बिहार की राजनीति का अपना इतिहास रहा है। वहां कुछ ऐसे राजनेता भी हुए जिनके बारे में सभी को पता होना चाहिए। राजनेता असल में जनता का होता है और जनता से ही होता है। ये तो ठहरी स्टेंडर्ड वाली परिभाषा लेकिन हम सभी अपने अपने हिसाब से राजनेताओं की छवियां बना रखी हैं। लेकिन राजनेताओं को परखने का कोई सीधा तरीका नहीं रहा है। होता क्या है? फिर आती है सत्ता पॉलिटिक्स। जनता खुद को किसी एक राजनेता के पीछे मोहरा बना लेती है। अपने वोट का अधिकार का ठीक तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाती। खैर जिस इंसान की हम बात करने जा रहे हैं वो इन सभी से काफी ऊपर था। नाम है कर्पुरी ठाकुर। आज 24 जनवरी को कपूरी ठाकुर की 98वीं जयंती है। इस खास मौके पर जानिए उनकी सादगी के किस्से…
सादगी और कर्पुरी ठाकुर
कर्पुरी ठाकुर 80 के दशक के उन नेताओं में आते हैं जिन्होंने अपने कॅरियर में बड़े कीर्तिमान स्थापित किए। दबे कुचलों की तल्ख आवाज़ बने। बिहार की राजनीति में किसी नाम सबसे पहले आता है उन्हीं में जननायक कर्पुरी ठाकुर हैं। 1952 की बात है पहली बार विधायक बने थे। और प्रतिनिधि मंडल में उनका चयन भी हुआ और ऑस्ट्रिया जाने का मौका पड़ा।
उनके पास कोट तक नहीं था। अपने किसी दोस्त से कोट मांगा वो भी फटा हुआ निकला। नेताजी वही पहन के निकल पड़े ऑस्ट्रिया। वहां पहुंचे तो वहां यूगोस्लाविया के मुखिया मार्शल टीटो की नजर पड़ी की नेताजी ने फटा कुर्ता पहन रखा है तो उनके द्वारा एक नया कोट फिर गिफ्ट किया गया। राजनेता के साथ ऐसे किस्सों पर विश्वास नहीं होता, है ना?
ऐसे भतेरे किस्से आपको कर्पुरी ठाकुर के इतिहास में दर्ज हैं। 1974 की बात है जब कर्पूरी ठाकुर के छोटे बेटे का मेडिकल की पढ़ाई के लिए चयन हुआ लेकिन बुरी तरह से वो बीमार पड़ गए। राममनोहर लोहिया हास्पिटल दिल्ली में भर्ती करवाया गया लेकिन हार्ट की सर्जरी होनी थी।
इंदिरा गांधी ने इस पर एक्शन लेकर एक सांसद को वहां भेजकर उन्हें एम्स में भर्ती करवाया। कहा गया कि सरकारी खर्चे पर अमेरिका जाइए और बेटे का इलाज करवाइए लेकिन कर्पुरी ठाकुर ने कहा कि मर जाएंगे लेकिन सरकारी खर्चे पर नहीं जाएंगे। इस पर जेपी ने कोई व्यवस्था की और उन्हें इलाज के लिए न्यूजीलैंड भेजा गया।
प्रधानमंत्री चरण सिंह एक बार उनके घर गए थे और गेट से अंदर जाते वक्त चरण सिंह का सर गेट के ऊपर के हिस्से पर जा लगा। इस पर चरण सिंह ने कर्पुरी सिंह से कहा कि कर्पूरी, इसको ज़रा ऊंचा करवाओ। इस पर जवाब मिला कि बिहार के लोगों का जब तक घर नहीं बन जाता तब तक मेरा बन जाने से क्या होगा?
संघर्ष भरा सफर
कर्पुरी ठाकुर ने पिछड़े तबके के लिए बहुत काम किया। शायद इसीलिए उन्हें इसके लिए कई तरह के विरोध का सामना करना पड़ा। जातिगत तंज उनपर उस वक्त कसे जाने लगे थे। 26 प्रतिशत आरक्षण जब उन्होंने घोषित किया तब कई लोगों ने उन्हें खरी खोटी सुनाई। 1978 में उनकी सरकार गिर भी गई थी। लालू प्रसाद के राजनीतिक गुरू माने जाते हैं कर्पुरी ठाकुर।
बचपन में भी कर्पुरी ठाकुर ने जातिगत भेदभाव का खूब सामना किया। एक बार की बात है जब उन्होंने मेट्रिक पास की थी। तो उनके पिता उन्हें एक समृद्ध व्यक्ति के पास लेकर गए और कहा साहब मेरे बेटे ने मैट्रिक फर्स्ट डिविजन से पास की है। इस पर उस आदमी ने अपनी टांगें टेबल के ऊपर रखते हुए कहा, ‘अच्छा, फर्स्ट डिविज़न से पास किए हो? मेरा पैर दबाओ। ऐसा कई समस्याओं का सामना इस जननायक ने अपने जीवन में किया। कई ऐतिहासिक फैसले कर्पुरी के नाम दर्ज हैं। दो बार वे मुख्यमंत्री रहे।
कर्पुरी ठाकुर ने हमेशा लोकराज की ओर काम किया। आज की तारीख में लोग उन्हें किसी जाति विशेष का नेता मानते हैं लेकिन सच्चाई यही है वे सभी की आवाज थे। राजनेता के रूप में उन्होंने कई सही फैसले लिए। वे असल में सबके नेता कहे जाने चाहिए।
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