भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का पहला विद्रोह 1857 में हुआ था, उससे भी पूर्व ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अत्याचारों के खिलाफ सशस्त्र बल का नेतृत्व करने वाली कित्तूर की रानी और स्वतंत्रता सेनानी कित्तूर चेन्नम्मा की आज 23 अक्टूबर को 242वीं जयंती है। उन्होंने वर्ष 1824 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध विद्रोह किया था। अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह करने वाली वह पहली महिला शासिका थी। वह कर्नाटक में एक लोकनायिका और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक बन गई। उनकी स्मृति में कर्नाटक राज्य के बेलगांम जिले के कित्तूर तालुका में हर वर्ष 22-24 अक्टूबर महीने में ‘कित्तूर उत्सव’ मनाया जाता है। इस उत्सव में लोग पूरे उत्साह के साथ भाग लेते हैं। ऐसे में इस ख़ास मौके पर जानते हैं उनके बारे में कुछ दिलचस्प बातें..
रानी कित्तूर चेन्नम्मा का जीवन परिचय
रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर, 1778 को वर्तमान कर्नाटक राज्य के बेलगावी जिले के काकती गांव में हुआ था। उनका परिवार लिंगायत समुदाय से था। उन्होंने बचपन में ही घुड़सवारी, तलवार चलाने और तीरंदाजी का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उनका विवाह 15 वर्ष की उम्र में कित्तूर के देसाई राजा मल्लसाराजा के साथ हुआ था। चेन्नम्मा राजा के साथ शासन कार्यों में भाग लेती थी। चेन्नम्मा के पति वर्ष 1816 में और एक पुत्र की 1824 में मृत्यु हो गई। इससे रानी और राज्य पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
लेकिन उसने अपना मनोबल नहीं टूटने दिया। वह बहुत दुखी हुई, लेकिन उसने शिवलिंगप्पा को गोद ले लिया और उसे अपना उत्तराधिकारी बनाया। इसी समय अंग्रेजों की नजर कित्तूर पर पड़ीं। वे इस राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाना चाहते थे। इस पर ब्रिटिश कंपनी को एतराज हुआ और शिवलिंगप्पा को कित्तूर का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया। अंग्रेजों ने रानी को उसे पद से हटाने का आदेश दिया। उन्होंने कित्तूर की स्वाधीनता की रक्षा को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।
उत्तराधिकार के प्रश्न पर हुआ अंग्रेजों से युद्ध
रानी कित्तूर चेन्नम्मा ने अंग्रेजों के आदेश को मानने से इंकार कर दिया। इसके अलावा अंग्रेजों की नियत कित्तूर के खजाने को लूटने की भी थी। धीरे-धीरे टकराव बढ़ गया। रानी ने कित्तूर में बढ़ती ब्रिटिश पाबंदियों और अंग्रेज अधिकारियों की मनमानी को देखते हुए बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गवर्नर को सूचना भेजी, लेकिन लॉर्ड एल्फिन्स्टन ने उस अनुरोध का स्वीकार नहीं किया। अंग्रेज सेना ने अक्टूबर, 1824 में कित्तूर को घेर लिया। इस प्रथम युद्ध में अंग्रेज सेना के करीब 20,000 सैनिकों और 400 बंदूकधारियों ने रानी पर धावा बोल दिया।
हालांकि, रानी इस तरह हुए हमले के लिए पूरी तरह तैयार थी। उन्होंने अपने सेनापति और सेना के साथ मिलकर पूरे उत्साह के साथ युद्ध किया। रानी के कुशल नेतृत्व की बदौलत अंग्रेज सेना को युद्ध क्षेत्र से भगाना पड़ा। इस युद्ध में दो अंग्रेज अधिकारी मारे गये और बाकी दो अधिकारियों को बंदी बनाया गया। गिरफ्तार दोनो अधिकारियों सशर्त रिहा कर दिया गया, जिसमें अंग्रेजों ने रानी का वचन दिया कि वे कित्तूर पर आक्रमण नहीं करेंगे। परंतु कुछ समय बाद ही अंग्रेजों ने पुन: कित्तूर पर हमला बोल दिया। इस बार अंग्रेज रानी पर हावी रहे, क्योंकि अंग्रेजों की तोप और गोले-बारूद का कोई जबाव नहीं था। रानी को बंदी बना लिया गया।
रानी चेन्नम्मा का निधन
रानी कित्तूर चेन्नम्मा को करीब 5 वर्ष तक बेलहोंगल के किले में बंदी बनाकर रखा गया था। यहीं पर 21 फरवरी, 1829 को उनका निधन हो गया था। इस स्थल पर उनकी समाधि भी बनी हुई है, जिसका सरकार रख-रखाव करवाती है। अक्टूबर 1824 में रानी कित्तूर चेन्नम्मा की पहली विजय के बाद से ही कित्तूर वासियों ने ‘कित्तूर उत्सव’ मनाना शुरू कर दिया था।
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रानी चेन्नम्मा के साहसिक जीवन पर निर्देशक बी. आर. पंठुलू ने फिल्म ‘कित्तूर चेन्नम्मा’ नामक फिल्म बनाई। बंगलुरु से कोल्हापुर जाने वाली एक ट्रेन का नाम भी उनके नाम पर रानी चेन्नम्मा एक्सप्रेस रखा गया है। भारत के संसद परिसर में 11 सितंबर, 2007 को देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने रानी कित्तूर चेन्नम्मा की मूर्ति का अनावरण किया था।