अगर आपसे सवाल किया जाए कि प्यार या गुस्से में से किसी एक को चुनना हो तो आप क्या चुनेंगे। शायद और बिना सोचे ‘प्यार’ बोलेंगे। हर कोई चाहता है कि उसके हिस्से प्यार आए। यह इंसानी स्वभाव है उसे प्यार और अपनेपन की हमेशा जरूरत होती है। फिर आप सोचेंगे कि हमने ‘गुस्से’ का आॅप्शन क्यों दिया? तो वो इसलिए कि हम अपने दिन प्रतिदिन की झंझटों और काम में इतने उलझ से गए हैं कि हम अक्सर गुस्से को अपनी जिंदगी में शामिल करते जा रहे हैं। जिस तरह हम चाहते हैं कि हमें प्यार मिले और सब हमसे हमेशा स्नेह से मिलें तो बिलकुल ऐसी ही अपेक्षा सामने वाला भी आप से रखता है।
लेकिन आप गौर करें तो हम अक्सर छोटी छोटी बातों पर झल्ला जाते हैं। बातों को समझने और विचारने की बजाय हम तुंरत गुस्से के रूप में रिएक्ट करते हैं। यह गुस्सा ही है जो हमारी बातों को बिगाड़ने में सबसे बड़ी भूमिका अदा करता है। प्यार से जब हम सिचुएशन को डील करते हैं तो वह उसी समय सुलझ जाती है, लेकिन जैसे ही किसी भी सिचुएशन में गुस्से को तवज्जो देते हैं तो वहां बात निश्चित तौर पर बिगड़ती है। इससे कोई भी रिश्ता हो वह संभलने की बजाय और उलझने लगता है।
साथ ही यह गुस्सा आपको भी अंदर ही अंदर जख्म देता है। ऐसे में कोशिश करिए कि आप कितना ही परेशान क्यों ना हो कम से कम गुस्से को तो बीच में नहीं आने देंगे। किसी भी बात पर रिएक्ट करने से पहले एक बार सोच लें कि आप उस सिचुएशन में सामने वाले से कैसी अपेक्षा रखते? जब आप दिल से इस पर सोचेंगे तो अपने आप ही गुस्से को साइड में कर देंगे और तसल्ली से मामले को सुलझाने की कोशिश करेंगे।
शायद इसलिए ही कहते हैं कि प्यार से बढ़कर कोई चीज़ नहीं होती। हम सभी के पास यह एक ऐसा हथियार है, जिससे हमे बड़ी से बड़ी लड़ाई लड़ सकते हैं, तो अगली बार खुद के साथ साथ दूसरों के लिए भी ‘प्यार’ ही चुनिए।