“यदि आप अच्छे कानून चाहते हैं, तो जो आपके पास है उसे जलाएं और नए बनाएं।”
– वोल्टेयर
12 फरवरी को, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के कम से कम 14 छात्रों और कई ‘अज्ञात लोगों’ पर उत्तर प्रदेश में राजद्रोह (सेडिशन) का आरोप लगाया गया। उनका अपराध था – एक अंग्रेजी टीवी समाचार चैनल की क्रू पर कथित हमला। यदि आपको यह अजीब लगा तो इस पर विचार करें। इस महीने के पहले हफ्ते में मध्य प्रदेश में गौहत्या और पशु तस्करी के दो अलग-अलग मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून – रासुका (NSA) के तहत पांच लोगों को जेल डाल दिया गया था। गाय से संबंधित मामलों के लिए एनएसए लगना शायद तब समझ में आ जाता जब राज्य में भाजपा की सरकार थी। लेकिन मध्य प्रदेश में यह फैसला नई कांग्रेस की सरकार ने लिया कि गायों की हत्या और तस्करी भारत की “सुरक्षा को खतरा” है।
हालांकि राज्य के गृह मंत्री बाला बच्चन ने कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि संदिग्ध आदतन अपराधी थे, वहीं कांग्रेस के ही दिग्गज नेता चिदंबरम ने कहा कि मप्र सरकार द्वारा एनएसए का उपयोग करना “गलत” था। पाँचों आदमी अब अलग-अलग जेलों में बंद हैं। एएमयू मामला कई लोगों के लिए आश्चर्य की बात नहीं होगी क्योंकि उत्तर प्रदेश में राजद्रोह के लिए या एनएसए के तहत दर्ज मामलों की एक लंबी फेहरिस्त है जिसे योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया गया है।
मध्यप्रदेश और यूपी के मामलों को अगर देखें तो यह भारत के कानूनी सिस्टम की एक बड़ी अस्वस्थता दिखाते हैं जिसमें कठोर और पुराने कानूनों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है। यह भी यहां ध्यान रखा जाना चाहिए कि ऐसे मामलों में ज्यादातर लोग वो ही हैं जिन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों के खिलाफ असंतोष दिखाया था।
असम में सिटिजनशिप बिल का विरोध करने वाले लोगों पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया, मणिपुर में मुख्यमंत्री के खिलाफ कड़ा रूख अपनाने पर एक पत्रकार को दोषी ठहराया गया और महाराष्ट्र में वामपंथियों की गतिविधियों को रोकने के लिए Unlawful Activities (Prevention) Act (यूएपीए) लगाया गया।
गलत कानून लगाना नागरिक की मौलिक स्वतंत्रता पर हमला !
आम्बेडकर यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर अनुष्का सिंह का कहना है कि “इन सब के बीच कुछ ऐसा है जो इन सभी यानि राजद्रोह कानून, एनएसए यूएपीए मामलों में समानता दिखाता है। यह इन कानूनों की अंतर्निहित अलोकतांत्रिक प्रवृत्ति है, जो कहीं न कहीं एक नागरिक की मौलिक स्वतंत्रता पर हमला करती है जिसकी गारंटी हमारा संविधान हमें देता है”।
आगे वो कहती हैं एक स्तर पर, हर एक कानून जुर्म के तरीकों को निर्धारित करके लोगों को सजा देता है, लेकिन लोकतंत्र में सजा देने के प्रावधानों का अपना एक औचित्य है, औचित्य कानून और व्यवस्था और नागरिकों की व्यक्तिगत सुरक्षा से संबंधित कुछ भी हो सकता है। हाल के दिनों में ऐसे मामलों में लगाए गए यह कानून विशेष रूप से सरकार की अलोकतांत्रिक प्रवृत्ति का उदाहरण है।
राजद्रोह कानून सबसे बुरे दौर में
भारतीय दंड संहिता यानि इंडियन पैनल कोड (IPC) की धारा 124 A में लिखा गया कानून देशद्रोह (सेडिशन) इन दिनों सबसे ज्य़ादा दुरुपयोग होने वाले कानून के रूप में उभरा है। पूर्वोत्तर के दो राज्यों में यह कानून जब लगाया गया जहां साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता, एक पत्रकार और एक कार्यकर्ता सहित कम से कम 6 लोगों पर जनवरी से देशद्रोह का आरोप लगाया गया है। वे नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 का विरोध कर रहे थे, जिसका उद्देश्य तीन पड़ोसी देशों के गैर-मुस्लिमों के लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने की प्रक्रिया को आसान बनाना था।
