बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था बिगड़ चुकी है और वहां की सरकार भी सो रही है

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बिहार फिलहाल एक बड़ी मुसीबत से गुजर रहा है। खासकर जिला मुजफ्फरपुर जहां बीते कुछ हफ्तों में तेजी से फैल रहे एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम की वजह से 114 बच्चों की मौत हो गई है और ये कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। ये तो सरकारी आंकड़े हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 400 से भी ज्यादा बच्चे अस्पताल में भर्ती किए गए थे ताकि उनका इलाज किया जा सके।

बहरहाल हो सकता है सरकार के इन आंकड़ों में उन बच्चों की गिनती ना हुई हो जिन्होंने अस्पताल पहुंचने से पहले से दम तोड़ दिया हो। कई ऐसे माता-पिता भी वहां हैं जो इलाज के अभाव में एक से दूसरे अस्पताल में घूम रहे हैं। ऐसे में ये आंकड़े काफी बढ़े हुए हो सकते हैं।

यह संकट 2012 से 2014 के गर्मियों के महीनों के जैसा ही है। जब तीव्र एन्सेफलाइटिस के प्रकोप का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि पीड़ित कुपोषित बच्चे थे जिन्हें लीची के साथ जहरीला रिएक्शन हुआ। 2012-2014 में प्रकोप की जांच करने वाले वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के वायरोलॉजिस्ट टी जैकब जॉन ने पाया कि ज्यादातर बच्चे लीची बागों में काम करने वाले मजदूरों के परिवारों से थे।

दिन में लीची खाने के बाद बच्चे पौष्टिक भोजन के बिना भूखे पेट सो जाते ते। रिसर्चर्स का कहना है कि लीची फल के जहरीले पदार्थ और बच्चों के कुपोषण के संयोजन से हाइपोग्लाइकेमिक एन्सेफैलोपैथी नामक एक स्थिति पैदा हुई, जो दिमाग को बुरी तरह प्रभावित करती है।

2012-2014 के बीच इस कहर को देखते हुए बिहार सरकार आने वाली इस चुनौती के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है। बच्चों की मौत के आंकड़े जो बढ़ते जा रहे हैं उससे प्रशासन और सरकार की नाकामी का पता चलता है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद को विकास पुरुष का दर्जा देते आए हैं लेकिन उन्हें पटना से केवल दो घंटे की ड्राइव पर मुजफ्फरपुर आने में भी कई हफ्ते लग गए। जब बुधवार को उनको वक्त मिला तो वे अस्पताल पहुंचे लेकिन नाराज अभिभावकों ने मुख्यमंत्री का विरोध करना शुरू कर दिया।

सत्ताधारी नेताओं की इस मामले को लेकर उदासीनता हफ्ते भर से चली आ रही है। रविवार की बात है बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। प्रेस कॉफ्रेन्स के दौरान भारत-पाक मैच का स्कोर पूछकर स्वास्थ्य मंत्री ने सभी को चौंका दिया। इसी बात से मामले में उनकी गंभीरता का पता लगाया जा सकता है।

सिर्फ इन्सेफेलाइटिस के मामले नहीं हैं जो बिहार में स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा रहे हैं। राज्य गर्मी की लहरों से भी जूझ रहा है। इन गर्म लहरों की वजह से राज्य में तीन दिनों में 90 लोगों की जान चली गई। बिहार सरकार यह दावा करके खुद को दोषमुक्त नहीं कर सकती कि देश भर में इसी तरह की हीट स्ट्रोक से मौतें हुई हैं। सरकार गर्मी के प्रकोप से लोगों को अवगत कराने में बुरी तरह फैल हुई है।

मौतों का बढ़ते जाना बिहार में स्वास्थ्य और कल्याण की स्थिति पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। एक बात स्पष्ट है कि राजनीतिक लापरवाही से प्राकृतिक परिस्थितियों का विस्तार हुआ है। सरकार द्वारा जो आंकड़े जारी किए गए हैं उनमें से 80 फीसदी लड़कियां हैं ये भी हैरान करने वाला है। बच्चे कुपोषण के शिकार थे। कहीं ना कहीं पोषण में लैंगिक असमानता को यहां देखा जा सकता है कि किस कदर बच्चे पोषित खाने से दूर है इसमें लड़कियों की स्थिति और भी ज्यादा खराब है।

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