भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टी एन शेषन का रविवार 10 नवंबर को 86 वर्ष की अवस्था में निधन दिल का दौरा पड़ने से हो गया। उनका निधन चेन्नई में हुआ। वह भारत के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त थे। उनका कार्यकाल 12 दिसंबर, 1990 से 11 दिसंबर, 1996 तक रहा था। उन्हें भारतीय चुनावों में सुधार करने वाले व्यक्ति के रूप में याद किया जाता रहेगा।
वह तमिलनाडु कैडर के वर्ष 1955 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी थे। उन्होंने भारतीय चुनाव प्रणाली में कई बड़े बदलाव किए थे। उनके कार्यकाल में ही भारत में मतदाता पहचान पत्र बनाने की शुरुआत की गई थी। उन्हें वर्ष 1996 में मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया था।
जीवन परिचय
तिरुनेल्लाई नारायण अय्यर शेषन का जन्म 15 दिसंबर, 1932 को केरल राज्य के पलक्कड़ जिले में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा बेसल इंजीलिकल मिशन हायर सेकेंडरी स्कूल से की और इंटरमीडिएट गवर्नमेंट विक्टोरिया कॉलेज, पलक्कड़ से पास की। बाद में उन्होंने भौतिकी से स्नातक की डिग्री मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से प्राप्त की।
वर्ष 1955 में टी एन शेषन ने भारतीय सिविल सर्विस परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद वह एडवर्ड एस. मेसन फैलोशिप पर हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन करने चले गए, जहां उन्होंने वर्ष 1968 में सार्वजनिक प्रशासन में मास्टर डिग्री प्राप्त की।
भारतीय चुनाव प्रणाली में किए कई बड़े सुधार
टी एन शेषन को भारतीय चुनाव प्रणाली में सुधार के लिए याद किया जाता रहेगा। उन्हें वर्ष 1990 में देश का मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनाया गया था। शेषन वर्ष 1990 से 1996 तक इस पद पर बने रहे। इस पद पर नियुक्त होने के साथ ही उन्होंने कई सुधार किए जो भारतीय चुनाव प्रणाली में मील के पत्थर साबित हुए।
उन्होंने पूरे देश में चुनाव संबंधी नियमों को कठोरता से लागू किया। उन्होंने अपने कार्यकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव तक को नहीं बख्शा था। वह पहले ऐसे चुनाव आयुक्त थे जिन्होंने पहली बार बिहार विधानसभा के चुनाव चार चरणों में करवाए थे। इन चुनावों में गड़बड़ी की आशंका की वजह से चारों बार चुनावों की तारीखें बदल दी गई थी। उन्होंने वहां पर बूथ कैप्चरिंग रोकने के लिए अर्धसैनिक बल को तैनात किया था। उन्होंने बिहार विधानसभा चुनावों के समय मतदाताओं से कहा था कि ‘चिंता मत करें। कुछ नहीं होगा- सिर्फ आपके चेहरे पर बम फेंका जाएगा और पेट पर गोली चलेगी!’
उनके कार्यकाल के दौरान ही लोगों ने जाना कि आचार संहिता को कितना प्रभावी बनाया जा सकता है। सभी योग्य मतदाताओं के लिए पहली बार मतदाता पहचान पत्र जारी करवाए। मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालने से पहले 1989 में वह देश के 18वें कैबिनेट सचिव के पद पर थे।
वोट की खरीद—फरोख्त पर रोक
उनसे पूर्व मतदान के दौरान वोटों की खरीद फरोख्त की बात आम थी। चुनाव के दौरान उम्मीदवार मतदाताओं के कई प्रकार का लालच देकर वोट हासिल करते थे लेकिन टी एन शेषन ने इन सब पर लगाम लगाने के लिए सख्त कार्रवाई की। पोलिंग बूथों को लोकल दबंगों के दबदबे को कम करने के लिए केंद्रीय पुलिस बलों की तैनाती शेषन के दौर का अहम पड़ाव था।
चुनावों के दौरान खर्च की सीमा और उम्मीदवारों को जांच के लिए अपने खर्चों का पूरा लेखा—जोखा देने का प्रावधान लागू किया। चुनावों के दौरान शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया और चुनाव के समय बिना लाइसेंस के हथियारों को जब्त करने के नियम बनाए। उन्होंने धर्म के नाम पर चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी। उनके कार्यकाल में ही बूथ कैप्चरिंग पर शिकंजा कसा गया था। कई पार्टियों ने शेषन की इस कार्यशैली पर प्रश्न उठाए लेकिन वे चुनाव सुधार की अपनी प्रतिबद्धता से डिगे नहीं और इसे प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाया।
राजनीति कॅरियर
टी एन शेषन निवार्चन आयुक्त के पद से रिटायर हो गए तो बाद में उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में किस्मत आजमाई। राजनीति में उन्हें खास कामयाबी नहीं मिली। वर्ष 1997 में के आर नारायणन के खिलाफ उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया लेकिन वह चुनाव हार गए।
वर्ष 1999 में हुए आम चुनावों में उन्होंने चुनाव लड़ें लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वह गांधीनगर सीट से लड़े थे जहां से बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने चुनाव लड़ा था।
उनकी पत्नी जयलक्ष्मी का देहांत पिछले वर्ष हो गया था। उनके दत्तक बेटी श्रीविद्या और दामाद महेश हैं।