आज क्रिकेट की दुनिया में पिंक बॉल की एंट्री होने वाली है। गुरूवार को कोलकाता के ईडन गार्डन में भारत और बांग्लादेश के बीच पांच दिनों का डे—नाइट टेस्ट मैच शुरू होगा। ये टेस्ट मैच दो कारणों से सुर्खियों में बना हुआ है। पहला कारण है कि टीम इंडिया पहली बार डे—नाइट टेस्ट मैच खेलने जा रही है। वहीं दूसरी सबसे बड़ी वजह है पिंक बॉल यानि गुलाबी गेंद। आप सोच रहे होंगे गेंद तो आखिर गेंद हैं। मगर ये कोई आम गेंद नहीं है गुलाबी गेंद को लेकर कई दिनों से बवाल काटा जा रहा है। गुलाबी गेंद के मैदान में उतरने से पहले ही उसको लेकर हर एंगल से चर्चा हो चुकी है और खबरें छप रही हैं। दरअसल अभी तक टेस्ट मैच में लाल गेंद इस्तेमाल होती थी और वन डे मैच में सफेद गेंद। अब हम आपको बताते हैं कि आखिर इस पिंक बॉल की जरूरत क्यों पड गई?
Time to gear up for the Pink! #TeamIndia begin prep under lights in Indore for the Kolkata Test #INDvBAN pic.twitter.com/MVzkaVjdmL
— BCCI (@BCCI) November 17, 2019
2015 में पहली बार गुलाबी गेंद के साथ हुआ था मैच
पिंक बॉल का इतिहास कुछ ऐसा है कि गेंद बनाने वाली ऑस्ट्रेलिया की कंपनी कूकाबूरा ने इसे बनाया है। कई सालों तक पिंक बॉल को लेकर एक्सपेरीमेंट होते रहे। पहली पिंक बॉल करीब 10 साल पहले ही बन गई थी। मगर इसकी टेस्टिंग में 5 से 6 साल और लग गए। बताया जाता है कि 2015 में एडिलेड में ऑस्ट्रेलिया बनाम न्यूजीलैंड के बीच खेले गए पहले डे-नाइट टेस्ट में गुलाबी गेंद का पहली बार इस्तेमाल हुआ।
क्यों लाल को छोड़ चुना गया गुलाबी रंग?
क्रिकेट के किसी भी फॉर्मेट में इस्तेमाल होने वाली गेंद के रंगों में भी लॉजिक है। टेस्ट क्रिकेट सफेद जर्सी में खेला जाता है, तो इसलिए उसमें लाल रंग की गेंद का इस्तेमाल होता है, ताकि गेंद आसानी से नजर आए। उसी तरह वन-डे रंगीन कपड़ों में होता है, ऐसे में उसमें सफेद गेंद इस्तेमाल होती है। अब डे-नाइट टेस्ट में गुलाबी रंग की बॉल क्यों चाहिए, आप ये जरूर सोच रहे होंगे। बॉल बनाने वाली कंपनी के एक्सपट्र्स की माने तो पिंक कलर की गेंद सबसे ज्यादा कैमरा फ्रेंडली है। दरअसल मैच कवर कर रहे कैमरामैन ने अपनी परेशानी जाहिर करते हुए कहा था कि ऑरेंज कलर को कैमरा के लिए कैप्चर कर पाना काफी मुश्किल होता है, यह गेंद दिखाई नहीं देती। इसके बाद सबकी सहमति से पिंक कलर को चुना गया।
वन डे—नाइट मैच में इस्तेमाल होती है सफेद गेंद
अब आप सोच रहे होंगे कि जब वन डे—नाइट मैच में सफेद बॉल यूज होती है तो टेस्ट डे—नाइट में क्यों नहीं? एक वन डे मैच में दो सफेद बॉल इस्तेमाल होती है। सफेद बॉल का रंग जल्दी खराब हो जाता है। सफेद गेंद का रंग कुछ ओवर्स बाद भूरा पड़ने लगता है। वहीं टेस्ट मैच बहुत लंबा होता है। अगर ज्यादा ओवर तक सफेद बॉल को फेंका जाए तो ये बिल्कुल पिच जैसी भूरी हो जाती है। वहीं टेस्ट मैच में 80 ओवर बाद ही गेंद बदली जाती है।
आपको बता दें कि लाल रंग की बॉल को डाई किया जाता है, जबकि सफेद और गुलाबी रंग की बॉल पर पेंट किया जाता है। पिंक बॉल पर एक खास तरह के कैमिकल (लाख या lacquer) से कोटिंग की जाती है, ताकि रंग लंबे समय तक बना रहे।