देशद्रोह का आरोप लगने वालों में से एक असम के फायरब्रांड सामाजिक कार्यकर्ता अखिल गोगोई भी हैं, जो कभी अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का हिस्सा थे। गोगोई कहते हैं “हम उस समय से आंदोलन कर रहे हैं जब 1990 के दशक की शुरुआत में हितेश्वर सैकिया कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे।
हमने असम में 15 साल तक कांग्रेस शासन के खिलाफ भी आंदोलन किया था। मैंने यहां तक कहा था कि पूर्व सीएम तरुण गोगोई को ब्रह्मपुत्र में फेंक दिया जाना चाहिए। लेकिन मुझे अपनी लाइफ में इतना खतरा कभी महसूस नहीं हुआ…जितना लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले किसी भी व्यक्ति को भाजपा के शासन में होता है। मुझे कांग्रेस शासन के दौरान कम से कम 36 बार जेल में डाला गया लेकिन कभी भी देशद्रोह का आरोप नहीं लगाया गया”।
मणिपुर में, टीवी पत्रकार किशोरचंद्र वांग्केम दो महीने से अधिक समय से जेल में हैं, उन पर मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की आलोचना करने वाले फेसबुक वीडियो के लिए रासुका लगाया गया। उनकी पत्नी रंजीता एलंगबाम, सवाल करते हुए कहती हैं कि केवल मुख्यमंत्री या सरकार की आलोचना करने पर उनके पति राज्य के लिए “खतरा” कैसे हो सकते हैं। “यह सत्ता का पूर्ण दुरुपयोग है। सरकार लोगों की आवाज से डरी हुई है। वे नहीं चाहते कि कोई उनसे सवाल करे।
सरकार मेरे पति को एनएसए के तहत जेल में डालकर लोगों में डर की भावना पैदा करने की कोशिश कर रही है। मणिपुर के लोग कई कारणों से लंबे समय से परेशान है। अफस्पा के तहत मानव अधिकारों को छीन लिया गया है।
एएमयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष फैज़ुल हसन इस बारे में कहते हैं कि एएमयू मामले में, “सेडिशन का आरोप हास्यास्पद है। यह किसी भी तर्क से परे है। यहां तक कि एक रिक्शा-चालक भी आपको यह बता सकता है कि इसमें कोई तर्क नहीं है। इन दिनों, कोई भी आ सकता है और कह सकता है कि पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए हैं और पुलिस हमारे खिलाफ सेडिशन का केस बना देती है।”
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) का आधिकारिक डेटा 2014 से 2016 के आखिर तक देशद्रोह कानून के तहत लगभग 180 गिरफ्तारियां दिखाता है। अकेले असम में, 2016 के बाद से पुलिस ने कम से कम 245 देशद्रोह के मामले दर्ज किए हैं। इनमें से कई में, आरोपी “अज्ञात लोग” हैं और अधिकांश उग्रवादियों के खिलाफ हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट स्टिफ़्लिंग डिसेंट की लेखिका जयश्री बाजोरिया बताती हैं कि पुलिस ने 2014 और 2016 के बीच दर्ज किए 70 प्रतिशत से अधिक मामलों में चार्जशीट दाखिल नहीं की थी, जबकि केवल दो लोगों को दोषी ठहराया गया था।
कुछ ऐसे भी मामले हैं जिनको जानकर हंसी आएगी जिनका कोई भी मतलब नहीं है। पिछले साल, झारखंड पुलिस ने भाजपा सरकार की आलोचना करने वाले और कथित रूप से ग्रामीणों को “बाहरी लोगों” के लिए उकसाने के आरोप में 20 आदिवासी अधिकारों के कार्यकर्ताओं पर देशद्रोह का केस बनाया। इससे भी अजीब बिहार के रोहतास जिले का मामला है, जहाँ पांच बच्चों सहित आठ लोगों पर सेडिशन लगाया गया जब वो किसी गाने पर नाच रहे थे और गाने में “मुजाहिद” शब्द आ गया।
दिसंबर 2017 में, उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के काफिले को रोकने के बाद चार महिलाओं पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था। जनवरी 2018 में, यूपी सरकार ने कहा कि उन्होंने एक साल पहले पदभार संभालने के बाद से 160 लोगों के खिलाफ रासुका लगाया है। तब तो, सरकार ने कॉलेज में एडमिशन और नौकरियों के लिए टेस्ट पेपर चोरी करने के आरोपियों पर भी देशद्रोह लगाया था।
