यौम-ए-पैदाइश: ‘मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं…’ पढ़िये राहत इंदौरी के मारक़ शेर

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शेर-ओ-शायरी की दुनिया में सियासत और मुहब्बत पर अपनी बराबर पकड़ रखने वाले मशहूर शायर डॉ. राहत इंदौरी की 1 जनवरी को 73वीं जयंती है। राहत इंदौरी का जन्म देश की आजादी के तीन साल बाद वर्ष 1950 में मध्यप्रदेश के इंदौर में हुआ था। जैसा कि साहित्य की दुनिया में चला आ रहा है, जिसने भी अपना मुकाम हासिल किया अपने शहर के नाम को उपनाम बनाता चला गया। यही वजह है कि लोगों के बीच मशहूर होने के बाद राहतउल्ला कुरैशी दुनिया में राहत इंदौरी के नाम से मशहूर हुए। इस ख़ास मौके पर पढ़िये उनके मशहूर शेर…

“एक अखबार हूं औकात ही क्या मेरी
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूं”

“सरहदों पर तनाव है क्या
ज़रा पता तो करो चुनाव हैं क्या”

“न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा”

“अफवाह थी कि मेरी तबीयत खराब है
लोगों ने पूछ-पूछ के बीमार कर दिया।”

“उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है”

“अचानक बांसुरी से दर्द की लहरे उठती हैं
गुजरती है जो राधा पर वो गिरधारी समझता है”

“मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी”

“रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है”

“बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए”

“मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले”

“अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते”

“कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है”

“इक मुलाक़ात का जादू कि उतरता ही नहीं
तिरी ख़ुशबू मिरी चादर से नहीं जाती है”

“मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को 
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे”

“हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं”

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