रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ ने आज स्वदेशी रूप से विकसित स्क्रैमजेट प्रोपल्शन सिस्टम का प्रयोग करते हुए हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (एचएसटीडीवी) का सफलता पूर्वक परीक्षण किया। देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने ट्विटर अकाउंट पर इसकी जानकारी साझा की। रक्षा मंत्री ने बताया कि इस सफलता के बाद अब अगले चरण की प्रगति शुरू हो गई है। वहीं, इस मौके पर राजनाथ सिंह ने डीआरडीओ और इसके वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि संस्थान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में जुटा है।
प्रोजेक्ट से जुड़े वैज्ञानिकों को रक्षा मंत्री ने दी बधाई
रक्षा मंत्री राजनाथ ने अपने ट्वीट में कहा, ‘डीआरडीओ ने आज स्वदेशी रूप से विकसित स्क्रैमजेट प्रोपल्शन सिस्टम का उपयोग कर हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। इस सफलता के साथ, सभी महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां अब अगले चरण की प्रगति के लिए स्थापित हो गई हैं।’ उन्होंने आगे कहा, ‘मैं डीआरडीओ को इस महान उपलब्धि के लिए बधाई देता हूं, जो पीएम मोदी के आत्म निर्भर भारत के सपने को साकार करने की दिशा में है। मैंने परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों से बात की और उन्हें इस महान उपलब्धि पर बधाई दी। भारत को उन पर गर्व है।’
भारत की एक प्रमुख तकनीकी सफलता: डीआरडीओ प्रमुख
डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ. जी सतीश रेड्डी ने कहा, ‘एचएसटीडीवी देश की एक प्रमुख तकनीकी सफलता है। यह परीक्षण अधिक महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों, सामग्रियों और हाइपरसोनिक वाहनों के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा। यह भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में रखता है, जिन्होंने इस तकनीक का प्रदर्शन किया।’
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क्या है हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल
आपको बता दें, भारत में हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी का सबसे पहला परीक्षण वर्ष 2019 में किया गया था। इस तकनीक का इस्तेमाल हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाने और काफी कम खर्च में सैटेलाइन लॉन्च करने में किया जाएगा। साथ ही हाइपरसोनिक और लंबी दूरी की क्रूज मिसाइलों के लिए यान के तौर पर भी इसका प्रयोग किया जाना है। एचएसटीडीवी, हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली विकसित करने संबंधी भारत के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का ही हिस्सा है। भारत उन कुछ चुनिंदा देशों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है, जहां इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। फिलहाल, अमेरिका, रूस और चीन के पास ये तकनीक है।