अपने समय की दिग्गज कांग्रेस नेता व देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवम्बर, 1917 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में प्रसिद्ध नेहरू परिवार में हुआ था। उनका जन्म राजनीतिक तौर पर देश में एक समय सबसे प्रभावशाली समझे जाने वाले नेहरू परिवार में हुआ था। इंदिरा के पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने थे। उनकी माता का नाम कमला नेहरू था। इंदिरा गांधी को भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री होने का गौरव हासिल है। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की 105वीं जयंती के मौके पर जानिए उनके बारे में कुछ रोचक किस्से…
फिरोज खान से इंग्लैड में नियमित मिलती थी इंदिरा
इंदिरा को उनका ‘गांधी’ उपनाम फिरोज़ खान से विवाह के बाद मिला। इन्दिरा ने रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित विश्व भारती यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाई की थी। टैगोर ने ही इंदिरा को ‘प्रियदर्शिनी’ नाम दिया था। बाद में इंदिरा अपनी आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चली गईं। यहीं उनकी मुलाकात फिरोज खान से होती थी। हालांकि, फिरोज को इंदिरा इलाहाबाद से ही जानती थी। ब्रिटेन में रहते हुए ही दोनों के बीच प्रेम संबंध बने, इसके बाद फिरोज खान ने इंदिरा गांधी से 16 मार्च, 1942 को विवाह कर लिया। इसके बाद अपने नाम के पीछे दोनों गांधी लगाने लगे।
प्रियदर्शिनी का राजनीति में ऐसे हुआ आगमन
दरअसल, इंदिरा गांधी अपने पिता व देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल के दौरान उनकी निजी सहायक के रूप में काम करती थीं। उनके पिता की मृत्यु के बाद वर्ष 1964 में उनकी नियुक्ति एक राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई थी। इसके बाद लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में उन्हें सूचना एवं प्रसारण मत्री बनाया गया। शास्त्री की आकस्मिक मौत के बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाईं।
अंगरक्षकों ने ही इंदिरा को गोलियों से कर दिया था छलनी
31 अक्टूबर, 1984 को 37 साल पहले भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गईं। इस दिन इंदिरा की हत्या ने पूरे भारत को हिला कर रख दिया था। इंदिरा को उन्हीं के अंगरक्षकों ने गोलियों से छलनी कर दिया गया। उनके गार्ड्स ने ऐसा क्यों किया? इसके पीछे इंदिरा गांधी का ही एक फैसला था। वो फैसला जिसकी वजह से इंदिरा की हत्या हुईं।
उनकी सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मी सिख समुदाय से आते थे। सिख समुदाय का बड़ा तबका इंदिरा गांधी द्वारा चलवाए गए ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के कारण उनसे नाराज था। इंदिरा उस दिन पीटर उस्तीनोव नाम के एक्टर को इंटरव्यू देने जा रही थीं। वे दरवाजे से बाहर निकली ही थीं कि उनके दो गार्ड बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया। एक गार्ड ने इंदिरा गांधी के पेट में 3 गोलियां मारी, जिसके बाद वे गिर गईं। फिर अपनी गन से दूसरे गार्ड ने इंदिरा गांधी को 30 गोलियां मारीं।
हालांकि, इसके बाद दोनों सुरक्षाकर्मियों को दबोच लिया गया और इंदिरा को फौरन अस्पताल भी ले जाया गया। कुछ घंटों बाद ही इंदिरा गांधी की मौत हो गई। क्यों ये नौबत आईं? क्यों एक तबका इंदिरा से बेहद नाराज था?
स्वर्ण मंदिर में चलाया गया ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’
6 जून, 1984 को स्वर्ण मंदिर में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ को अंजाम दिया गया था। वर्ष 1984 में पंजाब के हालात हाथों से निकलते जा रहे थे। उस वक्त वहां के डीआईजी एस.एस. अटवाल की हत्या स्वर्ण मंदिर में कर दी गई थी, जिसके बाद माहौल बेकाबू हो चुका था। जरनैल सिंह भिंडरांवाले की अगुवाई वाले चरमपंथियों ने मानों जंग ही छेड़ रखी थी। वो एक खालिस्तानी चरमपंथी था, जो पंजाब में अपनी पैठ तेजी से बना रहा था।
हालात काबू में लेने के लिए सेना का लेना पड़ा सहारा
तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को स्वर्ण मंदिर में बिगड़ रहे माहौल को काबू में लेने के लिए सेना का सहारा लेना पड़ा था। हालांकि, गांधी ने ये फैसला काफी सोच-समझ कर ही लिया था। खालिस्तान समर्थक भिंडरावाले, ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन के प्रमुख अमरीक सिंह की रिहाई को लेकर अभियान चला रहा था। ऐसे में अकाली भी इनके समर्थन में आ गए थे। इन परिस्थितियों में इंदिरा को सेना का सहारा लेना पड़ा। 5 जून, 1984 को 20 स्पेशल कमांडो को स्वर्ण मंदिर में भीतर भेजा गया।
हालात बेकाबू होने का किसी को नहीं था अंदाजा
ऑपरेशन ब्लू स्टार कामयाब रहा, लेकिन कई लोगों की जानें गईं। ऑपरेशन की खुशी से ज्यादा लोगों के मारे जाने का गम था। सरकारी आंकड़ों की मानें तो ऑपरेशन में भारतीय सेना के 83 सैनिक मारे गए और 248 सैनिक घायल हुए। वहीं, 492 अन्य लोगों की मौत इस ऑपरेशन के दौरान हुईं। पंजाब इस दौरान एक बुरे वक्त से गुजर रहा था। खुद इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन खत्म होने के बाद कहा था, ‘हे भगवान, ये क्या हो गया? इन लोगों ने तो मुझे बताया था कि इतनी मौतें नहीं होंगी।’
ऑपरेशन ब्लू स्टार का ये हुआ असर
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर चलाए गए इस ऑपरेशन के बाद पूरे देश में तनाव का माहौल था। कांग्रेस और सिखों के बीच दूरियां बढ़ गई थीं। उसी दौरान पीएम इंदिरा के अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दीं। हत्या के बाद पूरे देश में सिख दंगे भड़क गए थे। इसमें अकेले दिल्ली में ही 3 हजार से अधिक सिखों का कत्ल कर दिया गया था। पूरे देश में 8000 से अधिक सिखों को मौत के घाट उतार दिया। इतिहास के वो घाव आज भी ताजा हैं।
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