हाल में नवगठित नई केन्द्र सरकार के गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर राज्य में विधानसभा सीटों के बंटवारे में असंतुलन को दूर करने के लिए नए परिसीमन द्वारा दूर किया जा सकता है। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा में सीटों का बंटवारा क्षेत्रफल की दृष्टि से किया गया है। अगर ऐसा होता है तो यहां विधानसभा की कई सीटें बढ़ सकती हैं।
परिसीमन की जम्मू में लंबे समय से मांग चल रही है। यहां की पार्टियां कश्मीर में अधिक सीटें होने से नाराज हैं। इसका कारण यह है कि कश्मीर में 346 वर्ग किमी क्षेत्रफल पर एक विधानसभा है, वहीं जम्मू में 710 वर्ग किलोमीटर पर एक। जम्मू संभाग में क्षेत्रफल तथा मतदाता के आधार पर 15 सीटें तक बढ़ सकती हैं।
बता दें जम्मू-कश्मीर राज्य में अंतिम परिसीमन का गठन वर्ष 1995 में किया गया था, जब राज्यपाल जगमोहन के आदेश पर 87 सीटों का गठन किया गया। यहां की विधानसभा में कुल 111 सीटों पर प्रतिनिधि चुने जाते हैं, इन सीटों में से भी 24 सीटों को पाक अधिकृत कश्मीर के लिए रिक्त रखा गया है। शेष 87 सीटों पर चुनाव होता है।
परिसीमन आयोग
परिसीमन आयोग को भारतीय सीमा आयोग भी कहा जाता है। इसका गठन संविधान के अनुच्छेद 82 के अंतर्गत सरकार हर एक दशक यानि हर दस साल बाद करती है।
परिसीमन का तात्पर्य है किसी देश या प्रांत में निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का पुनर्निर्धारण करना।
परिसीमन आयोग का गठन भारत सरकार द्वारा परिसीमन अधिनियम के अन्तर्गत किया जाता है। इस सम्बन्ध में अधिसूचना भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी की जाती है।
परिसीमन आयोग का अध्यक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त होता है। वर्तमान में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा है, साथ ही राज्य के चुनाव आयुक्त इसके सदस्य होते हैं।
भारत में अब तक वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोग गठित किये जा चुके हैं।
परिसीमन आयोग के प्रमुख कार्य
यह आयोग हाल ही की जनसंख्या के आधार पर विभिन्न विधानसभा व लोकसभा क्षेत्रों का निर्धारण करता है।
इस आयोग द्वारा सीटों के निर्धारण के बाद किसी भी राज्य से प्रतिनिधियों की संख्या नहीं बदलती है, परंतु जनसंख्या के हिसाब से अनुसूचित जाति जनजाति सीटों की संख्या में बदलाव किया जा सकता है।