सेना ने अपने ही हेलीकॉप्टर को उड़ा दिया, फिर खबर चुनावों तक क्यों दबा दी जाती है?

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26 फरवरी को बालाकोट में एक टारगेट पर बम गिराने के लिए भारतीय लड़ाकू विमानों ने पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश किया था। इसमें पाकिस्तान स्थित आतंकी समूह जैश-ए-मोहम्मद के एक आतंकवादी द्वारा कश्मीर में हमले के लिए जवाबी कार्रवाई की गई। कश्मीर के पुलवामा में हुए इस आत्मघाती हमले में 40 भारतीय सुरक्षाकर्मी मारे गए थे।

बालाकोट में की गई एयरस्ट्राइक से भारत-पाक सीमा के पास आसमान में गतिविधियां बढ़ गईं। अगले दिन भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी विमानों को बाहर रखने के लिए हवाई हमले जारी रखे। इसी दौरान भारत का एक विमान पाकिस्तान में जा गिरा और पायलट को पाकिस्तानी फौज ने पकड़ लिया। जम्मू-कश्मीर के बडगाम में एक हेलीकॉप्टर को मिसाइल लगने से भारतीय वायु सेना के छह कर्मियों की मौत हो गई।

दो महीने से अधिक समय तक बडगाम की ये घटना रहस्य में डूबी हुई थी। मंगलवार को लोकसभा चुनावों के बाद आखिरकार यह खबर सामने आई है कि भारतीय वायु सेना के 6 जवान इस वजह से मारे गए क्योंकि भारतीय सेना ने अपने ही हेलीकॉप्टर में मिसाइल दाग दी।

NDTV ने बताया कि भारतीय वायु सेना के हेलिकॉप्टर को दुश्मन का विमान समझ लिया गया था। इकोनॉमिक टाइम्स ने बताया कि मिसाइल दागने के लिए जिम्मेदार अधिकारी पर गैर इरादतन हत्या का आरोप लगाया जा सकता है।

हालाँकि, मंगलवार को इन खबरों के बारे में 27 अप्रैल को बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट द्वारा संकेत दिया गया था। जिसमें कहा गया था कि हालांकि यह स्पष्ट था कि बडगाम की घटना भारतीय सेना ने अपने ही हेलीकॉप्टर को उड़ा दिया था लेकिन जांच का विवरण लोकसभा चुनावों के बाद ही जारी किया जाएगा।

इसका कारण यही रहा कि बालाकोट बमबारी और पाकिस्तानी के साथ हुई झड़प जिसमें एक पाकिस्तानी एफ -16 लड़ाकू की कथित तौर पर शूटिंग शामिल है इन सब को भारतीय जीत के रूप में चुनाव प्रचार में काम में लिया जा रहा है। एक हेलिकॉप्टर की हानि और सात कर्मियों के मारा जाना एक अलग तस्वीर लोगों के बीच पेश करता।

भारतीय जनता पार्टी ने अपने अभियान के दौरान बालाकोट की एयरस्ट्राइक का खूब उपयोग किया है। यह आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करता है, जिसके तहत राजनेता चुनाव के समय सशस्त्र बलों का उल्लेख नहीं कर सकते हैं। हालाँकि यह तब और अधिक चिंताजनक होगा जब सशस्त्र बल खुद बडगाम की घटना को चुनावों तक दबाए रखेंगे ताकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को शर्मिंदा न होना पड़े।

पिछले कुछ वर्षों में भारत के सशस्त्र बलों का राजनीतिकरण एक बड़े स्तर देखा गया है। वीके सिंह, पूर्व सेनाध्यक्ष, अब केंद्रीय मंत्री हैं। कई मौकों पर भारतीय सेना विपक्षी दलों की सीधे आलोचना करती नजर आती है।

एशिया और अफ्रीका के औपनिवेशिक राज्यों में सेना का राजनीति में गहरी हिस्सेदारी देखी जाती रही है। भारत एक अपवाद था, क्योंकि पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यह सुनिश्चित किया था कि ब्रिटिश राज से विरासत में मिली सेना को नागरिक नियंत्रण में मजबूती से रखा जाए।

देश की नई सरकार को राजनीति में भारत की सशस्त्र सेना के बढ़ते प्रलोभन का विरोध करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। नागरिक मामलों में सेना की भागीदारी कितनी विनाशकारी हो सकती है यह देखने के लिए बहुत दूर सोचने की भी जरूरत नहीं है। दक्षिण एशियाई के पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश ने लंबे समय तक सैन्य शासन का सामना किया है।

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