‘बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना…’ वाली बात दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की शादी पर बिलकुल फिट बैठती है। दोनों बॉलीवुड स्टार की शादी में पूरे देश का मीडिया दीवाना बना हुआ है। हद तो यह हो रही है कि खुद को चौथा स्तम्भ मानने वाला मीडिया स्टार कपल की एक फोटो पाने में बेबस सा महसूस कर रहा है। इसे दीपवीर की शादी का पुख्ता इंतजाम कहें या फिर भारतीय मीडिया के कमजोर सोर्स समझ नहीं आ रहा। लेकिन इस शाही शादी में मीडिया की फड़फड़ाहट साफ देखी जा सकती थी।
भारत के दो बड़े स्टार विवाह बंधन में बंधे हैं जाहिर है उन पर नजर रखना लाज़मी है। अपना धर्म मानते हुए देशभर का मीडिया दोनों सितारों की शादी वाली फोटो और वीडियो फैंस तक पहुंचाना चाहता था। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी किसी मीडिया हाउस के हाथ में फोटो या वीडियो नहीं लग पाया। मीडिया बस, लेक कोमो के बाहर की और मेहमानों की फोटो दिखाकर ही अपनी इज्जत बचाने की कोशिश करता रहा। र आखिरकार दोनों के आॅफिशियल अकाउंट से आई फोटो से ही पूरे मीडिया जगत को अपनी प्यास बुझानी पड़ी।
दो दिन की शादी में तमाम चैनलों, साइट्स और अखबारों में दोनों स्टार की शादी की पल—पल की खबर दिखाई देती रही। खासकर चैनलों और साइट्स पर तमाम उट पटांग हथकंडे अपनाए गए ताकि इस स्टार कपल की शादी को भुनाया जा सके। टीआरपी और व्यूअरशिप के खेल में मीडिया ने एक बार फिर रिपोर्टिंग की नई परिभाषा गढ़ दी। वे खबरें भी चलाई गईं जिनका दूर—दूर तक दोनों की शादी से कोई लेना देना नहीं था। खबरों ने इस कदर बेवकूफ बनाया कि फैंस ठगा सा महसूस करने लगे।
चलिए मान लिया कि दो बड़े सितारों की शादी थी, कवर करना भी जरूरी था। लेकिन ये कहां लिखा है कि भीड़ गलत दिशा में जा रही है तो आप भी आंख बंद करके भागने लग जाओ। आप तो मीडिया हो, आप लोगों का नजरिया बदलने की ताकत रखते हो तो फिर आपने इसे एक आम शादी की तरह प्रजेंट क्यों नहीं किया। क्यों नहीं दोनों की ओर से आने वाले आॅफिशियल फोटो या वीडियो का शांति से इंतजार नहीं किया। यदि सामने वाला प्राइवेसी चाह रहा है तो आपने उसकी इस इच्छा का सम्मान क्यों नहीं किया। कुछ दिखाना या पढ़ाना ही था तो वह बताते जो लॉजिकल था या जो सच में शादी से जुड़ा था। बेवजह इतना हाइप क्रिएट क्यों कर दिया कि विदेशी मीडिया भारतीय मीडिया को कमजोर तक कहने लगा।
यह कोई जंग तो थी नहीं जहां हर हाल में जीतना जरूरी था। यह दो प्यार करने वालों की शादी थी, इसे प्यार से ही डील किया जा सकता था। इतनी बैचेनी तो घर की शादी में भी नहीं दिखाई जाती, जितनी मीडिया ने इस शादी के लिए दिखाई।
इस पूरे खबरी आंदोलन के इतर एक सवाल और ज़हन में आता है कि देश में इतने मुद्दे भरे पड़े हैं कि रोज एक की बात करें तो भी सालों निकल जाएं। लेकिन दीपवीर की पल—पल की अपडेट देने वालों को शायद यह इतना जरूरी नहीं लगता। यहां पहले खबर ब्रेक करनेे की होड़ लगी है और दूसरी तरफ समस्याओं से परेशान लोग इस आस में हैं कि मीडिया वाले ही पालनहार बनकर सामने आ जाएं, कम से कम समस्या की ओर ध्यान तो जाएगा।
खबरों के लिए ललायित मीडिया बहुत तेजी से भाग रहा है। कई बार यह समझना मुश्किल हो जाता है कि भागकर जाना कहां चाहता है? साथ ही चिंता यह भी है कि तेजी से भागने के चक्कर में कहीं अपाहिज ना हो जाए।
दीपवीर की जय, मीडिया की पराजय???