गुरु दत्त ने बंगाली संस्कृति से प्रभावित होकर बदल लिया था अपना नाम

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हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता, निर्देशक और निर्माता गुरु दत्त की 9 जुलाई को 97वीं जयंती है। उन्होंने 50 और 60 के दशक में ‘प्यासा, कागज के फूल, साहिब बीबी और गुलाम एवं चौदहवीं का चांद’ जैसी कई उत्कृष्ट फिल्में बनाईं। इनमें से ‘प्यासा और कागज के फूल’ फिल्म को टाइम पत्रिका ने 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में शामिल किया था। वर्ष 2010 में उन्हें सीएनएन की सर्वश्रेष्ठ 25 एशियाई एक्टर्स की सूची में शामिल किया गया। ऐसे में इस खास मौके पर जानते हैं उनके जीवन के बारे में…

गुरु दत्त का प्रारंभिक जीवन

गुरु दत्त का जन्म 9 जुलाई, 1925 को बेंगलुरू में शिवशंकर राव पादुकोणे व वसन्ती पादुकोणे के घर में हुआ था। उनके पिता पहले एक स्कूल के हेडमास्टर थे, जो बाद में एक बैंक के मुलाजिम हो गये। माँ एक साधारण गृहिणीं थीं जो बाद में एक स्कूल में अध्यापिका बन गयीं। उनकी मां घर पर ट्यूशन पढ़ाती थी और लघुकथाएं लिखती थी, साथ ही वह बंगाली उपन्यासों का कन्नड़ भाषा में अनुवाद भी करती थीं। गुरु दत्त का बचपन कोलकाता के भवानीपुर में गुजरा। यहां की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक कला का प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा। उन पर बंगाली संस्कृति की इतनी गहरी छाप पड़ी कि उन्होंने बचपन का नाम वसन्त कुमार शिवशंकर पादुकोणे से बदलकर गुरु दत्त रख लिया।

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फिल्मी कॅरियर

गुरुदत्त ने कुछ समय कोलकाता में लीवर ब्रदर्स फैक्ट्री में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी की, किंतु उन्होंने वहां से जल्द इस्तीफा दे दिया और वर्ष 1944 में अपने माता-पिता के पास मुंबई आए। उनके चाचा ने उन्हें पुणे में प्रभात फ़िल्म कम्पनी के पास तीन साल के अनुबन्ध पर काम करने भेज दिया। यहीं पर फिल्म निर्माता वी.शान्ताराम के स्टूडियो कला मन्दिर पर उनकी मुलाकात एक्टर रहमान और देव आनन्द से हुई जिनसे आगे अच्छी दोस्ती हो गई।

इसी वर्ष उन्हें पुणे में चाँद नामक फ़िल्म में श्रीकृष्ण की एक छोटी सी भूमिका मिली। 1945 में अभिनय के साथ ही फिल्म निर्देशक विश्राम बेडेकर के सहायक का काम भी देखने लगे थे। वर्ष 1946 में उन्होंने एक अन्य सहायक निर्देशक पी. एल. संतोषी की फिल्म ‘हम एक हैं’ के लिये नृत्य निर्देशन का काम किया।

गुरु दत्त को सबसे पहले देव आनंद ने उन्हें बतौर डायरेक्टर मौका दिया। उन्होंने बॉलीवुड में बतौर निर्देशक के तौर पर फिल्म ‘बाजी’ से वर्ष 1951 में डेब्यू किया था। इस फिल्म में देव आनंद और गीता दत्त मुख्य भूमिका में थे। उनके निर्देशन में बनी पहली ही फिल्म काफी सफल रही। इसके बाद गुरु दत्त ने सीआईडी में वहीदा रहमान को पहली बार कास्ट किया।

इसके बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक क्लासिकल फिल्में दी। इनमें प्रमुख फिल्में प्यासा, साहिब बीवी और गुलाम, चौदहवीं का चांद, कागज के फूल और आर-पार जैसी सफल फिल्में शामिल हैं। गुरु दत्त ने अपनी फिल्मों में एक्टिंग भी की थी। वर्ष 2002 में किए गए एक सर्वे में टॉप 160 सबसे महान फिल्मों में गुरु दत्त की ‘प्यासा’ और ‘कागज के फूल’ को शामिल किया गया था। इसके अलावा 2010 में सीएएन ने एशिया के 25 सबसे बेहतरीन ऐक्टर्स की लिस्ट में शामिल किया था।

गीता रॉय से की शादी 

गुरु दत्‍त ने वर्ष 1953 में प्रसिद्ध गायिका गीता रॉय से शादी की थी। वे दोनों एक-दूसरे को तीन वर्षों से जानते थे। दोनों के तीन बच्चे हुए तरुण, अरुण और नीना। उनका वैवाहिक जीवन काफी संघर्षों से भरा रहा। कहा जाता है कि गुरु दत्त का एक्ट्रेर्स वहीदा रहमान के साथ अफेयर्स था और जिसका कारण उनके साथ कई फिल्मों में काम किया था। उनके बीच बढ़ती नजदीकी से गीता और उनके बीच विवाद होते रहते थे। बाद के समय में गुरु दत्त को शराब की लत भी लग गई।

निधन

10 अक्टूबर 1964 को गुरु दत्त मुंबई स्थित अपने घर में मृत पाए गए थे। कहा जाता है कि उन्होंने शराब के साथ नींद की गोलियां खाकर आत्महत्या की थी। इससे पूर्व भी उन्होंने दो बार आत्महत्या का प्रयास किया था। आखिरकार तीसरे प्रयास ने उनकी जान ले ली। गुरु दत्त ने थोड़े ही समय में भारतीय सिनेमा को इतना महान योगदान दिया है कि उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।

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