मंदिर में चढ़ाए फूल दे रहे रोजगार, आप भी फैला सकते हैं अच्छी सोच की खुशबू

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फूलों का उपयोग पूजा के साथ ही कई अवसरों पर बड़ी तादाद में किया जाता है। अक्सर देखा जाता है लोग पूजा के लिए, किसी धार्मिक स्थानों पर झांकी या विवाह समारोह को सजाने के लिए फूलों का उपयोग करते हैं। परंतु पूजा या समारोह समाप्त होने के बाद इन फूलों को भूल जाते हैं या फिर इन्हें बेकार मानकर कूड़ादान में डाल देते हैं। क्या हमारे जीवन में इन फूलों का महत्त्व इतना ही है, शायद नहीं।

फूलों का उपयोग बेकार होने के बाद भी किया जा सकता है यदि हम उनके महत्त्व को समझे तो।

पूरे देश में बहुत से धार्मिक स्थलों पर प्रतिदिन 20 लाख टन फूलों का चढ़ावा आता है जिसका सही प्रबंधन नहीं होने के कारण या तो कचरे में फेंक देते हैं या फिर नदी-नालों में बहा दिया जाता है। जहां फूल डीकम्पोज नहीं होते क्योंकि यह अन्य नॉन-बायोग्रेडेबल कचरे के साथ मिल जाता है। इससे पर्यावरण व नदियां प्रदूषित हो जाती है।

इन बेकार फूलों को उपयोगी बनाने के लिए आज के समय में देश में कई संस्थाएं आगे आ रही है। उनके द्वारा इन बेकार फूलों को एकत्रित किया जाता है और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा किए जा रहे हैं साथ ही पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में मदद भी की जाती है।

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इन स्थानों पर फूलों से बनाई जा रही है धूपबत्तियां
आज के समय में पर्यावरण के प्रति जागरूक कई व्यक्तियों व संस्थाओं ने इन बेकार फूलों के महत्त्व को समझा और कई स्थानों पर आजीविका कमाने का जरिया भी बनाया है। रुद्रप्रयाग जिले के सौंराखाल क्षेत्र की महिलाओं ने आजीविका प्राप्त करने के लिए एक नई पहल की शुरू की है, यहां के मंदिरों में पूजा के लिए चढ़ाए जाने वाले फूल एकत्रित करके धूपबत्ती बनाई जाती है।

घंडियाल देवता आजीविका विकास स्वायत्त सहकारिता समूह से जुड़ी क्षेत्र के आठ गांवों की 32 महिलाएं मंदिरों में चढ़ावे के रूप में आने वाले फूलों को इकट्ठा करके उनसे धूपबत्ती बना रही हैं। इससे ने केवल रोजगार के अवसर मिले हैं साथ ही मंदिरों में स्वच्छता को बढ़ावा भी मिल रहा है।

कोटेश्वर मंदिर में एकत्रित किए गए फूलों के साथ पय्यां, कुणज, सुमय्या आदि का मिश्रण तैयार कर धूपबत्तती बनाई गई है।

अंकित अग्रवाल तथा करण रस्तोगी कानपुर तथा आसपास के क्षेत्रों में फूल एकत्र करने के लिए 49 मंदिरों के साथ काम करते हैं, जिनका इस्तेमाल वे हाथ से अगरबत्तियां बनाने के लिए करते हैं। उन्होंने प्रतिदिन गंगा तक पहुंचने वाले कचरे में कमी करने के साथ-साथ स्थानीय लोगों को रोजगार देने के लिए 2015 में ‘हैल्प अस ग्रीन’ की स्थापना की।

बरेली नगर निगम ने मंदिरों और मस्जिदों में चढ़ने वाले फूलों से खाद, धूपबत्ती और अगरबत्ती बनाने का प्लांट लगवाने का निर्णय लिया है। यह प्लांट हरुनगला में लगाया गया है। इससे बनने वाले प्रोडक्ट पूरी तरह आर्गेनिक होंगे।

रूद्रप्रयाग के इन मंदिरों में पर्वों पर आते हैं हजारों क्विंटल फूलों का चढ़ावा

केदारनाथ धाम मंदिर में 4,000 क्विंटल
कोटेश्वर महादेव मंदिर में 600 क्विंटल
पंचगढ़ी ओंकारेश्वर धाम ऊखीमठ 800 क्विंटल
विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी 300 क्विंटल
केदार मध्यमेश्वर धाम 350 क्विंटल
चतुर्थ केदार रूद्रानाथ धाम 350 क्विंटल

देश के मंदिरों, मस्जिदों या अन्य पूजा स्थलों पर चढ़ावे में आने वाले फूलों का सही प्रबंधन किया जाए तो अनेक लोगों को रोजगार तो मिलेगा ही साथ ही इन स्थलों को स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी। नदियों को प्रदूषित होने से बचाया जा सकेगा और पर्यावरण स्वच्छ रहेगा।

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