ई-कचरा क्या है, कितना है इसका नुकसान, क्या है आपका रोल

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किसी भी देश के लिए पुराने हो चुके फोन, कंप्यूटर, प्रिंटर आदि ई-कचरे को सही तरीके से नष्ट करना या रीसाइक्लिंग करना बड़ा चुनौतीपूर्ण है क्योंकि ई-कचरे को रीसाइक्लिंग करने का सही तरीका ज्ञात नहीं होने से पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी समस्या पैदा होती है। साथ ही इन उपकरणों में सोना, चांदी और तांबे जैसी कई बहुमूल्य कीमती धातुएं होती हैं। इन धातुओं को इलेक्ट्रॉनिक कचरे से अलग करने के लिए असंगठित क्षेत्र में हानिकारक तरीके अपनाए जाते हैं। इससे समस्या से निजात दिलाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी विधि विकसित की है, जिसकी मदद से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना ई-कचरे का पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) किया जा सकता है।

क्या है ई-कचरा
ई-कचरे से शायद हर कोई परिचित होगा पर फिर भी बता देते हैं आधुनिक युग तकनीक का युग है जिसमें हमारे स्मार्टफोन से लेकर ऑफिस तक हमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के खराब होने के बाद वे अनुपयोगी हो जाते हैं बस यही ई-कचरा है। जिनमें प्रमुख है कंप्यूटर के मॉनिटर, मदरबोर्ड, कैथोड रे ट्यूब (सीआरटी), प्रिंटेड सर्किट बोर्ड, मोबाइल फोन, चार्जर, कॉम्पैक्ट डिस्क, एलसीडी (लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले) या प्लाज्मा टीवी, एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर आदि।


असुरक्षित ई-कचरे से उत्सर्जित प्रदूषकों से मानस में होती है कई बीमारी –
असुरक्षित ई-कचरे को रिसाइकिल के दौरान उत्सर्जित रसायनों/प्रदूषकों के संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र, रक्त प्रणाली, गुर्दे और मस्तिष्क विकार, श्वसन संबंधी विकार, त्वचा विकार, गले में सूजन, फेफड़ों का कैंसर, दिल, यकृत को नुकसान पहुंचता है।

ई-कचरे में लेड, मरकरी, कैडमियम और कोबाल्ट जैसे खतरनाक तत्व होते हैं। ई-कचरे के उपचार यानी रिसाइकलिंग के दौरान निकलने रसायनों और विकिरण से न सिर्फ पर्यावरण बल्कि इंसानों के लिए भी खतरा पैदा होता है।

इन उपकरणों में सोना, चांदी और तांबे जैसी कई कीमती धातुएं होती हैं।

ई-कचरा पैदा करने वाले दुनिया के पांच शीर्ष देशों में भारत
बढ़ती तकनीक के कारण अब हर देश में ई-कचरा की समस्या दिनोंदिन बढ़ रही है। हाल ही जारी एक रिपोर्ट में ई-कचरे की वैश्विक मात्रा साल 2016 में 4.47 करोड़ टन थी, जो 2021 तक 5.52 करोड़ टन तक पहुंचने की संभावना व्यक्त की गई है। भारत में करीब 20 लाख टन सालाना ई-कचरा पैदा होता है। इसमें प्रतिवर्ष 5 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। इसके अलावा इस सूची में चीन, अमेरिका, जापान और जर्मनी है।

वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचौम और एनईसी (नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ई-कचरे में सर्वाधिक योगदान महाराष्ट्र (19.8 प्रतिशत) का है। वह सिर्फ 47,810 टन कचरे को सालाना रिसाइकिल कर दोबारा प्रयोग के लायक बनाता है।

ई-कचरे में तमिलनाडु का योगदान 13 प्रतिशत है और वह 52,427 टन कचरे को रिसाइकिल करता है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश (10.1 प्रतिशत) 86,130 टन कचरा रिसाइकिल करता है। देश के ई-कचरे में पश्चिम बंगाल का 9.8 प्रतिशत, दिल्ली 9.5 प्रतिशत, कर्नाटक 8.9 प्रतिशत, गुजरात 8.8 प्रतिशत और मध्य प्रदेश 7.6 प्रतिशत योगदान है।

करें ई समानों का सही उपयोग, तभी सुरक्षित होंगे पर्यावरण और हम

बढ़ता ई—कचरा चिंता का विषय है पर अभी हम हर सुविधा का आनंद ले रहे हैं। किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग हमें अपनी आवश्यकताओं के अनुसार करना चाहिए, क्योंकि उपकरण बनाने वाली कम्पनियां आए दिन नये फीचरों के साथ अपने प्रोडक्ट बाजार में लाती है और अपने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कई आॅफर देते हैं और कई पैसे वाले नई तकनीक का प्रयोग करना अपनी शान मानते हैं।

तकनीक का उपयोग एक सामाजिक व पर्यावरणीय चिंतक के रूप में उपयोग करना सही मायनों में अच्छी सोच है क्योंकि पर्यावरण प्रदूषित होता है तो इसका सीधा असर मानव स्वास्थय पर पड़ता है। इसलिए हमें ई—कचरा बढ़ाने को रोकना है तो तकनीक का सही उपयोग करना सीखना होगा।

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