जॉर्ज सोरोस का भारत को हिंदू राष्ट्रवादी देश बनाने का आरोप सच या झूठ?

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दावोस में वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम में अमेरिका के अरबपति जॉर्ज सोरोस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए उन पर भारत को ‘हिंदू राष्ट्रवादी देश’ बनाने का आरोप लगाया। सोरोस का यह बयान तब आया जब देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं। खबरों के मुताबिक सोरोस ने कहा कि राष्ट्रवाद भारत के लिए ‘सबसे बड़ी नाकामी’ बन गया है। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार लोकतांत्रिक तरीके से चुना गया और वह एक हिंदू राष्ट्रवादी देश बना रही है और कश्मीर पर दंडात्मक कार्रवाई की जा रही है और लाखों मुसलमानों को उनकी नागरिकता से वंचित करने की धमकी दे रहे हैं।’ इसके साथ ही सोरोस ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर भी निशाना साधा है।

द इकॉनोमिस्ट का असहिष्णुता का आरोप

वहीं, मशहूर मैगजीन ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने अपने नए कवर पेज के साथ नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) को लेकर भारत में हो रहे विरोध प्रदर्शनों पर मोदी सरकार पर हमला बोला है। जिसमें कंटीले तारों के बीच बीजेपी का चुनाव चिन्ह ‘कमल का फूल’ नजर आ रहा है। इसके ऊपर लिखा है, ‘असहिष्णु भारत, कैसे मोदी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को जोखिम में डाल रहे हैं।’ ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने गुरुवार को कवर पेज ट्वीट करते हुए लिखा, ‘कैसे भारत के प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को खतरे में डाल रहे हैं।’

यह नहीं पीएम मोदी पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में विभाजन का आरोप लगाया है। उसमें लिखा है कि भारत के 20 करोड़ मुसलमान डरे हुए हैं क्योंकि प्रधानमंत्री हिंदू राष्ट्र के निर्माण में जुटे हैं। 80 के दशक में राम मंदिर के लिए आंदोलन के साथ बीजेपी की शुरूआत पर चर्चा करते हुए लेख में तर्क दिया गया है कि संभावित तौर पर नरेंद्र मोदी और बीजेपी को धर्म और राष्ट्रीय पहचान के आधार पर कथित विभाजन से फायदा पहुंचा है।

पाक छोड़े चुके अल्पसंख्यकों की आवाज क्यों नहीं उठी

काश! इस मैगजीन ने दो—चार दशक पहले ऐसा ही तब लिखा होता, जब पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किए जा रहे थे, उनका और उनकी बेटियों के साथ जबरन शादी कर धर्म परिवर्तन किया जा रहा था। तो शायद आज भारत पर यह लिखने की नौबत न आती। कौनसा देश या मानवाधिकार आयोग यह नहीं जानता कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ कितने अत्याचार हुए हैं और आज उनकी जनसंख्या 23 प्रतिशत से घटकर 2 से तीन प्रतिशत बची है।

कम से कम भारत में अल्पसंख्यकों के साथ ऐसा तो नहीं हुआ, यहां के अल्पसंख्यकों को पूरी तरह समानता का अधिकार दिया गया तभी तो आज उनकी जनसख्या बढ़कर 20 करोड़ से अधिक हो गई है।

आज सीएए पर दुनिया में भारत की छवि खराब की जा रही है जोकि तर्क संगत नहीं है। इस कानून पर बिल पेश करवाते समय गृहमंत्री ने यह कहा था कि यह कानून घुसपैठिये मुस्लमानों के लिए है, न कि देश के मुस्लमानों के लिए। दुनिया के बड़े पूंजीपति और संगठन भारत के खिलाफ ही बोल सकते हैं वे आतंकवाद को पनाह देने वाले देशों के खिलाफ नहीं बोल सकते, क्यों?

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