आज के समय में दुनिया के करीब सभी देश धर्मों को लेकर आशांकित और भयभीत रहते हैं। जिसकी वजह से निर्दोष गरीब लोगों की जीना मुश्किल हो रहा है। आधुनिक युग में भी हम वहीं ठेठ बन हुए हैं, धर्म की सही व्याख्या कोई नहीं करना चाहता है। सब अपने ईश्वर का बड़ा बताते हैं और बेचारी प्रकृति जिसने सभी धर्मों के लोगों का भार बिना किसी स्वार्थ के धारण कर रखा है। जो मानव सभ्यताओं को जीने के लिए मूलभूत वस्तुएं नि:स्वार्थ भाव से दे रही है, आज मानव की वजह से उस पर रह रहे प्राणियों को संकट उत्पन्न हो गया है। तो जानते हैं वाकई धर्म क्या है?
United Kingdom: Members of Indian diaspora protest outside United Nations office in London, seeking justice for Mehak Kumari, a minor Hindu girl who was reportedly forcibly converted to Islam&married to Muslim man in Sindh. pic.twitter.com/bTlKtTMwod
— ANI (@ANI) February 25, 2020
धर्म मानव का नैतिक उत्थान करता है, न कि भेदभाव का
अगर मानव सभ्यता के विकास की कहानी को ऐतिहासिक और वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर जाने तो करीब इसे विकसित हुए 5 हजार साल हो गए हैं। यानी दुनिया में मानव सभ्यताओं का विकास करीब पांच हजार साल पहले हो चुका था। तब से ही मानव ने एक सुदृढ़ समाज की स्थापना का प्रयास किया था। उस जमाने में धर्म मात्र मानव के नैतिक उत्थान का माध्यम था, जो पशुवृत्तियों से खुद को अलग कर साफ—सफाई से रह सके, किंतु आज धर्म का अर्थ ही बदल गया है।
यदि इतिहास के गर्भ में झांके तो मालूम होता है कि मिस्र, रोमन, भारतीय (हड़प्पा सभ्यता), चीनी, मैसोपोटामिया और अन्य सभ्यताएं नदियों के समीप विकसित हुई। उस समय की धार्मिक प्रवृत्ति पर नजर डाले तो हमें ज्ञात होता है कि इन सभ्यताओं से मिले साक्ष्यों के आधार पर उनकी धार्मिक प्रवृत्ति एक जैसी थी। इन सभ्यताओं में प्रकृति के प्रतिमानों को ही पूजा गया था, जिनको अपने स्थान विशेष के आधार पर अनेक नामों से पुकारा जाता था। जैसे — सूर्य की उपासना सभी सभ्यताओं में मिलती है और उसे अनेक नामों से पुकारा पूजा जाता था। ऐसे ही अन्य देवता थे— जल का देवता, वायु आदि।
आज हम मानव धर्म का कुछ अन्य ही अर्थ लेकर चल रहे हैं। एक—दूसरे धर्मों को अपना प्रतिद्वंदी मान रहे हैं, जोकि गलत है। क्या कोई धर्म किसी का पेट पाल सकता है? क्या कोई धर्म किसी गरीब की गरीब मिटा सकता है? शायद नहीं क्योंकि धर्म केवल मानव का नैतिक उत्थान करता है, तभी तो वह लोगों की गरीबी नहीं मिटा सकता है। तभी तो वह ऊंच—नीच का भेद नहीं मिटा सकता है। वह आर्थिक असमानता और पद की प्रतिष्ठा का नहीं मिटा सकता है, क्योंकि धर्मों पर चंद नकारात्मक महत्त्वाकांक्षी लोगों की सत्ता होती है। ये लोग विरासत में मिले इस वर्चस्व को त्यागना नहीं चाहते हैं, फिर भले ही कितने ही निर्दोषों का खून बहाना क्यों न पड़े।
स्थान विशेष के अनुसार धर्मों का विकास हुआ
