देश के कैंसर पीड़ित मरीजों व उनके परिवार वालों के लिए राहत की खबर है क्योंकि जितना घातक यह रोग है, उतना ही महंगा इसका इलाज। पर सरकार ने कैंसर के इलाज में उपयोग की जाने वाली गैर-अुनसूचित (नॉन-शेड्यूल्ड) 42 दवाओं को मूल्य नियंत्रण के दायरे में लाने का फैसला किया है। सरकार ने इनके लिए व्यापार मार्जिन 30 फीसदी तक सीमित कर दिया है, जिसके बाद ये दवाएं 85 प्रतिशत तक सस्ती हो जाएंगी। डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्युटिकल्स ने इसके लिए एक नोटिफिकेशन जारी किया है।
राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी NPPA) ने कीमत नियंत्रण आदेश, 2013 के पैरा 19 के अंतर्गत जनहित में असाधारण शक्तियों का उपयोग कर कैंसर के इलाज में काम आने वाली 42 नॉन-शेड्यूल्ड दवाओं को शामिल किया है।
105 ब्रांड्स के एमआरपी 85 प्रतिशत तक घटेगा
NPPA के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, इन दवाओं के 105 ब्रांड्स का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) 85 प्रतिशत तक घट जाएगा। अभी कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली 57 शेड्यूल्ड दवाएं प्राइस कंट्रोल के तहत हैं। नोटिफिकेशन के अनुसार, अब एमआरपी पर ट्रेड मार्जिन को 30 पर्सेंट तक सीमित करने के लिए कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली 42 दवाओं को चुना गया है।
दवा कंपनियों को किमतों को दोबारा गणना करने का समय 7 दिन
सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है, ‘एनपीपीए के पास मौजूद आंकड़ों के अनुसार, इससे 72 फॉर्म्यूलेशंस और लगभग 355 ब्रांड्स कवर होंगे। इस सूची को अंतिम रूप देने के लिए अस्पताल और फार्मा कंपनियों से और डेटा जुटाए जा रहे हैं।’ दवा कंपनियों को कीमतों को दोबारा कैलक्युलेट करने और उनकी जानकारी छच्च्।, राज्यों के ड्रग कंट्रोलर, स्टॉकिस्ट्स और रिटेलर्स को देने के लिए 7 दिन का समय दिया गया है।
8 मार्च से लागू होंगी नई कीमतें
नई कीमतें 8 मार्च से लागू होंगी। NPPA अभी नेशनल लिस्ट ऑफ इसेंशियल मेडिसिन्स (NLEM) में मौजूद दवाओं की कीमतें तय करती है। अभी तक लगभग 1 हजार दवाओं को प्राइस कंट्रोल के तहत लाया गया है। नॉन-शेड्यूल्ड दवाओं के लिए प्रत्येक वर्ष 10 पर्सेंट तक कीमत बढ़ाने की अनुमति है। इसकी निगरानी NPPA करती है।
क्या है कैंसर व उससे बचाव
इस वर्ष विश्व कैंसर दिवस का विषय था, “i am and I will” 2018 में कैंसर के कारण होने वाली मौतों की अनुमानित संख्या 9.5 मिलियन थी जो एक दिन में 26,000 मौतों के बराबर थी। यह संख्या बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि पर्यावरणीय तनाव बढ़ता है हवा की गुणवत्ता बिगड़ती जा रही है। लाइफस्टाइल और खाने की आदतें भी बदलती जा रही हैं।
कैंसर शरीर की कोशिकाओं के समूह की असामान्य एवं अव्यवस्थित वृद्धि है। यदि समय पर जांच व इलाज न हो तो यह शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल सकता है।
पदार्थ जिनके कारण फ्री रेडिकल डेमेज होता है और वे कैंसर कोशिकाओं को बढ़ावा देते हैं उन्हें कार्सिनोजेन कहा जाता है।
कार्सिनोजेन्स कई तरह के एजेंट हो सकते हैं जैसे:
भौतिक कार्सिनोजेन्स (पराबैंगनी और आयनकारी विकिरण)
जैविक कार्सिनोजेन्स (कुछ बैक्टीरिया, वायरस और परजीवी)
रासायनिक कार्सिनोजेन्स (उद्योग द्वारा निर्मित सिंथेटिक उत्पाद, धुएं के घटक, कीटनाशक अवशेष, खाद्य उद्योग में उपयोग किए जाने वाले रसायन आदि)
उपरोक्त के अलावा, कुछ कारक हैं जो कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं, इनमें शामिल हैं:
बढ़ती उम्र
तंबाकू, शराब का उपयोग
जीर्ण संक्रमण
