ओ! साहब आप पर्यावरण के पंडित अवश्य हो, पर भाग दौड़ भरी जिन्दगी से आप रूबरू नहीं हो। आपकी यह रिपोर्ट केवल किसी अखबार या मीडिया की खबर जरूर बन सकती है पर हाईप्रोफाइल लाइफ जीने वाले लोगों के लिए तो, ये एक पंडित के राशिफल की तरह है जो उसे मानते अवश्य है पर अपनी रीयल लाइफ में आजमाते नहीं। ये पहले के रूढ़िवादी लोग नहीं है जो किसी साणे-भोपे की बात मानकर भगवान या देवी-देवताओं के नाम से डर जाएंगे। ये आधुनिक युग के हाईप्रोफाइल लाइफ वाले हैं जो मानते हैं जीने के हैं चार दिन, बाकी…
आज का यह वर्ग आपके शोधों को सही अवश्य मान ले लेकिन असल जिंदगी में इन शोधों से डरने वाले नहीं क्योंकि इन्हें एक मंत्र याद है बस लाइफ को एंजॉय करना है। हां, उन्हें सिखाया भी यही जा रहा है। फिर देखा नहीं पूरा का पूरा ग्लैमर उन्हें उसी अंदाज में जीना सिखा रहा है।
वे कहते हैं जीना सिर्फ मेरे लिए… प्रकृति का क्या वो उनकेे अकेले की बस की बात नहीं जो उसका शुद्धिकरण कर सके।
कितनी ही शोध प्रकाशित हो चुकी हैं पूरी दुनिया में। पर क्या सीखा लोगों ने? ग्लोबलाइजेशन के दौर में बस मुनाफा हर व्यक्ति के जेहन में घर कर गया। जिसका परिणाम आपके शोधों में नजर आ रहा है। सबके सब इंटेलिजेंट है, तभी तो एक-दूसरे को नीचा दिखाना चाहते हैं।
ओ! सहब ये पर्यावरण प्रदूषण की रिपोर्ट उनके प्रोफेशन में अभी तक कतई बाधक नहीं बनी। आप काहे दुश्मनी मोल लेते हो इन कारोबारियों से, वे आपके शोध को अपने ही अंदाज में विज्ञापन के जरिए, ऐसा बदलेंगे की उनका कारोबार दिन दुगुना और रात चौगुनी बढ़ जाएगा और सरकारें, वे तो पांच साल रहती है। बस मुनाफा दिखना चाहिए।
देखा नहीं वे लोग विज्ञापन में बोलते हैं हमारा प्रोडक्ट या यह वाहन इकोफ्रैंडली है। आप इसे खरीदें क्योंकि यह पुराने मॉडल के मुकाबले बेहतर है, आपके परिवार और पर्यावरण दोनों के लिए और हमारे बंधुजन को क्या, घरों में कई वाहन खड़े हुए हैं पर नया मॉडल बाजार में क्या आया, ले आते हैं दिखावे के वास्ते। पैसों की मत पूछिए, कितने ही लाखों या करोड़ों की हो बस खरीद लेते हैं।
हां, भई उनके आइडियल ने उसके फीचर्स का शानदार तरीके से विज्ञापन किया, ये मत पूछिये उसने इसका कितना मेहनताना लिया और वह कितना अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर खरी है। बस, आप तक कम्पनी व मॉडल की खासियत पहुंचा दी, फिर क्या होड़ाहोड़ में लोगों की कतारें शोरूम पर दिख जाती है। पर आजकल तो प्री बुकिंग ऑनलाइन पर उपलब्ध है लाइनों की भी क्या जरूरत।
एक-दो वर्ष पहले यानि 1 अप्रैल, 2017 से सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार बीएस-3 मॉडल की बिक्री पर रोक लगा दी जाएगी। तो इसके बाद ऑटो कम्पनियों ने बीएस-3 मॉडल की गाड़ियां बचने के लिए इन पर भारी छूट देकर लोगों को खूब आकर्षित किया।
यानि न कम्पनियों को लोगों के स्वास्थ्य की चिंता थी और न ही लोगों को। बस, उन्हें तो लगा इससे बड़ा ऑफर उनको जीवन में कभी नहीं मिल सकता, फिर क्या शहरों में ऑफर की खबर आग की तरह फैल गई और कई शोरूम पूरा का पूरा खाली और वो भी दो-तीन दिनों में हजारों गाड़ियां कम दरों में बेची व खरीदी गईं।
अब बताइए, साहब आपकी रिपोर्ट का क्या, लोगों को मुनाफा चाहिए। स्वास्थ्य का क्या वे तो डॉक्टर से इलाज करवा लेंगे। वे पैदल चलना पसंद अपनी मर्जी से नहीं करते, वे किसी स्वास्थ्य विशेषज्ञ की बातें बहुत जरूरी होने पर मानते हैं। और अब तो सुबह भ्रमण के लिए जाना जरूरी है।
भ्रमण! हां, आजकल लोग बड़े शहरों में मॉर्निंग वॉक के लिए जाते हैं, पर उनका जाना-न-जाना बराबर है। अक्सर देखा जाता है लोग कॉलोनी के छोटे पार्कों की अपेक्षा शहर के बड़े पार्क में जाना पसंद करते हैं। पर वहां तक जाने के लिए समयाभाव के कारण वे अपने वाहन का प्रयोग जानबूझकर करते हैं। वे खुद स्वास्थ्य लाभ ले पाते हैं या नहीं पर पर्यावरण का दूषित अवश्य कर आते हैं।
शोध में जाहिर चिंता काफी हद तक सही है पर इसे प्रबुद्ध वर्ग तक कैसे लेकर जाएं यही प्रश्न बड़ा है?
जब तक बड़ा वर्ग यानि पूंजीपति, अधिकारी व बड़े जॉब्स प्रोफाइल वाले लोग पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के साथ नहीं उठायेंगे। तब तक न कोई शोध लोगों के मन में डर जगा पाएगा और न ही अंधी दौड़ में भागती जिन्दगी को रोक पायेगा। फिर भले ही लोग ऑक्सीजन की बोतल अपनी नाकों में लगाने के लिए पैसे खर्च कर देंगे, पर थोड़ा सा त्याग अपनी जननी प्रकृति के प्रति कभी नहीं करेंगे।
यह रिपोर्ट एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट एट द यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो ने जारी की है।
वायु प्रदूषण पर शोध में बताए दुष्परिणाम –
- घट रही है मानव की आयु – दिल्लीवासियों की उम्र 10 साल कम, वहीं जयपुरवासियों के लिए भी खतरे का अलार्म बजा 4.2 साल कम उम्र के साथ।
- सबसे प्रदूषित शहरों में जयुपर पहुंचा 12वें स्थान पर, जोधपुर भी 14वें स्थान पर।
- बढ़ रहा मानक पीएम 10 की ओर।
- वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और दिल्ली में है। इन राज्यों में पांच साल से कम उम्र के लगभग 1 करोड़ 29 लाख बच्चे प्रदूषित हवा की चपेट में हैं।
गुलिस्तां को आबाद रखने की जिम्मदारी तो हम सभी की है लेकिन यहां तो हर शाख पर उल्लू बैठा है, बर्बादे गुलिस्तां….