सच में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेता और बड़े देश आतंकवाद के मुद्दे पर बंटे नजर आते हैं, लेकिन जब बात व्यापार की हो तो वे एक साथ नजर आते हैं। ऐसा क्यों? ऐसे ही है हमारे पड़ौसी देश चीन और पाकिस्तान। जब आतंक की बात आती है तो चीन भारत के खिलाफ पाक का साथ देता नजर आता है, वहीं यही चीन व्यापारिक मंचों पर भारत की ओर ताकता नजर आता है, ऐसा क्यों?
इसका बड़ा कारण है चीन की अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को भारत में बड़ा बाजार नजर आता है। वहीं आतंकवाद पर पाकिस्तान के साथ खड़े होकर भारत को आंतरिक और आर्थिक रूप से कमजोर किया जा सके। यह भारतीय जन मानस की कमी है जो चीनी प्रोडेक्ट्स को भारतीय बाजार में पनाह दिए हुए हैं। जो भारतीयों की उदारता का परिचायक है, वो चीनी माल को बिना भेदभाव के खरीदता है। अगर भारतीय अपनी जिद पर आ जाए, तो शायद चीन को भी अपना रूख बदलना पड़ जाए। क्यों भूल जाता है चीन कि भारत उसके लिए कितना बड़ा फायदेमंद बाजार है। चीन आज भले ही भारत के साथ आतंकवाद पर खड़ा न हो, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब चीन को भी इसी आतंकवाद से दो—दो हाथ करने होंगे।
चीनी कंपनियों के मोबाइलों की भारतीय बाजार में धूम
अभी चीनी कंपनियां भारत की ओर से खुशकिश्मत है कि किसी कंपनी का भारत में अंतर्राष्ट्रीय मुद्दें को लेकर बहिष्कार के बड़ा अभियान नहीं चला है। भारतीय स्मार्टफोन बाजार दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता स्मार्टफोन बाजारों में से एक है और चीनी कंपनियां यहां के बाजार में तेजी से पैठ बना रही है। भारतीय मोबाइल फोन बाजार में ये चीनी कंपनियां प्रमुख हैं— Xioami, Vivo, Oppo, OnePlus आदि।
बार—बार क्यों आतंक के गढ़ पाक का साथ देता चीन
क्यों चीन आतंक के गढ़ पाकिस्तान से इतनी हमदर्दी दिखा रहा है, जो मानव जाति का सबसे बड़ा शत्रु आतंकवाद को पनाह दे रहा है। क्या चीन को अपने सीपीईसी प्रोजेक्ट पर आतंकियों के हमले का डर है। शायद यही कारण हैं कि वह पाकिस्तान का हमेशा साथ देता है।
चीन का सीपीईसी प्रोजेक्ट और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में 1,100 मेगावाट का बन रहा कोहरा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को चीन बना रहा है। चीन इस बात से डरता है कि कहीं पाकिस्तान को अगर उसने खुश नहीं किया तो उसकी पनाह में पल रहे आतंकी मसूद अजहर और लश्कर-ए-तैयबा उसके प्रोजेक्ट पर हमला न कर दें जिससे उसे बड़ा नुकसान हो सकता है।
केवल दिखावा मात्र है बड़ें मंचों पर
अक्सर दुनिया के बड़े देशों को बड़े मंचों पर एकजुट होते देखा जाता है जो केवल दिखावा मात्र है, यह दिखावा इसलिए भी है कि भारत जैसे विकासशील देशों के पास बड़ा बाजार है और झूठी संवेदना दिखाकर भारत के बाजार में अपनी कंपनियों के बने उत्पादों को बेचा जा सके। जो साफ दिखता है।
जब दुनिया के देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति और आर्थिक विकास चाहते हैं तो फिर कई मुद्दों पर क्यों बंटे नजर आते हैं? शायद एक देश दूसरे देश की प्रगति को देखकर जलते हैं, जिसमें सबसे ज्यादा पड़ौसी देश। भारत ने आरंभ से ही ‘जियो और जीने दो’ की संस्कृति को स्वीकार कर सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार ही माना है। परंतु भारत को ही सबसे ज्यादा अपने पड़ौसी देशों से चुनौती मिल रही है। यही कारण है कि भारत आजादी के बाद से ही आतंकवाद का सामना करता आ रहा है।
मामल्लपुरम के वादे भूला चीन
पिछले साल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग (Xi Jinping) की मामल्लपुरम प्राचीन तटीय शहर के भव्य ‘शोर मंदिर’ परिसर में वार्ता हुई। जिसमें आतंकवाद और कट्टरपंथ की चुनौतियों का मिलकर सामना करने का संकल्प लिया। दोनों नेताओं ने निवेश के नए क्षेत्रों को पहचानने, व्यापार बढ़ाने और द्विपक्षीय व्यापार की अहमियत पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यापार एवं आर्थिक मामलों पर चर्चा की। दोनों नेताओं ने व्यापार घाटे और व्यापार में असंतुलन पर भी बातचीत की। पर आज भी चीन उन वादों को भूल पाकिस्तान के साथ खड़ा है।
पाकिस्तान ग्रे लिस्ट से हो सकता है बाहर
चीन कश्मीर समेत तमाम मुद्दों पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा रहता है, एक बार फिर उसके साथ दिखाई दे रहा है। इस सप्ताह चीन में एफएटीएफ की अहम बैठक की मेजबानी करेगा। उसने गुरुवार को अपने सहयोगी देश पाकिस्तान के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किए हैं। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि पाकिस्तान अगले महीने एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर हो सकता है। ऐसा चीन के सक्रिय समर्थन और कुछ पश्चिमी देशों के रणनीतिक समर्थन की वजह से हो सकता है।
चीन ने आतंकवादियों को मिलने वाली फंडिंग पर शिकंजा कसने के पाकिस्तान के कथित प्रयासों की प्रशंसा की है और इसे ‘बेहद प्रगतिवान’ करार देते हुए कहा कि इसके लिए विश्व समुदाय को पाकिस्तान का हौसला बढ़ाना चाहिए। पाकिस्तान की तरफ से आतंकी फंडिंग व मनी लान्ड्रिंग के खिलाफ उठाए गए कदमों का परीक्षण करने के लिए एफएटीएफ की बैठक इसी सप्ताह बीजिंग में होनी है।
पेरिस स्थित फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) का काम आतंकवाद को बढ़ावा देने के प्रयासों लिए होने वाली फंडिंग पर नजर रखना है। चीन फिलहाल संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के समर्थन वाली इस संस्था के अध्यक्ष पद पर है, जबकि एशिया पैसेफिक ज्वाइंट ग्रुप के लिए सह अध्यक्ष है।
बैठक में पाकिस्तान का पक्ष रखने के लिए वहां आर्थिक मामलों के मंत्री हम्माद अजहर एक प्रतिनिधिमंडल के साथ बीजिंग पहुंचे हुए हैं। बैठक से पहले बृहस्पतिवार को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग से मीडिया ने पाकिस्तान की कार्रवाई को लेकर सवाल किया। शुआंग ने कहा कि उन्हें फिलहाल चल रही कार्रवाई की अभी तक जानकारी नहीं है, लेकिन इस्लामाबाद के प्रयास प्रशंसा लायक हैं।