पत्रकार प्रशांत कनौजिया को उत्तर प्रदेश पुलिस ने शनिवार को दिल्ली में गिरफ्तार किया। प्रशांत ने क्या किया था?
उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के बारे में सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया था। इस वीडियो क्लिप में एक महिला दावा कर रही थी कि वह आदित्यनाथ के साथ एक साल से वीडियो कॉल कर रही है और जानना चाहती है कि क्या योगी आदित्यनाथ उसके साथ जीवन बिताने के लिए तैयार हैं?
कुछ घंटों के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने न्यूज़ चैनल नेशन लाइव के प्रमुख और संपादक को भी इसी मामले में गिरफ्तार किया क्योंकि उन्होंने उस महिला के विचारों को प्रसारित किया था।
कनौजिया पर भारतीय दंड संहिता की धारा 500 (मानहानि), और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 (“धोखाधड़ी / बेईमानी से कंप्यूटर सिस्टम को नुकसान पहुंचाने”) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
किसी एक वीडियो पर इतनी कार्यवाही अधिकारियों द्वारा आदित्यनाथ की छवि को एक भिक्षु के रूप में सुरक्षित करने का प्रयास है जिसने जीवन भर ब्रह्मचर्य का संकल्प लिया है। बेशक अगर उस महिला का दावा गलत है तो आदित्यनाथ एक निजी नागरिक के रूप में अपनी क्षमता में कानूनी कार्यवाही कर सकते हैं लेकिन अपने व्यक्तित्व की रक्षा के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस को तैनात करना सरकारी तंत्र का दुरुपयोग है।
राज्य प्रशासन मुख्यमंत्री की निजी जनसंपर्क टीम के रूप में कार्य करने वाला नहीं होता है। सत्ता का दुरुपयोग यहीं खत्म नहीं होता है। हम मान लें कि महिला के दावे झूठे हैं फिर भी जिन धाराओं के साथ कनौजिया को जेल में बंद किया गया है वो गलत ही है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत मानहानि एक गैर-संज्ञेय अपराध है जिसका अर्थ है कि पुलिस इस पर सीधे कार्रवाई नहीं कर सकती है और एक वारंट की जरूरत होती है। आदित्यनाथ द्वारा एक मजिस्ट्रेट के साथ एक निजी शिकायत दर्ज करने के बाद ही कार्रवाई की जा सकती है।
इसके अलावा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 का आरोप बेतुका है। यह स्पष्ट है कि कनौजिया सिर्फ एक ट्वीट के साथ किसी के “कंप्यूटर सिस्टम को नुकसान पहुंचाने” में सफल नहीं हो सकते थे चाहे वह कितना भी गलत क्यों न हो।
भारत में पावर का इस तरह का दुरुपयोग नया नहीं है। देश में हमेशा फ्री स्पीच की समस्या रही है। प्रेस स्वतंत्रता मामले में भारत 180 देशों में 138 नंबर आता है और वो पाकिस्तान से सिर्फ एक स्थान आगे है। पुस्तक, फिल्में और सोशल मीडिया कंटेट पर अक्सर इस तरह के कानूनों का इस्तेमाल होता है।
फ्री स्पीच और भारतीय जनता पार्टी पर डिबेट कोई नई नहीं है और इतने भारी बहुमत से उनकी सरकार बनने के बाद चिंता और भी बढ़ जाती है उदाहरण के लिए मई में जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की छवि खराब करने के अपराध में एक भाजपा कार्यकर्ता को गिरफ्तार किया गया था तो सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तेजी से हस्तक्षेप किया।
पिछले साल ओडिशा सरकार को लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोपी और एक रक्षा विश्लेषक को बरी करना पड़ा क्योंकि सोशल मीडिया और प्रेस में उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ एक जोरदार अभियान छेड़ा गया था।
अब इन संस्थानों को सत्ता के दुरूपयोग को रोकने के लिए सरकार के खिलाफ जोर लगाना शुरू करना होगा जो पत्रकारों को केवल एक वीडियो शेयर करने के लिए भी गिरफ्तार कर रहे हैं।