देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच कई कोविड मरीजों में ब्लैक और व्हाइट फंगस जैसी बीमारियां होने के भी मामले सामने आ रहे हैं। ये फंगस कई मरीजों के लिए घातक साबित हुए हैं और इसकी वजह से उन्होंने अपनी जान भी गंवा दी है। दरअसल, भारत में कोरोना वायरस के प्रसार के बाद से ही एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है। इस बीच अब एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल को लेकर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानि आईसीएमआर ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। आईसीएमआर के नए शोध में सामने आया है कि कोरोना मरीजों में एंटीबायोटिक दवाओं के बेजा इस्तेमाल से सुपरबग (दवा के विरुद्ध वायरस का पहले से खतरनाक और मजबूत होना) का खतरा बढ़ रहा है।
एंटीबायोटिक्स कोरोना के खिलाफ प्रभावी होने का डाटा नहीं
आईसीएमआर के शोधकर्ताओं द्वारा जून से अगस्त 2020 के बीच भारत में कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान किए गए एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ कि कोविड-19 की पहली लहर में ही हल्के संक्रमण पर भी मरीजों को उच्च स्तर की एंटीबायोटिक दवाइयां दी गईं। यह एंटीबायोटिक्स अक्सर वायरस के खिलाफ सुरक्षा की अंतिम पंक्ति होती हैं। आईसीएमआर ने अपनी इस रिपोर्ट में कहा है कि यह साबित करने के लिए कोई डाटा नहीं है कि यह एंटीबायोटिक्स कोरोना के खिलाफ प्रभावी हैं। आईसीएमआर के शोध में सामने आया कि कोरोना के इलाज में स्वास्थ्य सुविधाओं और दवाइयों की कमी के कारण डॉक्टर मरीजों को शक्तिशाली एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग की सलाह देने लगे जो काफी खतरनाक साबित हुआ।
भारत में सुपरबग्स को लेकर डब्ल्यूएचओ ने भी जताई थी चिंता
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि डब्ल्यूएचओ का मानना है कि कोरोना बीमारी से पहले भी एंटीबायोटिक प्रतिरोध खतरनाक स्तर तक बढ़ रहा था, जिससे हमारी कई दवाएं अप्रभावी हो गईं। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि सुपरबग्स को लेकर भारत पहले से ही चिंता का एक क्षेत्र रहा है। साल 2017 में डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट ने जिन तीन सुपरबग्स को महत्वपूर्ण प्राथमिकता के रूप में चिह्नित किया था, उन्हीं सुपरबग्स को आईसीएमआर के शोधकर्ताओं ने भारत के कोरोना मरीजों में पाया। इसका उदाहरण स्वरूप ब्लैक फंगस है, जो मुख्य रूप से स्टेरॉयड का अत्यधिक उपयोग किए जाने से फैला।
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