रासुका के तहत ही भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद को भी पकड़ा गया था। एक साल से अधिक समय तक जेल में रखने के बाद पिछले साल सितंबर में वो जेल से रिहा हुए। कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों का कहना है कि आज़ाद यूपी सरकार की “राजनीतिक प्रतिशोध” का शिकार हुए। उमर खालिद, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार और आठ अन्य के साथ देशद्रोह का मामला चला था जो हम सभी जानते ही हैं।
जेएनयू मामले में इन छात्रों पर आरोप था कि फरवरी 2016 में कैंपस में भारत विरोधी नारे लगाए गए। मामले में चार्जशीट तीन साल बाद दायर की गई। इसके बाद उमर खालिद ने कहा कि “यह सरकार अपने विपरीत किसी भी राय को बर्दाश्त नहीं करती है। हिंदुत्व की विचारधारा को राष्ट्रवादी विचारधारा बनाने की कोशिश है। जो कोई भी हिंदुत्व के एजेंडे में फिट नहीं होता है, उसे राष्ट्र-विरोधी करार दिया जाता है और देशद्रोह का आरोप लगाया जाता है।”
देशद्रोह कानून के ज्यादातर मामले जांच के बाद गलत साबित होते हैं। तमिलनाडु में, एक मजिस्ट्रेट अदालत ने पुलिस को एक पत्रकार आर. गोपाल के खिलाफ देशद्रोह के आरोपों को हटाने के लिए कहा जिन्होंने राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित पर कई अपमानजनक रिपोर्ट प्रकाशित की थीं।
2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने धारा 124 A के अंधाधुंध उपयोग के खिलाफ 1962 के केदार नाथ सिंह मामले में (जो कि स्वतंत्र भारत में देशद्रोह का पहला मुकदमा था) इस कानून को लागू करने की गुंजाइश को सीमित कर दिया था और कहा था कि सरकार की आलोचना करने वाले केवल देशद्रोही नहीं हो सकते हैं।
भारत के विधि आयोग ने पिछले साल एक एडवाइजरी जारी की जिसमें यह संकेत दिए गए थे कि देशद्रोह कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है और इसे फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता है।
कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए यह कानून आवश्यक है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ वकील जगदीप धनखड़, जो भाजपा के कानूनी मामलों के विभाग के प्रमुख हैं, का कहना है कि देशद्रोह “निर्विवाद रूप से राष्ट्र-विरोधी” है और इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जा सकता है। लेकिन विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं हैं वे कहते हैं कि कुछ कानून बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं और सिर्फ एक बुरे उद्देश्य को पूरा करने के लिए काम में लिए जा रहे हैं।
जम्मू और कश्मीर और पूर्वोत्तर में कार्यकर्ता और वकील AFSPA को एक बुरे कानून के रूप में प्राथमिक उदाहरण के रूप में रखते हैं क्योंकि यह आतंकवादी गतिविधियों के दौरान सैनिकों को अतिरिक्त शक्तियां देता है, जिनमें दुरुपयोग की गुंजाइश रहती है। “यह सशस्त्र बलों की नागरिकों के बीच एक गलत धारणा बनाता है। ऐसी स्थितियों में महिलाओं के यौन उत्पीड़न और बलात्कार मामले भी सामने आते हैं। किताब द मदर्स ऑफ मणिपुर की लेखिका टेरेसा रहमान कहती है विरोध और असंतोष से निपटने के लिए हमें अधिक मानवीय कानूनों की आवश्यकता है ”। वहीं सेना का कहना है कि उग्रवाद प्रभावित इलाकों में इस कानून की जरूरत है।
(साभार :- यह आउटलुक मैगज़ीन की स्टोरी NSA For Cattle Smuggling, Sedition For Dancing: How Laws Are Being Abused by Govts का अनुवादित वर्जन है।)