मुश्किलों में हमेशा परिवार ही काम आता है आज इस मिसाल को देश के रसूखदार अंबानी परिवार के छोटे उस्ताद अनिल अंबानी से बेहतर कौन समझा सकता है। जी हां, आज कार्पोरेट जगत की हर गली में अंबानी परिवार के दो भाई मुकेश और अनिल की चर्चा है।
जिन अरबपति मुकेश अंबानी के बारे में यह सुना जाता है कि वो अपनी जेब से एक रूपया भी बिना फायदे के नहीं निकालते हैं, आज उन्होंने सब गिले शिकवे भूल कर 500 करोड़ रूपये अपने भाई को बचाने के लिए लगा दिए।
मुकेश अंबानी की अपने छोटे भाई के लिए की गई इस बेशकीमती मदद से आज अनिल अंबानी खुली हवा में सांस ले रहे हैं। सबसे पहले आपको मामले की भूमिका से अवगत करवाते हैं फिर चलेंगे कलह की जड़ों में जिसकी वजह से एक समय में दोनों भाइयों के बीच दीवारें खींच गई थी।
क्यों की मुकेश ने अनिल अंबानी की मदद ?
दरअसल अनिल अंबानी पर एरिक्सन कंपनी से 458.77 करोड़ रुपये बकाया मामले में केस चल रहा है जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने ये पैसे चुकाने के लिए उन्हें 19 मार्च का समय दिया था। अनिल अंबानी ने इतने दिन पैसे चुकाने का कोई प्लान नहीं बताया था। अब भाई मुकेश अंबानी की मदद से अनिल ने एक दिन पहले ही यह पैसे चुका दिए और अपने भाई और भाभी का शुक्रिया अदा किया।
अनिल ने आभार जताते हुए परिवार के मजबूत मूल्यों और महत्व की बातें भी की जिससे साफ जाहिर होता है कि अब अनिल और मुकेश का परिवार पुराने झगड़ों को भुलाकर आगे बढ़ चुका है, ऐसे में अब हर किसी की यह जानने की उत्सुकता हुई होगी कि इन दोनों के बीच झगड़ा किस बात का था, तो आइए हम बताते हैं।
- एरिक्सन कंपनी वाला मामला क्या था ये समझने के लिए नीचे दी हुई लिंक पर जाओ-
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2005 में अलग हुए थे दोनों भाई
रिलायंस इन्फोकॉम लिमिटेड जो आज रिलायंस कम्युनिकेशन (RCom) है इसी कंपनी की वजह से दोनों भाइयों के बीच तकरार पैदा हुई थी। 2005 में आई एक खबर से कॉर्पोरेट जगत में भूचाल आ गया कि रिलायंस ग्रुप का बंटवारा होगा। 1 लाख करोड़ रुपये की वैल्यू वाले रिलायंस ग्रुप का टूटना कोई साधारण बात नहीं थी। आखिरकार बंटवारा हुआ और दोनों भाइयों के हिस्से में 50-50 हजार करोड़ रुपये की कंपनी वैल्यू आई।
24 साल की उम्र में दोनों भाई ने शुरु किया रिलायंस में सफर
रिलायंस को जन्म देने वाले धीरूभाई अंबानी ने अपने समय में महज 15 हजार रुपये लगाकर एक टेक्सटाइल कंपनी डाली जिसका नाम रिलायंस रखा। 24 साल की उम्र में मुकेश पातालगंगा पेट्रोकेमिकल प्लांट लगाने के समय स्टेनफर्ड यूनिवर्सिटी में अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर आ गए और रिलायंस से जुड़े इसके बाद 1981 में 24 साल की ही उम्र में अमेरिका से एमबीए पूरी कर अनिल लौटे और रिलायंस के साथ जुड़े।
धीरूभाई की मौत के बाद विवाद हुआ जो सड़क तक आ गया
1986 में जब धीरूभाई को पहला हार्ट अटैक आया उसके बाद उन्होंने कंपनी और सार्वजनिक जीवन छोड़ दिया। अब कंपनी का पूरा दारोमदार मुकेश और अनिल अंबानी पर ही था। मुकेश ने फिर रिलायंस इन्फोकॉम लिमिटेड की नींव रखी।
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लेकिन कुछ सालों बाद 6 जुलाई 2002 को धीरूभाई अंबानी का निधन हो गया जिसके बाद कयास लगाए जाने लगे कि अब दोनों भाइयों के बीच घमासान होने वाला है। बिना किसी वसीयत के जाने वाले धीरूभाई के जाते ही दोनों के बीच कलह बढ़ने लगी।
दोनों भाइयों के काम करने का तरीक एकदम अलग
मुकेश अंबानी के बारे में कहा जाता है कि वो किसी भी काम या डील को पूरी प्लानिंग के साथ करने में विश्वास रखते हैं लेकिन अनिल अंबानी के लिए कहते हैं कि वे बहुत लग्जरी लाइफ जीने में विश्वास रखते हैं और सभी तरह के आधुनिक तौर-तरीके पसंद हैं।
धीरूभाई अंबानी के बाद दोनों भाई साथ में काम तो करते थे लेकिन दूरियां हर रोज बढ़ती जा रही थीं। 27 जुलाई 2004 के दिन जब आरआईएल (RIL) की बोर्ड मीटिंग चल रही थी तब सभी की सहमति से रिलायंस ग्रुप के सारे आर्थिक निर्णय लेने की अथॉरिटी मुकेश अंबानी को दे दी गई। इस बात से अनिल काफी नाराज हो गए और मीटिंग छोड़कर बाहर आ गए।
इसके बाद उन्होंने इस फैसले के विरोध में बोर्ड को एक लैटर भी लिखा। ऐसे टकरावों का सिलसिला चल पड़ा और आखिरकार 2005 में रिलायंस के टूटने का समय आ गया। रिलायंस के बंटवारे के बाद पेट्रोकेमिकल, ऑयल, गैस रिफाइनरी और टैक्सटाइल मुकेश अंबानी के हिस्से गई तो अनिल अंबानी को टेलीकॉम, पावर, एन्टरटेनमेंट और फायनेंशियल मिले।