एक ओर जहां भारत और चीन जैसे देशों में जहां जनसंख्या पर काबू पाने के लिए सरकार अनेक परिवार नियोजन की योजनाएं चला कर नियंत्रित कर रही हैं वहीं दुनिया का एक ऐसा भी देश है जहां कि सरकार अपने में जनसंख्या बढ़ाने के लिए इन देशों के विपरीत परिवार के सदस्यों को बढ़ाने के लिए कई सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है। जी हां वह है यूरोपीय देश हंगरी। इस देश की कम जनसंख्या यहां की सरकार के लिए चिंता का विषय बन गई है। जिससे निजात पाने के लिए कई योजनाएं बनाई जा रही हैं।
हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बन ने देश में बढ़ रहे विदेशी अप्रवासी लोगों पर निर्भरता घटाने के लिए जनसंख्या बढ़ाने का तरीका ढूंढ निकाला है। उन्होंने कहा कि जिन परिवारों में महिलाओं के चार या उससे ज्यादा बच्चे होंगे उन्हें जीवन भर आयकर से छूट के अलावा उनके कर्ज भी माफ किए जाएंगे।
हंगरी में दक्षिणपंथी राष्ट्रवादियों के बीच मुस्लिम देशों से आ रहे अप्रवासी नागरिकों का विरोध बढ़ रहा है। जबकि देश की जनसंख्या में हर साल 32 हजार की कमी आ रही है यहां यूरोपीय संघ के मुकाबले महिलाओं के बच्चों की औसत संख्या भी कम है।
पीएम ऑर्बन ने कहा कि पश्चिमी देश प्रवासियों को कम आबादी की समस्या के रूप में देखते हैं जबकि हंगरी के लोगों का सोच दूसरा है। उन्होंने कहा कि हमें संख्या की नहीं, नागरिकों की जरूरत है और इसके लिए हर खोए बच्चे के लिए एक बच्चे का आना जरूरी है ताकि संख्या ठीक बनी रहे।
प्रधानमंत्री ऑर्बन ने अपने भाषण में हंगरी जिंदाबाद और हंगरी के नागरिक जिंदाबाद के नारे के साथ किया। हालांकि इस घोषणा के दौरान बुडापेस्ट में पीएम की नीतियों का विरोध भी हुआ और उनके दफ्तर के आगे हजारों प्रदर्शनकारी इसे वापस लेने की मांग कर रहे थे।
अगर होंगे तीन बच्चे तो माफ होगा ऋण
हंगरी के प्रधानमंत्री ऑर्बन की घोषणा से साफ है कि अपने देश की जनसंख्या बढ़ाने के उपायों के रूप में युवा जोड़ों को लगभग 26 लाख रुपये का ब्याज मुक्त ऋण दिया जाएगा। घोषणा में पीएम ने कहा है कि ऐसे युवा जोड़ों के चार बच्चे होते ही यह कर्जा माफ हो जाएगा। प्रधानमंत्री ऑर्बन ने देश में जन्मदर बढ़ाने के लिए जब सात सूत्री योजना की घोषणा की तो उन्हें जबरदस्त प्रशंसा मिली।
आखिर ग्लोबलाइजेशन के दौर में ऐसा क्यों?
इसमें कोई नई बात नहीं है जहां आज ग्लोबलाइजेशन का दौर है वहीं हर देश अपनी संस्कृति और लोगों को बचाना चाहता है। इस घोषणा से ये बात साफ जाहिर होती है कि ग्लोबलाइजेशन के दौर में कई आर्थिक रूप से सम्पन्न देश भी अपनी कम आबादी होने के बाद भी विश्व के कई देशों द्वारा निष्कासित शरणार्थियों को अपनाने से कतराते हैं। उन्हें अपने देश में शरण देने की नहीं सोचते हैं बल्कि अपनी मूल जाति के लोगों को जनसंख्या बढ़ाने के लिए इस तरह प्रोत्साहित करते हैं।
जब विश्व का मकसद ग्लोबलाइजेशन का है तो विश्व के हर देश का फर्ज बनता है कि वह मानव हित के लिए विवश और लाचार जाति के लोगों को अपने देश में शरण दें। तभी जाकर ग्लोबलाइजेशन का सपना साकार हो सकता है। नहीं तो सिर्फ बाजारवाद का स्वार्थी नजारा ही देखने को मिलेगा।
क्या यूरोपीय देश केवल भारत जैसे दुनिया के देशों में बाजारवाद के कारण ही ग्लोबलाइजेशन की संकल्पना दोहराते हैं। हंगरी के प्रधानमंत्री की इस घोषणा से यह साफ नजर आता है।