प्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने म्यांमार में बतौर क्लर्क किया था काम

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बांग्ला के लोकप्रिय उपन्यासकार और लघु कथाकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की आज 15 सितंबर को 147वीं जयंती है। उनके द्वारा लिखित प्रमुख उपन्यास ‘देवदास’, ‘विराज बहु’, ‘बिंदु का लल्ला’, ‘राम की सुमति’, ‘चरित्रहीन’ आदि हैं। शरतचंद्र के लेखन में ग्रामीण जन जीवन, त्रासदी और संघर्ष को चित्रित किया गया है। उन्होंने बंगाल में व्याप्त समकालीन सामाजिक प्रथाओं पर प्रहार किया। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय एकमात्र ऐसे कथाकार है, जिनकी अधिकतर कालजयी कृतियों पर फ़िल्में और सीरियल बन चुके हैं। इनमें ‘देवदास’, ‘चरित्रहीन’ व ‘श्रीकान्त’ जैसी प्रमुख कृतियां शामिल हैं। इस खास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

शरतचंद्र का ननिहाल भागलपुर में बीता बचपन

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 15 सितंबर, 1876 को पश्चिम बंगाल राज्य के हुगली जिले के देवानंदपुर गांव में हुआ था। अपने माता-पिता के शरतचंद्र नौ भाई-बहन थे। उनकी शुरुआती शिक्षा प्यारी पंडित की पाठशाला से शुरू हुईं। उनके पिता मोतीलाल बेफिक्र और स्वभाव से घुमक्कड़ थे, इसलिए वे किसी एक स्थान पर रूक कर नौकरी नहीं कर सके। परिणामस्वरूप उनके परिवार की आर्थिक हालात कमजोर होती चली गई। इस वजह से शरत की किशोरावस्था ननिहाल भागलपुर में गुजरी और आगे की शिक्षा यहीं पर हुईं।

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नटखट स्वभाव से बचपन में काफी शरारतें की

शरतचंद्र ने अपने नटखट स्वभाव से बचपन में काफी शरारतें की। वह अपने उम्र के मामाओं और मित्रों के साथ खूब शरारतें करते थे। ये शरारतें उनके प्रसिद्ध पात्र ‘देवदास’, ‘श्रीकान्त’, ‘सत्यसाची’, ‘दुर्दान्त राम’ आदि के चरित्रों में देखने को मिल जाती है। वे पढ़ाई से दूर भागा करते थे। वर्ष 1983 में शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का दाखिला भागलपुर के दुर्गाचरण एम.ई. स्कूल में करवाया गया।

शरतचंद्र ने छात्रवृत्ति पाकर टी.एन. जुबिली कालेजिएट स्कूल में प्रवेश किया। वर्ष 1894 में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। उन्होंने 18 साल की उम्र में ‘बासा’ (घर) नामक उपन्यास लिखा, परंतु उसे प्रकाशित नहीं कर सके। शरत ललित कला के छात्र थे और उनकी कॉलेज की शिक्षा अधूरी रह गईं। उनके लेखन पर रवींद्रनाथ टैगोर और बंकिमचंद्र जैसी जैसी हस्तियों गहरा प्रभाव पड़ा।

म्यांमार से लौटकर ‘श्रीकान्त’ लिखना आरंभ किया

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय बाद में रोजगार के लिए बर्मा यानि म्यांमार चले गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क के रूप में काम किया। परंतु कुछ समय बाद वह पुन: कलकत्ता लौट आए और लेखन कार्य शुरू कर दिया। वहां से लौटने पर उन्होंने प्रसिद्ध उपन्यास ‘श्रीकान्त’ लिखना आरंभ कर दिया। बर्मा में नौकरी के दौरान उनकी मुलाकात बंगचंद्र नामक एक शख़्स से हुई जो बड़ा विद्वान था, परंतु वह शराब का शौकीन था। शरतचंद्र के उपन्यास ‘चरित्रहीन’ की प्रेरणा शायद वही था। इसमें एक मेस का वर्णन है, जिसमें मेस की नौकरानी से प्रेम की कहानी है।

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित प्रमुख रचनाएं

लघु कथाकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने जीवन में कई उपन्यास लिखे थे। उनमें ‘पंडित मोशाय’, ‘बैकुंठेर बिल’, ‘मेज दीदी’, ‘दर्पचूर्ण’, ‘श्रीकान्त’, ‘अरक्षणीया’, ‘निष्कृति’, ‘मामलार फल’, ‘गृहदाह’, ‘शेष प्रश्न’, ‘दत्ता’, ‘देवदास’, ‘बाम्हन की लड़की’, ‘विप्रदास’, ‘देना पावना’ आदि प्रमुख हैं। उन्होंने बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन को लेकर ‘पथेर दावी’ उपन्यास लिखा। पहले यह ‘बंग वाणी’ में धारावाहिक के रूप में निकाला, फिर पुस्तकाकार छपा तो तीन हजार का संस्करण तीन महीने में समाप्त हो गया। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने इसे जब्त कर लिया था।

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शरतचंद्र के उपन्यासों पर बन चुकी हैं कई फिल्में

उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के द्वारा लिखित उपन्यासों का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। कहा जाता है कि उनके पुरुष पात्रों से उनकी नायिकाएं अधिक ताक़तवर हैं। शरतचंद्र की जनप्रियता उनकी कलात्मक रचना और नपे-तुले शब्दों या जीवन से ओत-प्रोत घटनाओं के कारण नहीं हैं, बल्कि उनके उपन्यासों में नारी जिस प्रकार परंपरागत बंधनों से छटपटाती नज़र आती हैं।

जिस प्रकार पुरुष और स्त्री के संबंधों को एक नए आधार पर स्थापित करने के लिए पक्ष प्रस्तुत किया गया है, उसी से शरतचंद्र को लोकप्रियता मिलीं। उनकी रचनाएं दिल को छू जाती हैं। पर उनके साहित्य में हृदय के सारे तत्व होने पर भी समाज के संघर्ष, शोषण आदि पर कम प्रकाश पड़ता है।

शरतचंद्र के कई प्रसिद्ध उपन्यासों पर बॉलीवुड में भी फिल्में बनी हैं। उनके ‘चरित्रहीन’ उपन्यास पर वर्ष 1974 में इसी नाम से फ़िल्म बनी थी। इसके बाद में ‘देवदास’ पर तीन बार फ़िल्म बन चुकी हैं। इसके अलावा वर्ष 1953 और 2005 में फिल्म ‘परिणीता’ बनीं। वर्ष 1969 में ‘बड़ी दीदी’ और ‘मंझली बहन’ आदि पर भी फ़िल्में बन चुकी हैं।

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का निधन

बांग्ला के इस सुप्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का निधन 16 जनवरी, 1938 को कोलकाता में हुआ।

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