चित्तरंजन दास ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान मुफ्त में लड़े थे क्रांतिकारियों के केस

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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख सेनानियों में एक ‘देशबंधु’ चित्तरंजन दास की 16 जून को 98वीं पुण्यतिथि है। वो एक राष्ट्रवादी नेता के साथ-साथ प्रसिद्ध वकील और एक पत्रकार भी थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त कई क्रांतिकारियों के केस लड़े। चित्तरंजन ने ‘अलीपुर षड़यंत्र काण्ड’ (1908) के अभियुक्त अरबिंदो घोष का बचाव किया था। वहीं, उन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन करते हुए वकालत ही छोड़ दी थी।

चितरंजन दास ने स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए अपनी सारी संपत्ति मेडिकल कॉलेज को दान कर दी थी। उन्होंने कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वह पार्टी अध्यक्ष भी रहे। बाद में कांग्रेस ने उनके ‘कौंसिल एंट्री’ प्रस्ताव को मानने से मना कर दिया तो उन्होंने ‘स्वराज पार्टी’ की स्थापना कीं। इस अवसर पर जानिए चितरंजन दास के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

चित्तरंजन दास का जीवन परिचय

चित्तरंजन दास (सी आर दास) का जन्म 5 नवंबर, 1870 को बंगाल के कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता भुवन मोहन दास थे, जो एक वकील और पत्रकार ​थे। उनके परिवार के सदस्य ब्रह्म समाज को मानते थे। उन्होंने वर्ष 1890 में कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक उत्तीर्ण की।

बाद में वह आईसीएस की तैयारी करने के लिए इंग्लैंड गए, लेकिन वह परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर सके। यहीं से उन्होंने वर्ष 1892 में बैरिस्टर की और भारत लौट आए। चितरंजन ने कोलकाता से वकालत शुरू कर दी। सी आर दास ने उन भारतीयों के मुकदमें लड़े, जो राजनीतिक अपराधों में लिप्त थे। इससे उन्हें प्रसिद्धि मिलीं। वर्ष 1908 में उन्होंने अलीपुर बम कांड में अरबिंदो घोष का बचाव सफलता पूर्वक किया, इससे वह काफी प्रसिद्ध हो गए।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान

सी आर दास ने देश की आजादी में योगदान दिया था। वह देश की राजनीति में वर्ष 1917 से सक्रिय हो गए थे। इस समय कलकत्ता में हुए अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष पद श्रीमती एनी बेसंट को दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। वह स्वदेशी में विश्वास रखते थे। वर्ष 1920 में उन्होंने अपना विलासी जीवन त्याग दिया और देश की आजादी के लिए आगे आए। उन्होंने खादी का समर्थन किया। दास ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए असहयोग आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने वकालत छोड़ दी।

चित्तरंजन दास ने अपनी सारी संपत्ति मेडिकल कॉलेज और महिला अस्पतालों को दान कर दिया। उनकी इस दानशीलता के कारण ही जनता इन्हें ‘देशबंधु’ कहने लगी। असहयोग आंदोलन के दौरान जिन छात्रों ने स्कूल छोड़ दिए थे, उनके लिए उन्होंने ढाका में ‘राष्ट्रीय विद्यालय’ की स्थापना की।

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कांग्रेस से अलग होकर खुद की ‘स्वराज पार्टी’ बनाई

वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान चित्तरंजन दास को उनकी पत्नी और बेटे के साथ छह माह के लिए जेल में डाल दिया गया। इसी वर्ष उन्हें अहमदाबाद कांग्रेस के अध्यक्ष चुना गया था। दिसंबर 1922 में दास को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुना, लेकिन बाद में विधानसभा चुनावों में भाग लेने पर मतभेद के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। बाद में उन्होंने मोतीलाल नेहरू के साथ​ मिलकर स्वराज पार्टी की स्थापना की, जो कांग्रेस की सहयोगी थी। चितरंजन दास बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह उच्च कोटि के राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी के साथ बंगला भाषा के अच्छे कवि तथा पत्रकार ​थे। उन्होंने बंग साहित्य में योगदान दिया था।

चित्तरंजन दास ने ‘सागर संगीत’, ‘अंतयार्मी’, ‘किशोर किशोरी’ जैसे काव्यग्रंथ लिखे। उन्होंने नारायण नामक वैष्णव-साहित्य-प्रधान मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया। वर्ष 1906 में प्रारम्भ हुए ‘वंदे मातरम्’ नामक अंग्रेजी पत्र के संस्थापक मंडल तथा संपादक मंडल दोनों में इनकी भूमिका रही थी। इतना ही नहीं उन्होंने बंगाल स्वराज्य दल के मुखपत्र ‘फॉर्वर्ड’ की पूरी जिम्मेदारी उठाई।

स्वतंत्रता आंदोलनकारी चित्तरंजन दास का निधन

अपने जीवन में देश की राजनीति और स्वतंत्रता आंदोलन में चित्तरंजन दास इतने व्यस्त रहने लगे कि उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। वर्ष 1925 में वह स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए दार्जिलिंग चले गए, लेकिन उनका स्वास्थ्य बिगड़ता ही चला गया। 16 जून, 1925 को उनका निधन हो गया।

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