तथागत सत्पथी : जो अपने 13 साल के बेटे की जिद पर राजनीति छोड़ अब पत्रकारिता करेंगे !

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ऐसा कहा जाता है कि राजनीतिक लालसा एक ऐसी चीज होती है जो उम्र के साथ बहुत तेजी से बढ़ती है, तभी तो हमारी भारतीय राजनीति में नेता 80 सावन गुजारने के बाद भी चुनाव लड़ने का सपना देखते हैं। राजनीति का मोह ही ऐसा है कि छोड़े ना छूटे।

लेकिन आज हम जिनके बारे में आपको बताने जा रहे हैं उन्होंने ऊपर बताई गई इन सारी बातों को सिरे से खारिज कर दिया है। जी हां, करीब 62 साल की उम्र में ओडिशा के सत्ताधारी दल BJD से चार बार सांसद, पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे, तथागत सत्पथी ने राजनीति से सन्यास का ऐलान कर हर किसी को चौंका दिया है। राजनीति को अलविदा कहकर अब वो फिर से पत्रकारिता का रूख करेंगे।

आपने लोगों को पत्रकारिता में आधी से ज्यादा जिंदगी गुजारने के बाद राजनीति में आराम फरमाते देखा होगा लेकिन तथागत इसके एकदम उलट निकले। लोगों की सेवा करने का एकमात्र जरिया राजनीति को ना समझते हुए पत्रकारिता में आने का यह उदाहरण देश के सामने एक मिसाल है।

राजनीति छोड़ने को लेकर तथागत कहते हैं कि “उनका 13 साल का बेटा काफी समय से उनको पत्रकारिता पर फोकस करने के लिए कह रहा है। इसके लिए वो चाहता है कि मैं घर रहूं और पत्रकारिता पर ध्यान दूं”।

कौन है तथागत सत्पथी?        

राजनीतिक परिवार में जन्मे तथागत की मां ओडिशा की पूर्व मुख्यमंत्री और महान लेखिका नंदिनी सत्पथी थी तो पिता देबेंद्र सत्पथी दो बार सांसद रह चुके हैं। तथागत वर्तमान में ढेंकनाल निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सांसद हैं।

पुडुचेरी के श्री अरबिंदो इंटरनेशनल सेंटर ऑफ़ एजुकेशन से पढ़ाई पूरी करने के बाद वे शुरूआती दिनों से ही राजनीति में कॅरियर बनाने की सोच कर बैठे थे। हालांकि शुरूआती दिनों में उन्हें कोई खास सफलता हासिल नहीं हुई। वहीं आपातकाल के दिनों में अपनी मां के पद का दुरूपयोग करने के भी आरोप लगे।

यह 1990 का दौर था, जब 1989 में बीजू पटनायक के नेतृत्व में जनता दल में शामिल होने के बाद तथागत ने ढेंकनाल विधानसभा क्षेत्र से चुने जाने के बाद अपनी पहली राजनीतिक सफलता का स्वाद चखा। अपने बेटे के करियर को सुरक्षित करने के लिए, मां नंदिनी उन्हें गोंदिया सीट ले गईं, जहां से उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। 1998 में, वह पहली बार ढेंकनाल से लोकसभा के लिए चुने गए।

एक साल बाद उन्होंने बिजोय महापात्र के ओडिशा गण परिषद (ओजीपी) में शामिल होने के लिए बीजद छोड़ दिया, जहां वे महासचिव थे। कुछ समय बाद उन्होंने फिर महसूस किया कि उनका राजनीतिक करियर ओजीपी के साथ कहीं नहीं जा रहा है, तो उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनाव से एक महीने पहले बीजेडी में शामिल हो गए। तब से वह कभी भी ढेंकनाल से नहीं हारे।

बीजद के सबसे मुखर सांसदों की गिने जाने वाले सत्पथी जीएसटी और नोटबंदी को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ कड़ा रूख अपनाया था। वहीं ओडिशा में सत्पथी को ‘धारित्री’ के संपादक के रूप में भी जाना जाता है, जो अब उड़िया भाषा में चलने वाले टॉप 3 अखबारों में से एक है। 1990 के दशक में उन्होंने ‘धारित्री’ की शुरूआत की थी जिसका प्रचलन आजकल बढ़ गया है।

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