जी करता है जीते जी, मैं यूं ही गाता जाऊं
गर्दिश में थके हारों का, माथा सहलाता जाऊं
फिर इक दिन तुम दोहराओ. मैं गाऊं तुम सो जाओ, सुख सपनों में खो जाओ।
बॉलीवुड जगत में 50 और 60 के दशक में अपने गीतों के जरिए लोगों को ज़िंदगी का हर फलसफा समझाने और ज़िंदगी के हर रंग को दिखाने में माहिर रहे गीतकार शैलेन्द्र की 30 अगस्त को 97वीं जयंती है। शैलेन्द्र ने वो गीत लिखे, जिसमें इंसान अपनी जिंदगी के हर पहलू को जोड़ सकता है। मुंबई के जुहू बीच पर सुबह की सैर के दौरान गीत लिखने वाला ये गीतकार जीवन की हर छोटी से छोटी बात अपने गीतों के जरिए समझाता था। ऐसे में शैलेन्द्र साहब की जन्म जयंती के मौके पर जानते हैं उनके बारे में..
मुंबई में रेलवे की नौकरी से की शुरूआत
भारत के बंटवारे से पहले पश्चिमी पंजाब में रावलपिंडी शहर, जो आज के पाकिस्तान में बसा है वहां 30 अगस्त, 1923 को शंकरदास केसरीलाल उर्फ शैलेन्द्र का जन्म हुआ था। वो अपने सभी भाइयों में सबसे बड़े थे। बचपन में मॉं पार्वती देवी की मौत से वो गहरे सदमे में चले गए और इसके बाद उन्होंने ईश्वर को मानना तक बंद कर दिया था। वर्ष 1947 शैलेन्द्र काम की तलाश में मुंबई आए और यहां रेलवे में नौकरी करने लगे।
शैलेन्द्र सरकारी नौकरी करने लगे, लेकिन उनका मन कविताओं में ही लगा रहता था। वो ऑफिस के समय काम कम और कविताएं ज्यादा लिखा करते थे। उनके इस रवैये के कारण रेलवे के कई अधिकारी उनसे नाराज रहते थे। आखिरकार वो ऑफिस के साथ देश को आज़ाद कराने की लड़ाई में लग गए और अपनी कविताओं के जरिए लोगों में जोश भरने लगे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनकी एक कविता ‘जलता है पंजाब’ काफी पसंद की गई थीं।
अभिनेता राजकपूर के पसंदीदा गीतकार रहे थे
गीतकार शैलेन्द्र शुरुआत से ही आज़ादी से जुड़े गीत और कविताएं लिखा करते थे। एक कवि सम्मेलन में उनकी मुलाकात अभिनेता राजकपूर से हुई। राजकपूर को शैलेन्द्र का अंदाज काफी पसंद आया और उन्होंने उन्हें फिल्मों में लिखने का ऑफर दिया। गीतकार के रूप में शैलेन्द्र ने अपना पहला गाना राजकपूर की वर्ष 1949 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘बरसात’ के लिए ‘बरसात में तुमसे मिले हम सजन’ लिखा।
यह गाना लोगों को काफी पसंद आया और इस गाने के बाद शैलेन्द्र और राजकपूर की मानो जोड़ी बन गई।दोनों ने इसके बाद ‘आवारा’, ‘आग’, ‘श्री 420’, ‘चोरी चोरी’ ‘अनाड़ी’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘संगम’, ‘तीसरी कसम’, ‘अराउंड द वर्ल्ड’, ‘दीवाना’, ‘सपनों का सौदागर’ और ‘मेरा नाम जोकर’ जैसी फिल्मों में काम किया।
आखिरी समय में एक वादा अधूरा रह गया
प्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र ने फिल्मों में भी हाथ आजमाया था और वर्ष 1966 में ‘तीसरी कसम’ फिल्म बनाई, जो बॉक्स ऑफिस पर बड़ी असफल साबित हुई थी, जिसके बाद उन्हें गहरा सदमा लगा और उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। 13 दिसंबर, 1966 को अस्पताल जाने से पहले वो राजकपूर से मिले और उनकी आने वाली फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ का गीत ‘जीना यहां मरना यहां’ पूरा लिखने का वादा किया, लेकिन ये वादा सिर्फ एक वादा ही रह गया। अगले दिन 14 दिसंबर को शैलेन्द्र साहब का निधन हो गया था।
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