चुनाव : वोट के बाद लगाई जाने वाली अमिट स्याही कहां बनती है, जाने इसका रोचक इतिहास

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चुनावों के बीच जहां नेताओं को लेकर हर तरह की चर्चाएं हो रही है वहीं चुनावों से इतर कुछ दिलचस्प बातें जानने में भी लोग काफी रुचि रखते हैं। नेताओं की पढ़ाई-लिखाई, संपत्ति से लेकर उनके तरह-तरह के शौक चुनावों के समय हमें पता चलते हैं। आज हम ऐसी ही एक जानकारी आपके लिए लेकर आएं हैं जिसके बारे में आपने कभी गौर नहीं किया होगा।

जी हां, आपने कभी सोचा है वोट देकर आने के बाद आपकी उंगली पर जो स्याही लगाई जाती है उसका क्या इतिहास है? चलिए आज हम आपको बताते हैं। वोटिंग के बाद हर मतदाता की उंगली पर स्याही लगाई जाती है। आपने देखा होगा कि यह स्याही एक महीने तक जाती नहीं है।

56 साल पहले पहली बार हुआ था इस्तेमाल

मतदान के बाद उंगली पर लगाई जाने वाली स्याही मैसूर के महाराजा नालवाडी कृष्णराज वाडियार की कंपनी ने मैसूर लैक एंड पेंट्स लिमिटेड ने 1937 में बनाई थी। पहली बार इस स्याही को 1962 के चुनाव में काम में लिया गया। कर्नाटक सरकार के अधिकृत में आने के बाद से यही कंपनी देश में होने वाले हर चुनाव के लिए स्याही तैयार करती है।

केमिकल फॉर्मूले की वजह से मिटाई नहीं जाती है

इस स्याही को बनाने के लिए एक विशेष केमिकल फॉर्मूला काम में लिया जाता है जिसको नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी ऑफ इंडिया बनाती है। इसमें बैंगनी रंग का सिल्वर नाइट्रेट केमिकल होता है जो लाइट में आती ही रंग बदल लेता है और मिटता नहीं है।

चुनावों में कैसे पहुंचती है हमारी उंगली तक यह स्याही

देश के हर हिस्से में चुनाव के दौरान मुख्य निर्वाचन आयोग ही यह स्याही भेजता है। निर्वाचन आयोग इसे सभी मतदान अधिकारियों को भेजता है। हर मतदान दल के पीठासीन अधिकारी को दी जाने वाली इस अमिट स्याही की एक शीशी से 700-800 मतदाताओं की उंगली पर लगाई जाती है। चुनाव के बाद बची हुई स्याही वापस निर्वाचन कार्यालय में भेज दी जाती है जहां इसे नष्ट कर दिया जाता है।

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