमानों की मानें तो जीडीपी 7% बताई गई वहीं सुब्रमण्यन का मानना है कि वास्तव वृद्धि लगभग 4.5% की थी।  उनके के ये विचार उन्हीं के शोध पर आधारित हैं जिसे हार्वर्ड युनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय विकास केंद्र द्वारा प्रकाशित किया गया।

2015 से जब नया तरीका लागू हुआ है ऐसे आर्थिक विशेषज्ञों की संख्या बढ़ रही है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के तहत उच्च विकास दर के आंकड़ों पर सवाल उठा रहे हैं।  मोदी सरकार के तेजी से विकास के दावों के बावजूद बेरोजगारी ने 2017 और 2018 के बीच 45 साल के उच्च स्तर को छू लिया।

भारत के केंद्रीय बैंक के पूर्व प्रमुख और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने भी बेरोजगारी की उच्च दर को देखते हुए आंकड़ों पर संदेह व्यक्त किया।

सरकार का इस पर क्या कहना है?

सरकार ने आर्थिक विकास की गणना के लिए अपने तरीके का बचाव किया है। भारत के सांख्यिकी मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि भारत अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के योगदान को मापता है और देश के सकल घरेलू उत्पाद का अनुमान स्वीकृत तरीकों और कार्यप्रणाली पर आधारित है।

यह पहली बार नहीं है जब सरकार से डेटा कलेक्शन पर सवाल उठाया गया है। सांख्यिकी मंत्रालय के एक अध्ययन में पाया गया कि जून 2016 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में भारत की जीडीपी की गणना के लिए उपयोग किए जाने वाले डेटाबेस में 36% कंपनियों का पता ही नहीं लगाया जा सका या उन्हें गलत तरीके से वर्गीकृत किया गया था।

सरकार ने खुद माना है कि डेटा को कलेक्ट करने के तरीके में कमियां हैं। सुब्रमण्यन ने भारत के जीडीपी डेटा की जांच करने के लिए भारतीय और विदेशी नागरिकों की एक स्वतंत्र एक्पर्ट पैनल की गठन के बारे में कहा है।

यह भारत को कैसे प्रभावित करेगा?

यह मोदी की सरकार के लिए एक बड़ा झटका है जिसने हाल ही में लोकसभा चुनाव को दुबारा जीता है। मोदी सरकार पर पहले से ही आर्थिक विकास को पुनर्जीवित करने का दबाव है।

सरकार के ही आंकड़े स्वीकार करते हैं कि भारत अब सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था नहीं है। सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का टैग अब चीन के पास चला गया क्योंकि भारत में पिछले पांच सालों में जीडीपी सबसे धीमी गति से बढ़ी।

इससे न केवल भारत की प्रतिष्ठा को चोट पहुंच सकती है बल्कि यह भी उजागर हो सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में लागू की गई आर्थिक नीतियों ने वास्तव में अर्थव्यवस्था की गलत तस्वीर देकर कैसे विकास को बाधित किया है।

उदाहरण के लिए महंगाई से निपटने के लिए भारत में ब्याज दर ऊंची रखी गई थी लेकिन इसने व्यवसायों के लिए और अधिक रूकावट पैदा की। नतीजा यही हुआ कि बड़ी ब्याज दर पर लोगों को उधार लेना पड़ा।

खराब लोन संकट की अनदेखी ने बैंकों को प्रभावित किया जिससे धन का उपयोग करना मुश्किल हो गया। केंद्रीय बैंक ने इस साल तीन बार ब्याज दरों को कम किया।  नौकरियों की कमी और भारत का कृषि संकट ये दो बड़ी चुनौतियां हैं जिन्होंने आर्थिक विकास को कम किया है।

अर्थव्यवस्था में विश्वास बहाल करने के अलावा विशेषज्ञों का कहना है कि वास्तविक समय के आंकड़ों का पता लगाने के लिए सांख्यिकीय सिस्टम को फिर से विकसित करने की आवश्यकता है। सरकार ने कहा है कि डेटा एकत्र करने के तरीके को आधुनिक बनाने के लिए यह विश्व बैंक के साथ काम कर रही है।

मोदी ने समितियों की स्थापना की है जो निवेश को आकर्षित करने और रोजगार पैदा करने में मदद करेंगे। भारत की अर्थव्यवस्था पर उदासीनता को देखते हुए सुब्रमण्यन ने भी सरकार से उम्मीद की है कि मंदी से निपटने के लिए तेजी से काम किया जाए।

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