अधिक वजन होने से स्तन, एसोफैगल, कोलोरेक्टल, डिम्बग्रंथि और एंडोमेट्रियल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
इन्हें कम मात्रा में लेें
खाने की वो चीजें जिससे कई तरह के कैंसर के जोखिम को बढ़ावा मिलता है जैसे:
अत्यधिक नमकीन चीजें
अत्यधिक नमकीन खाद्य पदार्थ जैसे कि मीट, नमकीन मछली आदि का नियमित सेवन करने से पेट की परत को नुकसान पहुंचता है और सूजन पैदा होने से पेट का कैंसर हो सकता है।
हमेशा ताजा और स्थानीय खाने की चीज को ही महत्त्व दें।
प्रोसेस्ड और स्मोक्ड मीट
हैम, बेकन, सॉसेज सहित प्रोसेस्ड मीट से आंत्र, पेट और अग्नाशय के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। जब स्मोक्ड खाद्य पदार्थ उच्च तापमान पर पकाया जाता है, तो उनमें मौजूद नाइट्रेट अधिक खतरनाक नाइट्राइट में परिवर्तित हो जाते हैं।
चार्टेड मीट
जब रेड मीट और प्रोसेस्ड मीट को उच्च तापमान पर ग्रिल किया जाता है, तो यह डीएनए को नुकसान पहुंचाने वाले हेट्रोसाइक्लिक एमाइंस और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन पैदा करता है। इसके स्थान पर मीट को नोरमल आंच पर पकाना चाहिए।
माइक्रोवाएबल पॉपकॉर्न
माइक्रोवाएबल पॉपकॉर्न का बैग पेरफ्लुओरो-ऑक्टानोइक एसिड (पीएफओए) में शामिल है जो एक संभावित कैंसरजन है। मकई के दानों को आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जाता है। यह कृत्रिम मक्खन से निकलने वाले धुएं में डायसेटाइल होता है और यह मनुष्यों के लिए विषाक्त होता है। इसलिए अपने पॉपकॉर्न को पारंपरिक तरीके से बनाएं।
सोडा
सोडा हानिकारक हो सकता है जो चीनी और छिपे हुए शक्कर के टन से भरा हुआ है। तो अच्छे, नींबू पानी या नींबू सोडा को ही चुनें। थोड़ी चीनी मिलाना हानिकारक नहीं है।
छिपे हुए शर्करा युक्त खाद्य पदार्थ:
उच्च फ्रुक्टोज कॉर्न सिरप जैसे छिपे हुए शर्करा प्रमुख कैंसर में से एक हैं जो खाद्य पदार्थों को सीरम इंसुलिन में स्पाइक्स की ओर ले जाते हैं और कैंसर कोशिकाओं को भी बढ़ाते हैं।
आर्टिफिशियल मीठा:
कुछ कैलोरी बचाने के लिए आर्टिफिशियल मिठास का उपयोग करना समझदारी का निर्णय नहीं है।
डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ:
अधिकांश कैन के अस्तर में बिस्फेनॉल ए (बीपीए) होता है जो कैंसर के खतरे को बढ़ाने के लिए जाना जाता है। कई प्लास्टिक पैकेजिंग में BPA भी होता है। डिब्बाबंद सामान, टमाटर और उसके उत्पाद सबसे खराब हैं क्योंकि उनकी अम्लता भोजन में अधिक बीपीए का कारण बनती है।
शराब:
कई अध्ययनों ने शराब के सेवन और कैंसर के बीच की कड़ी को स्थापित किया है, हालांकि सटीक तंत्र को समझा नहीं गया है। यह वजन बढ़ाने को बढ़ावा देने के माध्यम से हो सकता है। इसके हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए इसका सेवन बंद करना चाहिए।
खाद्य पदार्थों में कीटनाशक अवशेषों का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और इससे कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। कुछ कीटनाशकों के अवशेषों को खत्म करने का एक सरल तरीका यह है कि आप अपने फल, सब्जी और ताजी उपज को 4 भाग पानी और 1 भाग सिरके में डुबो कर लगभग 20 मिनट तक डुबोकर रखें और फिर साफ पानी भी धो लें।
इन्हें अधिक मात्रा में लें ताकि कैंसर से बचाव हो सके
कुछ खाद्य पदार्थ हैं जो कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में मदद करते हैं। इनमें हल्दी, लहसुन, खट्टे फल, जामुन, टमाटर, बैंगनी-लाल फल और सब्जी, उच्च फाइबर साबुत अनाज, नट और बीज, बीन्स, पत्तेदार सब्जी आदि शामिल हैं।
बच्चों में शुरू से ही हरी सब्जियों व ताजे फलों को खाने की आदत डालें।