फानी जैसा तूफान याद दिलाता है कि जलवायु परिवर्तन भी राजनैतिक मुद्दा होना चाहिए!

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ओडिशा ने पिछले हफ्ते एक भयंकर चक्रवात का सामना किया जिसमें 38 लोगों की जान चली गई। पिछले 150 वर्षों में यह तीसरा ऐसा चक्रवात था जिसने इस एरिया को काफी प्रभावित किया। लेकिन जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया तेज हो रही है और बंगाल की खाड़ी गर्म होती जा रही है मौसम की ऐसी अधिक घटनाओं की संभावना भी तेज होती है।

कई और ऐसी चीजें भी थीं जिन पर ध्यान देना चाहिए। आंध्र प्रदेश में तापमान तीन डिग्री के साथ 46 डिग्री के लेवल को पार कर गया जिसके कारण तीन लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों हीट स्ट्रोक से पीड़ित थे। पूरे भारत में पानी की कमी हो रही है। इसके अलावा, एक नई रिपोर्ट जो हमारे ग्रह पर इंसानों के प्रभाव की एक तस्वीर पेश करती है उसका कहना है कि जलवायु परिवर्तन न केवल प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहा है बल्कि इससे आनुवंशिक विविधता को भी खतरा है।

बहुत ही कम लोगों ने इस बात को उठाया है कि भारत के डेढ़ महीने के लंबे चुनाव ने जलवायु परिवर्तन को जैसे नजरअंदाज ही किया है। भले ही फिर ये हमारी सबसे बड़ी जरूरतों में से ही क्यों ना हो।

लेखक ओमैर अहमद नोटों के अनुसार चुनावों के दौरान कई तरह के मुद्दे सामने आते हैं जिनमें से कई जरूरी भी होते हैं जिसमें गरीबी से लेकर रोजगार तक शामिल है। लेकिन अधिकतर लोगों को यह पता नहीं है कि जलवायु परिवर्तन और गरीबी या रोजगार आपस में कैसे जुड़े हुए हैं। ये सारे जलवायु परिवर्तन के ही परिणाम हैं। लेकिन फिर भी कोई नेता स्टेज पर खड़ा होकर इसके बारे में बात तक नहीं करता है।

बेशक, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के घोषणापत्रों ने इस मुद्दे को कुछ स्थान दिया है। बीजेपी ने अक्षय ऊर्जा और “ग्रीन बोनस” को अपने मेनिफेस्टो को जगह दी है वहीं कांग्रेस देश के जल निकायों को बहाल करने का वादा करती दिख रही है।

लेकिन कोई भी जलवायु परिवर्तन के व्यापक प्रभावों को ध्यान में नहीं रखता है। उदाहरण के लिए, एक रिपोर्ट का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन ने पिछले 50 वर्षों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को 30% तक धीमा कर दिया है। अब स्टडी से साफ सामने आता है कि जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार गरीब को ही पड़ती है।

यह परमाणु युद्ध की तरह कुछ बेनाम खतरा नहीं है, जिसे भारतीय नहीं देख सकते। पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभाव चारों ओर हैं और लाखों लोगों को बर्बाद कर रहे हैं।

अब राजनेताओं और सार्वजनिक कार्यालय को जरूरत है कि वे भारतीयों को जलवायु परिवर्तन को समझने में मदद करे ताकि उन्हें पता चल सके कि मौसम काफी खराब हो रहे हैं। मौसम अपनी एक्सट्रीम स्टेट में पहुंच रहे हैं जिससे चक्रवात, तूफान जैसी स्थिति पैदा हो रही है। पानी की समस्या लगातार बढ़ रही है।

यूनाइटेड किंगडम ने इस महीने इस तरह का एक प्रयास किया जब उसने “जलवायु आपातकाल” घोषित किया। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि इस तरह के प्रयास महज दिखावटी हैं। कोई भी सरकारी आदेश जो सरकार को जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए अपने प्रयासों को रेखांकित करने और इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए परिणामों को बदलने में सहायता करेगा वही प्रभाव हमें दिखेगा भी।

भारत को निस्संदेह बहुत बड़ी संख्या में समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसमें सिर्फ व्यापक रूप से फैली गरीबी और बेरोजगारी नहीं है। लेकिन चुनावी मौसम में चक्रवात फानी की घुसपैठ से राजनेताओं और मतदाताओं को याद आना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन पर ध्यान देने के लिए सांप्रदायिक राजनीति से बाहर आने की जरूरत है और इस पर काफी बड़ी चर्चा भी होनी चाहिए।

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