‘बुरा ना मानो.. होली है’ कहकर रंग लगाने वालों ज़रा कानून भी जान लो, वरना..

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हमारा भारत मुल्क त्योहारों का देश है, जहां हर त्योहार की एक अलग रीत एक अलग पहचान है। कुछ इसी तरह होली की पहचान होती है रंगों से। होली के दिन लोग एक दूसरे को रंगों से भर देते हैं। खूब मौज मस्ती भी करते हैं। लेकिन ये मौज मस्ती सीमा से बाहर महंगी पड़ जाती है, जिसमें जेल तक की हवा खानी पड़ सकती है। बुरा ना मानो होली कहकर अगर किसी अनजान औरत को रंग लगाने की सोच रहे हैं तो संभल जाना बेहतर है, क्योंकि शिकायत होने पर उक्त व्यक्ति को जेल में सड़ना पड़ सकता है। भारतीय दंड संहिता यानि IPC की धारा में महिलाओं के लिए विशेष सुरक्षा का प्रावधान है।

इसलिए बिना किसी औरत की सहमति के जोर जबरदस्ती करके रंग लगाना या छेड़ना किसी के लिए महंगा भी पड़ सकता है। महिला ही नहीं बच्चों के साथ अगर ऐसा पाया जाता है तो इस केस में सख्त कार्यवाही की जाती है। ऐसी घटना में आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 354 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है।

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भारतीय दंड संहिता की धारा 354 क्या है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 354 को उन मामलों में लगाया जाता है, जहां औरत की मर्यादा और मान सम्मान को नुकसान पहुंचाया जाता है या उनके साथ जोर जबरदस्ती की जाती है। ग़लत नीयत या ग़लत तरीके से छूना इसी में आता है। महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करना भी आईपीसी की धारा 354 लागू होती है। इसके तहत अगर किसी को सजा होती है तो उसे दो साल की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

पॉक्सो एक्ट में होती है तुरंत गिरफ्तारी

बच्चों के साथ छेड़छाड़ या जबरदस्ती के मामले पॉक्सो एक्ट में आते हैं। यह अंग्रेजी का शब्द है, जिसकी फुल फॉर्म होती है प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट, 2012। इस एक्ट में नाबालिगों के साथ होने वाले उत्पीड़नों या छेड़छाड़ के मामलों को कवर किया जाता है। यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है और दोषियों का सज़ा दी जाती है। इस एक्ट के अंदर जब किसी के खिलाफ पुलिस कार्यवाही की जाती है तो आरोपी को बिना किसी देरी के तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता है। इसमें किसी भी तरह की जमानत का भी प्रावधान नहीं है।

1862 में शुरू हुई थी भारतीय दण्ड संहिता

भारतीय दण्ड संहिता यानि Indian Penal Code, IPC भारत में अपराधियों को सज़ा देने के लिए है। ख़ास बात है कि यह भारत की सेना पर लागू नहीं होती है। इसके इतिहास की बात करें तो भारतीय दण्ड संहिता सन् 1862 में ब्रिटिश काल के दौरान शुरू हुई थी। इसके बाद समय-समय पर इसमें संशोधन और बदलाव भी होते आए हैं। आज़ादी के बाद इसमें सबसे बड़ा बदलाव किया गया था। इसके बारे में दिलचस्प यह है कि इसे पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों ने भी अपना रखा है।

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