भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में पाकिस्तान और बांग्लादेश से पिछड़ा, जानें क्या है यह

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दुनिया भर में भर पेट खाना नहीं मिल पाने को लेकर जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) में भारत 102वें स्थान पर है। इस इंडेक्स में दुनिया के 117 देशों को शामिल किया गया है। इस सूची में भारत का प्रदर्शन लगातार नीचे गिर रहा है। वर्ष 2000 में भारत 113 देशों में जीएचआई रैंकिंग में 83वें स्थान पर था। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में निचले देशों में शामिल होने का अर्थ है कि भारत में लोगों को भर पेट भोजन नहीं मिल पा रहा हैं और बच्चे भी कुपोषित हैं।

वार्षिक वैश्विक सूचकांक, नेशनल और क्षेत्रीय स्तरों पर भूख को मापने और ट्रैक करने और भूख का मुकाबला करने में प्रगति और असफलताओं का आकलन करने को दर्शाता है। इस इंडेक्स में भारत दक्षिण एशियाई देशों की सूची में अपने पड़ोसी देश श्रीलंका (66), नेपाल (73), बांग्लादेश (88) और पाकिस्तान (94) से भी नीचे 102वें स्थान पर पहुंच गया है। इस रिपोर्ट में दक्षिण एशिया के दो देशों नेपाल और बांग्लादेश ने भूख से लड़ने के लिए उल्लेखनीय प्रयास किए हैं।

जीएचआई रैंकिंग में बेलारूस, यूक्रेन, तुर्की, क्यूबा और कुवैत टॉप देशों में शामिल है। यहां तक कि रवांडा और इथियोपिया जैसे देशों के जीएचआई रैंकों में सुधार हुए हैं।

वर्ष 2014 में पीएम मोदी के नेतृत्व बनी केंद्र सरकार के भूख से लड़ने के प्रयासों को ग्लोबल हंगर इंडेक्स रैंकिंग ने कमजोर सिद्ध कर दिया है। भारत इस रैंकिंग में लगातार नीचे जा रहा है। जहां भारत वर्ष 2014 में 77 देशों में 55वें पायदान पर था, तो वहीं वर्ष 2015 में 80वें, 2016 में 97वें और 2018 में 100वें पायदान पर काबिज रहा।

इन आधार पर बनती है ग्लोबल हंगर इंडेक्स

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में, दुनिया भर के देशों में लोगों के लिए खाने की वस्तुएं कितनी मात्रा में और किस गुणवत्ता में उपलब्ध है, को दर्शाया जाता है। यानि एक देश अपने निवासियों के लिए किस प्रकार का खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवा रहा है, उसकी गुणवत्ता और मात्रा कितनी है और उसमें कमियां क्या हैं?

जीएचआई चार पैमानों पर किसी देश को परखता है। जिसमें कुपोषण, चाइल्ड वेस्टिंग, बच्चों के विकास में रुकावट और शिशु मृत्यु दर। इस रिपोर्ट को हर वर्ष अक्टूबर माह में जारी किया जाता है।

जीएचआई की शुरुआत इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने की और वेल्ट हंगरलाइफ नामक एक जर्मन स्वयंसेवी संस्थान ने इसे सबसे पहले वर्ष 2006 में जारी की थी। इस बार से इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावित 2030 के एजेंडे से भी जोड़ा गया है। जिसमें ‘जीरो हंगर’ का लक्ष्य रखा गया है।

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