कहीं ‘ईगो’ खुशियों का दुश्मन तो नहीं बन रहा

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आपका मन जानता है कि आपकी गलती है लेकिन आप इसे स्वीकार नहीं करना चाहते, ‘पहले आप’ वाली स्थति हमेशा आपके साथ रहती है क्योंकि आप शुरुआत नहीं करना चाहते, कभी किसी की तारीफ करने में आप हमेशा खुद को सबसे पीछे पाते हैं, हर बात में ‘मैं’ की भावना पहले आती है… यदि ऐसा आपके साथ है तो ‘ईगो’ आपके व्यवहार का अहम हिस्सा बन चुका है।

दरअसल यह इंसानी प्रवृत्ति है कि वह किसी भी बात का दोषी खुद को नहीं मानना चाहता इस कारण वह ऐसी परिस्थितियों से बचने की कोशिश करता है। खुद पर किसी भी तरह की जिम्मेदारी ना लेने की इस प्रवृत्ति के कारण धीरे—धीरे ‘ईगो’ हम पर हावी होने लगता है। ऐसे में हमें बातों को समझने की कोशिश करनी होती है ताकि हम परिस्थितियों के साथ न्यायसंगत व्यवहार कर सकें। ‘ईगो’ उस नकारात्मक व्यक्ति की तरह होता है, जो हमें हमेशा कुछ अच्छा करने से रोकता है। समय के साथ यह हमें ऐसी जगह पर लाकर खड़ा कर देता है जहां हम अकेले होते हैं क्योंकि हमारे अपने इस प्रवृत्ति के कारण हमसे दूर होने लगते हैं।

‘ईगो’ संवादहीनता की स्थिति पैदा करता है। यह हमें पहल करने से रोकता है। ऐसे में हम अपनों से बातचीत नहीं कर पाते नतीजन बातें अनसुलझी रह जाती हैं। चाहे कोई भी रिश्ता हो उसमें खुलकर बातचीत होना बहुत जरूरी है। साथ ही रिश्तों के लिए कई बार आपको झुकना भी पड़ता है लेकिन जब ‘ईगो’ हम पर हावी होता है तो वह हमें झुकने नहीं देता ना ही अपनों से विस्तार से बातचीत करने देता है। ऐसे में दूरियां आने लगती हैं और आपसी तनाव बढ़ने लगती हैं। कई बार समय के साथ हमें अहसास होता है कि फलां जगह पर हम गलत हैं, ऐसे में गलती स्वीकार ली जाए तो रिश्तों में मधुरता बनी रहती है लेकिन ‘ईगो’ उस समय दुश्मन की तरह व्यवहार करता है और हमें ऐसा नहीं करने देता, जिससे परिस्थिति ठीक होने की बजाय और बिगड़ जाती है।

चाहे कोई भी स्थिति हो यदि आप तसल्ली से आत्मविश्लेषण करेंगे तो आपका मन बता देगा कि क्या सही है और क्या गलत। बस, तब अपने मन की ​सुनिए और ‘ईगो’ को साइड में कर दीजिए। ऐसा करने से आप खुशियों के लिए नए रास्ते खोल देंगे और छोटी—छोटी खुशियां हमेशा आपके इर्द ​गिर्द घुमती रहेंगी।

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