भारत: करीब तीन माह में 500 नए ऑक्सीजन प्लांट तैयार होंगे, दूसरी लहर में नहीं मिलेगा फायदा

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देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की भारी किल्लत देखी जा रही है। हालांकि, सरकार ने इसको लेकर विदेश से ऑक्सीजन का आयात समेत कई अहम कदम उठाए हैं। इसी बीच अब केंद्र सरकार ने ऑक्सीजन की पूर्ति करने की भी तैयारी कर ली है। मोदी सरकार ने 500 प्रेशर स्विंग ऐडसोर्प्शन (PSA) इकाई या ऑन-साइट ऑक्सीजन जनरेटर इकाइयां विकसित करने का ऑर्डर दिया हैं। जानकारी के अनुसार, एक पीएसए प्लांट को तैयार होने में 75 लाख रुपए से अधिक की लागत आ रही है। हालांकि, कोरोना की इस दूसरी लहर में इन पीएसए प्लांट का फायदा नहीं मिलेगा, क्योंकि इन्हें तैयार होने में करीब तीन माह का समय लग सकता है।

टाटा एडवांस सिस्टम और ट्राइडेंट न्यूमेटिक्स को मिला टेंडर

केंद्र सरकार ने प्रेशर स्विंग ऐडसोर्प्शन इकाई लगाने का टेंडर टाटा एडवांस सिस्टम और ट्राइडेंट न्यूमेटिक्स को दिया है। पांच सौ में से 450 पीएसए तैयार करने का ऑर्डर टाटा समूह की कंपनी को मिला है, वहीं शेष प्लांट का निर्माण ट्राइडेंट न्यूमेटिक्स द्वारा किया जाएगा। आपको बता दें कि पीएसए प्लांट वायुमंडलीय वायु से ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं, जिसे बाद में शुद्ध किया जाता है। इसके बाद मरीजों को पाइप के जरिए इसकी आपूर्ति की जाती है। ऐसी ऑक्सीजन के लिए 99.5 प्रतिशत शुद्धता होना आवश्यक है। साधारण वायु में 21 प्रति ऑक्सीजन, 78 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.9 प्रतिशत आर्गन और 0.1 प्रतिशत अन्य गैसें शामिल होती हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने टेंडर को अंतिम रूप देने में देरी की

गौरतलब है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 150 जिला अस्पतालों के लिए अक्टूबर 2020 में पीएसए इकाई बनाने के लिए निविदाएं मंगाई थी, लेकिन इनमें से अधिकांश इकाइयां अब तक स्थापित नहीं की गई। वर्तमान निविदा के लिए तीन महीने की समय सीमा को बेंचमार्क के रूप में मानते हुए ये पीएसए अब परिचालन शुरू कर सकते थे, क्योंकि निविदाओं को नवंबर में दिया गया था। ये निविदाएं 21 अक्टूबर, 2020 को जारी की गई थी और बोलियां 11 नवंबर, 2020 को खोली गई थीं। 18 अप्रैल के स्वास्थ्य मंत्रालय के ट्वीट के मुताबिक, केंद्र सरकार ने 162 प्रेशर स्विंग ऐडसोर्प्शन संयंत्र स्वीकृत किए थे, लेकिन मंत्रालय ने टेंडर को अंतिम रूप देने में देरी की। इसके कारण आज देश में ऑक्सीजन की भारी किल्लत देखने को मिल रही है। हालांकि, इसकी पूर्ति के लिए जल मार्ग और वायु मार्ग के जरिए विदेशों से आयातित ऑक्सीजन लायी जा रही है।

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