अब तक तो यही होता आया है, कोई बतायेगा कि कौनसा धर्म मानव कल्याण की बात नहीं करता है? दुनिया के सभी धर्म अच्छे हैं क्योंकि वे सभी मानव के कल्याण के वास्ते ही बने हैं। उस जमाने में संचार के जो साधन आज है और मानव जीवन को सुखद बनाने वाले भौतिक साधन तब नहीं थे। ऐसे में उदार और महान व्यक्तित्वों ने बर्बर, असभ्य और पशुओं की तरह रहते मानव को एक नियमबद्ध संहिता में बांध दिया। अलग—अलग सभ्यताओं में मानव कल्याण के लिए अलग—अलग नियम बने, जिनका अंतिम लक्ष्य मानव का नैतिक उत्थान और विकास था। उन्होंने नई सभ्य संस्कृति का विकास किया, जो खुद का पशुओं और प्रकृति के अन्य जीवों से अलग पहचान बना सके और अपना विकास कर सके।
परंतु आज स्वार्थी लोगों ने समुदाय बनाकर लोगों को बांटना और भड़काना शुरू कर दिया। ये लोग जितना सुखी रह सकते हैं अन्य धर्मानुयायी नहीं रहते होेंगे। क्या बदला धर्मों के बड़े लोगों ने। कितना सुख पहुंचाया इन धर्मों के उच्च पदाधिकारियों ने। पहले खुद का पेट पूजा करते हैं, फिर थोड़ा बहुत रूखा—सूखा लोगों के लिए छोड़ देते हैं।
उच्च पदों पर बैठना चाहते हैं महत्त्वाकांक्षी
यह हाल है सब धर्मों में महत्त्वाकांक्षी प्रतिष्ठित पद पर विराजमान रहता है, वह लोगों को अपने ही धर्म के बड़े उदार लोगों के खिलाफ भड़काते हैं, दूसरे धर्मों के खिलाफ भड़काते हैं। उपद्रव होते हैं लेकिन उनके खरौंच तक नहीं आती है। मरता कौन है जिसके पास कोई अधिकार नहीं, जो गरीब है।
हां यही होता आया है अब तक। स्वार्थी ने अपने और अपने चाहने वालों को सारे सुख—सुविधाओं का पाने का यतन किया है। किसी भी धर्म के बड़े धर्माधिकारियों को देख लो शायद वे गरीबी और अभाव न नहीं जीते हैं। उनका आय के बड़े साधनों पर अधिकार होता है।
ऐसे लोगों पर भारत के महान संतों में शुमार कबीर दास ने धर्मों में व्याप्त आड़म्बरों पर खूब चोट की है। उन्होंने धर्मों में दिखावे की आलोचना की है।
कितना सही है धर्म परिवर्तन
आज के समय में दुनिया के कई देशों और धर्म लोगों के धर्म परिवर्तन करने में विश्वास करते हैं और दूसरे धर्मों के धर्म परिवर्तन करवाते हैं। हाल में पाकिस्तान में ऐसे कई किस्से सामने आए हैं। कितना उचित है धर्म परिवर्तन करवाना?
हम आज भी अनभिज्ञ है कि हमारी जननी प्रकृति है जिसने हमें बनाया है। यह सच हो सकता है कि प्रकृति को ईश्वर ने बनाया है। पर जिसने भी इसे बनाया है उसने तो प्रकृति के निर्माण में कोई भेदभाव नहीं किया। सब जगह मानव और जीवों के लिए भोजन, पानी, वायु और अन्य मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाई है। जब उसने मानव को समान बनाया है तो फिर हम कौन होते हैं मानव—मानव में भेदभाव करने वाले।
भेदभाव मानव तब करता है जब उसके मन में लालच हो, या फिर वह भौतिक सुख—सुविधाओं पर एकाधिकार चाहता हो। लोगों उसे भगवान की तरह पूजे ऐसे लोग फिर दूसरे धर्म के लोगों पर अत्याचार करते हैं।
पाकिस्तान में एक हिंदू नाबालिग लड़की का जबरन इस्लाम कबूल करवाया किया गया है। इंग्लैंड की राजधानी लंदन में संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय के बाहर भारतीय प्रवासियों ने विरोध प्रदर्शन किया है और उसे न्याय दिलाने की मांग कर रहे हैं।
बता दें कक्षा नौवीं की छात्रा महक कुमारी का 15 जनवरी को सिंध प्रांत के जकोबाबाद जिले से अली रजा सोलंगी नाम के शख्स ने अपहरण कर लिया था और बाद में जबरन धर्म परिवर्तन कर उससे शादी कर ली थी। महक के पिता के एफआईआर दर्ज कराने के बाद यह मामला सामने आया था। अभी वक्त है विज्ञान ने धर्मों के कई मिथ्यकों को तोड़ दिया है।