हिन्दी साहित्य के अग्रणी लेखक, नाटककार व अभिनेता भीष्म साहनी की आज 8 अगस्त को को 108वीं बर्थ एनिवर्सरी है। साहनी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अपने साहित्य में आम लोगों की दबी आवाज को बुलंद करने और मुंशी प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाने का काम बखूबी निभाया है। भीष्म साहनी ने अपने कालजयी उपन्यास ‘तमस’ में विभाजन की विभीषिका का सजीव और वास्तविक वर्णन किया है। इस खास अवसर पर जानिए भीष्म साहब के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
भीष्म साहनी का प्रारंभिक जीवन
भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त, 1915 को अविभाजित भारत के रावलपिण्डी (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता हरबंस लाल साहनी और माता लक्ष्मी देवी थी। वह वर्ष 1947 में विभाजन के समय भारत आ गए। वह अपने माता-पिता की सातवीं संतान थे। वह हिंदी फिल्मों के जाने माने एक्टर बलराज साहनी के छोटे भाई थे। उन पर अपने पिता के व्यक्तित्व का काफी प्रभाव था, जोकि एक समाजसेवी थे।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा हिन्दी-संस्कृत में घर पर ही संपन्न हुईं। साहनी ने स्कूल में उर्दू व अंग्रेजी भाषा सीखीं। बाद में वर्ष 1935 में उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वर्ष 1958 में साहनी ने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से पीएचडी की उपाधि हासिल की।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेल गए
भीष्म साहनी ने देश की आजादी की लड़ाई के दौरान अनेक आंदोलनों में भाग लिया। वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में साहनी भी शामिल हुए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनका विवाह वर्ष 1944 में शीला के साथ हुआ। भारत-पाक विभाजन के पहले उन्होंने अवैतनिक शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दी। साथ ही वह व्यवसाय भी करते थे। उन्होंने समाचार पत्रों में भी लेखन कार्य किया।
कांग्रेस छोड़ कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए
वर्ष 1948 में भीष्म साहनी ने ‘इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन’ (भारतीय जन नाट्य संघ, इप्टा) के साथ काम करना शुरू किया, इप्टा के साथ उनके भाई पहले से ही जुड़े हुए थे। उन्होंने एक्टर और निर्देशक के रूप में अपनी सेवाएं दी। इप्टा के साथ काम करते हुए उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए।
कई शहरों में अध्यापन का कार्य भी किया
भीष्म साहनी ने बाद में बॉम्बे भी छोड़ दिया। इसकी वजह पंजाब में व्याख्याता के रूप में अध्यापन कार्य करना था। उन्होंने पहले अम्बाला के एक कॉलेज में और फिर खालसा कॉलेज, अमृतसर में अध्यापन का कार्य किया। इसके बाद में वर्ष 1952 में वह दिल्ली चले गए और यहीं पर स्थाई रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर पद पर नियुक्त हुए।
विदेशी साहित्य का हिंदी भाषा में अनुवाद किया
इस बीच भीष्म साहनी ने लगभग सात वर्ष ‘विदेशी भाषा प्रकाशन गृह’ मॉस्को में अनुवादक के रूप में भी कार्य किया। अपने इस प्रवासकाल में उन्होंने रूसी भाषा सीखी और लगभग दो दर्जन रूसी पुस्तकों का अनुवाद किया। करीब ढाई साल ‘नई कहानियां’ का सौजन्य-सम्पादन किया। उनका प्रगतिशील लेखक संघ तथा अफ्रो-एशियाई लेखक संघ से भी सम्बद्ध रहा।
अभिनय के क्षेत्र में भी किया काम
साहनी बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे और उनके बड़े भाई बलराज साहनी बॉलीवुड एक्टर थे। भीष्म को इप्टा से जुड़े होने की वजह से नाटकों के अलावा फिल्मों में भी अभिनय करने का मौका मिला। उन्होंने फिल्म ‘मोहन जोशी हाजिर हो’, ‘कस्बा’ के अलावा ‘मिस्टर एंड मिसेज अय्यर’ में अभिनय भी किया। साहनी के उपन्यास ‘तमस’ पर गोविंद निहलानी ने वर्ष 1987 में टेलीविजन धारावाहिक बनाया, जो काफी चर्चित रहा। इस उपन्यास की पटकथा वर्ष 1947 के विभाजन पर आधारित है।
साहित्य और सम्मान
साहनी ने हिंदी साहित्य की सभी विधाओं पर लेखन किया है। उनके उपन्यास ‘तमस’ के लिए उन्हें वर्ष 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
साहनी द्वारा साहित्य की विभिन्न विधाओं पर लेखन—
उपन्यास – झरोखे, तमस, कड़ियां, बसंती, मय्यादास की माडी़, कुंतो, नीलू निलिमा नीलोफर आदि प्रमुख हैं।
कहानी संग्रह – मेरी प्रिय कहानियां, भाग्यरेखा, वांगचू, निशाचर, पहला पाठ, भटकती राख आदि।
नाटक – हानूश (1977), माधवी (1984), कबीरा खड़ा बाज़ार में (1985), मुआवज़े (1993) आदि।
आत्मकथा – ‘बलराज माय ब्रदर’
बाल-कथा साहित्य – ‘गुलेल का खेल’, ‘वापसी’
अनुवाद – टालस्टॉय के उपन्यास ‘रिसरेक्शन’ सहित लगभग दो दर्जन रूसी पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया।
साहनी साहब को वर्ष 1998 में साहित्य सेवा के लिए ‘पद्म भूषण’ और वर्ष 2002 में ‘साहित्य अकादमी फैलोशिप’ से सम्मानित किया गया। सोवियत संघ ने उन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया। भीष्म साहनी को भारतीय डाक विभाग ने 31 मई, 2017 को सम्मानित करते हुए उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया।
महान शख्सियत भीष्म साहनी का निधन
समाज के अंतिम छोर के व्यक्तियों की आवाज उठाने वाले व सादगी पसंद रचनाकार भीष्म साहनी साहब का निधन 11 जुलाई, 2003 को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुआ।
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