चौधरी चरण सिंह ने भूमिगत होकर गुप्त क्रांतिकारी संगठनों का किया था संचालन

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भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, अपने समय के प्रखर किसान नेता व देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की 23 दिसंबर को 120वीं जयंती है। वे एक ईमानदार और स्वच्छ छवि के नेता थे। चरण सिंह शुरू से ही राजनीति में भाई-भतीजावाद, जातिवाद और भ्रष्टाचार के मुखर विरोधी रहे। वे एक ऐसे सांसद भी थे, जो अपने कुशल व्यवहार, वाक्पटुता और दृढ़ विश्वास के लिए जाने जाते थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने वकालात की और स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया। चौधरी चरण सिंह बाद में राजनीति में उतरे और यूपी के मुख्यमंत्री से देश के प्रधानमंत्री बनने तक का लंबा सफर तय किया। इस मौके जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

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चौधरी चरण सिंह का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को उत्तरप्रदेश में मेरठ जिले स्थित नूरपुर गांव में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता चौधरी मीर सिंह एक किसान थे। चरण सिंह ने वर्ष 1923 में विज्ञान में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे आगरा विश्वविद्यालय से वर्ष 1925 में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त कीं। इसके बाद उन्होंने कानून की शिक्षा ली और अपनी डिग्री पूरी करने के बाद गाजियाबाद में वकालत की शुरुआत कीं। वर्ष 1929 में वे मेरठ आकर रहने लगे और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में चरण सिंह का योगदान

जब भारत में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष जारी था, तो वह भी उसमें सम्मिलित हो गए। वर्ष 1929 में जब कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नहेरू ने अपने अध्यक्षीय भाषण में पूर्ण स्वराज्य का उद्घोष किया तो युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया।

वर्ष 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू हुआ और इस आंदोलन के अंतर्गत पूरे देश में कतिपय स्थानों पर नमक बनाकर कानून तोड़ा गया। ऐसे में युवा चरण सिंह कब पीछे रहने वाले थे। उन्होंने नमक कानून तोड़ने का समर्थन करते हुए गाजियाबाद में बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाकर गांधी जी का समर्थन किया। इस आंदोलन में उन्हें गिरफ्तार किया गया और छह महीनें की सजा हुईं।

जेल से छूटने के बाद आजादी के लिए समर्पित हो गए

चौधरी चरण सिंह जेल से छूटने के बाद और भी अधिक जज्बे के साथ देश की आजादी के लिए समर्पित हो गए। उन्होंने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रति समर्पित कर दिया। वर्ष 1940 में द्वितीय विश्व युद्ध के विरोध में गांधी जी द्वारा चलाए गये व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में भी चरण सिंह को गिरफ्तार किया गया और फिर अक्टूबर 1941 में रिहा किये गये।

कांग्रेस पार्टी ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंतिम आंदोलन ‘भारत छोड़ो’ 8 अगस्त, 1942 को शुरू किया। इस आंदोलन में गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा देते हुए देशवासियों से आजादी की लड़ाई में अपना योगदान देने के लिए आह्वान किया। 9 अगस्त, 1942 को आंदोलन को अनेक कांग्रेस नेताओं और आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया, तो युवक चरण सिंह ने भूमिगत होकर गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, बुलन्दशहर, सरथना के गांवों में गुप्त क्रांतिकारी संगठनों का संचालन किया।

चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक सफर

चौधरी चरण सिंह की छवि एक किसान नेता की रही। भारत की आजादी के बाद उत्तर प्रदेश मन्त्रिमण्डल में चौधरी चरण सिंह को स्वायत शासन और स्वास्थ्य विभाग में सचिव का पद मिला। उन्होंने जमींदारी लेखपालों की नियुक्ति की। कृषि और किसानों के हित में वर्ष 1958 में लागू चकबन्दी अधिनियम चौधरी चरण सिंह का किसानों के हित में क्रान्तिकारी कदम था। इसी साल उत्तर प्रदेश में भूमि संरक्षण कानून भी पारित कराया। उन्होंने ही कृषि आपूर्ति संस्थानों की योजना चलाई, जिससे किसानों के लिए सस्ती खाद, बीज आदि की सुविधा मिलने लगी।

1967 को पहली बार वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने

सन् 1967 में कांग्रेस छोड़कर, 3 अप्रैल, 1967 को पहली बार वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 17 अप्रैल, 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। मध्यावधि चुनाव में उनकी पार्टी को अच्छी सफलता मिली और वह दोबारा 17 फ़रवरी, 1970 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बनने को मौका मिला, तो उन्होंने मंडल आयोग और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। वर्ष 1979 में उन्हें देश के वित्त मंत्री और उप-प्रधानमंत्री के रूप कार्य करने का मौका मिला, इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गरीबी मिटाने तथा मूलभूत जरूरतों को पूरा करने पर दिया जोर

जब प्रधानमंत्री पद से मोराजी देसाई ने त्यागपत्र दे दिया तो 28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह को देश का प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में उन्होंने गरीबी मिटाने और नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयत्न किया। 15 अगस्त, 1979 को लाल किले की प्राचीर से उन्होंने देशवासियों को सम्बोधित करते हुए संदेश दिया, ‘राष्ट्र तभी सम्पन्न हो सकता है, जब उसके ग्रामीण क्षेत्र का उन्नयन किया गया हो, तथा ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति अधिक हो।’

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का निधन

चरण सिंह अपने राजनीतिक जीवन में जातिवाद के घोर विरोधी थे। एक ईमानदार नेता के रूप में ​चरण सिंह का जीवन एक खुली किताब की तरह था, जिन पर कोई दोष नहीं था। उन्होंने जीवन के किसी भी क्षेत्र में भ्रष्टाचार को सहन नहीं किया। ऐसे जुझारू, कर्मठ और किसान नेता चौधरी चरण सिंह का 29 मई, 1987 को निधन हो गया।

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