चमकी बुखार: क्या बिहार के बच्चे भगवान भरोसे जी रहे हैं?

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बिहार में “चमकी” बुखार का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। ये बीमारी बच्चों में जैसे महामारी की तरह फैलती ही जा रही है। बच्चों की ऐसे मौते चिंताजनक है। कुछ रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि अब तक अकेले बिहार में इस साल इस बुखार से 70 वहीं कई जगह इस संख्या को 90 बच्चों की मौत तक भी दिखाया जा रहा है।

15 साल से कम उम्र के बच्चे इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। बिहार में इसको लेकर फिलहाल हाई अलर्ट जारी है। अब पहले इस चमकी बुखार के बारे में जान लेते हैं।

क्या है चमकी बुखार ?

चमकी बुखार के बारे में डॉक्टरों का कहना है कि यह एक तरह की दिमागी बुखार है, जिसके वायरस सुबह के समय बच्चों के शरीर पर हमला करते हैं। बच्चों के शरीर में जब भी हाइपोग्लाइसीमिया यानि शुगर की कमी होती है तब दिमागी बुखार उन्हें अपनी चपेट में ले लेती है। यह धीरे-धीरे बढ़ती है और बच्चे बेहोशी की हालत में आ जाते हैं।

क्यों फैल रही है चमकी बुखार?

चमकी बुखार के रातों-रात फैलने पर डॉक्टरों का कहना है कि गर्मी के बढ़ने के साथ-साथ वातावरण में ह्यूमिडिटी का स्तर लगातार बढ़ रहा है जिसके कारण बच्चों या किसी के भी शरीर में पानी की कमी हो जाती है। जांच का एक सिरा लीची फल से भी जुड़ा है। कई शोध बताते हैं कि चमकादड़ इस फल को खाते हैं और उसी तरह से ये वायरस बच्चों तक पहुंचता है।

कुपोषण को भी इस बीमारी के कारकों में शामिल किया गया है। मुख्यमंत्री नितिश कुमार ने इस पर चिंता जाहिर किया है और स्वास्थ्य विभाग को इसको गंभीरता से लेने के निर्देश दिए। मुजफ्फपुर जिले में आठवीं तक के बच्चों की छुट्टी कर दी है। भाजपा ने भी इस बीमारी को देखते हुए अगले 15 दिनों तक प्रदेश में किसी भी स्वागत समारोह का आयोजन नहीं करने का फैसला लिया।

चमकी बुखार का कैसे पता करें

सिरदर्द इस बीमारी के सबसे बड़ा लक्षण माना गया है। इसके अलावा कुछ लक्षण हैं जिनसे आप इस बीमारी का पता लगा सकते हैं।

मांसपेशियों और ज्वांइट्स में दर्द होना

कमजोरी आना

दिमाग संतुलित बिगड़ना

बोलने और सुनने में दिक्कत होना

उल्टी या जी घबराना।

शरीर में जकड़न के साथ चिड़चिड़ापन आना।

बचाव के लिए क्या कर सकते हैं ?

डॉक्टरों का कहना है कि बचाव के लिए सबसे पहले बच्चों में पानी की कमी ना होने दे। इसके अलावा गर्मी से बचने के लिए पानी के अलावा बच्चों को ज्यादा से ज्यादा तरल दें। वहीं डॉक्टरों ने बच्चों को ज्यादा देर तक भूखा ना रखने की सलाह दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों को लीची न खाने दें। रात का खाना जरूर खिलना चाहिए।

अब सवाल उठता है कि प्रशासन ने सैंकड़ों बच्चों को बचाने के लिए तत्काल प्रभाव में क्या कदम उठाए? देखा जाए तो सरकार ने इस बीमारी पर ध्यान दिया ही नहीं। ये बीमारी हर साल आती है लेकिन इसको रोकने और प्रभाव को दूर करने के लिए स्थायी रूप से कुछ नहीं किया गया। भले ही इस बीमारी के बारे में लोग कम जानते हों फिर भी इस साल कुछ नहीं किया जा सका। प्रशासन को पता था इस साल भी ये प्रकोप आएगा ही फिर सैंकड़ों बच्चों की जान कैसे जा रही है?

सरकार पहले कहते आई है कि इस बीमारी से डरने की कोई जरूरत नहीं है फिर वो बच्चे कैसे मारे जा रहे हैं? अब जब पता चल गया है तो भी क्या बस सब भगवान भरोसे ही है? बारिश होगी उससे गर्मी कम हो जाएगी फिर ये बीमारी नहीं होगी, बस यही सांत्वना प्रशासन द्वारा दिया जा रहा है। हैरानी की बात है 25 साल से ये बीमारी हर साल दस्तक देती है फिर भी बच्चों की जान जाती ही है। जिम्मेदार कौन?

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