साहित्य की दुनिया में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की पहचान एक बेमिसाल शायर की है। जिसके नगमों में इश्क, इंकलाब, रुमानियत, विद्रोह, जोश हर मिज़ाज को महसूस किया जा सकता है। फैज की कलम हर उम्र के लोगों का ध्यान रखकर शब्दों को कागज पर उकेरती थी। फैज का जन्म 13 फरवरी, 1911 को सियालकोट में हुआ था और निधन 20 नवंबर 1984 को हुआ। 13 फरवरी को उनकी 109वीं जयंती है। इस खास मौके पर पेश हैं उनके कुछ चुनिंदा शेर…
“और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा”
“और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया”
“सारी दुनिया से दूर हो जाए
जो ज़रा तेरे पास हो बैठे”
“दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है”
“आए तो यूं कि जैसे हमेशा थे मेहरबान
भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे।”
“दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के”
“कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए”
“दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के”
“तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं”
“नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही”
“गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले”
“वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है”
“इक तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है सो वो उन को मुबारक
इक अर्ज़-ए-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे”
“हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे”
”आप की याद आती रही रात भर”
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर
“जानता है कि वो न आएँगे
फिर भी मसरूफ़-ए-इंतिज़ार है दिल”
“ये आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर हमदम
विसाल-ए-यार फ़क़त आरज़ू की बात नहीं”
“वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे
शब-ए-फ़िराक़ ये कह कर गुज़ार दी हम ने”
“गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं”
“जब तुझे याद कर लिया सुबह महक महक उठी
जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई”