भारतीय सिनेमा में अब तक के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता इरफ़ान ख़ान ने आखिर इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में बुधवार को उन्होंने आखिरी सांस ली। 53 वर्षीय इरफान को अचानक तबीयत बिगड़ने पर मंगलवार रात आईसीयू में रखा गया था। कई बेहतरीन फिल्मों के जरिए अपनी अदाकारी का लोहा मनवा चुके वाले इरफ़ान ख़ान के देहांत से देश भर में शोक की लहर है। देश की कई बड़ी हस्तियों और उनके करोड़ों फैंस उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इरफान के निधन पर उनके परिवार, फैंस के प्रति संवेदनाएं जताई और आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की है।
बहुमुखी प्रतिभाशाली बॉलीवुड-हॉलीवुड एक्टर इरफ़ान खान ने मरु प्रदेश राजस्थान से निकलकर अपनी अदाकारी का पहले बॉलीवुड में जादू दिखाया और फ़िर हॉलीवुड में भी अपना लौहा मनवाया। उनकी एक्टिंग कौशल के आगे मनोरंजन की दुनिया के सारे सितारे बौने नज़र आते हैं। इरफ़ान की अभिनय क्षमता को शब्दों में बयां करना थोड़ा मुश्किल है, यह बात दुनियाभर के फिल्म समीक्षक कह चुके हैं। उनकी एक्टिंग के मुरीद बड़े लोगों की सूची बहुत लंबी है। एक साक्षात्कार में हॉलीवुड एक्टर टॉम हैंक्स ने इरफान की जबरदस्त सराहना करते हुए कहा था, ‘इरफ़ान ख़ान की आंखें भी अभिनय करती हैं।
नवाबों के शहर टोंक में हुआ जन्म
फिल्म इंडस्ट्री को अपने रंग में ढ़लने पर मजबूर कर देने वाले इरफ़ान का पूरा नाम साहबजादे इरफ़ान अली ख़ान है। इरफ़ान का जन्म 7 जनवरी, 1967 को राजस्थान में नवाबों का शहर के नाम से प्रसिद्ध टोंक के ख़जुरिया गांव में एक जमींदार (जागीरदार) परिवार में हुआ। बाद में उनका परिवार जयपुर शहर स्थित आमेर क्षेत्र में आकर बस गया। इरफान के पिता यासीन अली ख़ान टायर का बिजनेस चलाते थे। जबकि उनकी मां सईदा बेगम एक हाकिम परिवार से आती थीं। उनके दो भाई सलमान, इमरान ख़ान और एक बहन रुख़साना बेगम हैं।
इरफ़ान ने मां से सीखी बिलीवर की परिभाषा
इरफ़ान ख़ान ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था, अपनी मां से मैंने बहुत कुछ सीखा है। उनकी मां के मुताबिक, बिलीवर वो होता है.. जहां आपकी जान और प्रॉपर्टी की गारंटी हो या सलामत रहे। इरफान के पिता उनके दिल के बहुत करीब थे। फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ में उनके द्वारा निभाए गए लीड किरदार पान सिंह में वे बेहद अच्छा एक्ट, इसलिए कर पाए क्योंकि बचपन में अपने पिता के साथ शिकार पर जाया करते थे।
एनएसडी सिलेक्टर्स से झूठ बोल पाया था प्रवेश
स्कूल-कॉलेज के दिनों में इरफ़ान ख़ान एक अच्छे क्रिकेटर हुआ करते थे। उनका सीके नायडू टूर्नामेंट के लिए चयन भी हुआ। लेकिन पैसों की तंगी के कारण वे क्रिकेट खेलना आगे जारी नहीं रख सके। इरफान ने अपनी स्कूली और कॉलेज शिक्षा जयपुर से की। इसके बाद वे एक्टिंग का जज़्बा और जूनून के साथ नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा यानि एनएसडी, दिल्ली में प्रवेश के लिए पहुंच गए। एनएसडी में पहली बार में प्रवेश पाना मुश्किल है, लेकिन इरफ़ान को पहली बार में ही एनएसडी में प्रवेश मिल गया। हालांकि, इरफान को एनएसडी में प्रवेश के लिए झूठ भी बोलनी पड़ी। एनएसडी के चयनकर्ताओं को उनमें कुछ ऐसा दिखा कि उन्होंने पहली बार में ही प्रवेश दे दिया।
झूठ ये थी कि एनएसडी में प्रवेश के लिए कम से कम 10 ड्रामा नाटक किए होने चाहिए, इरफ़ान को इतना अनुभव नहीं था। उन्होंने एनएसडी के टीचर्स को अपने हिसाब से नाटकों के नाम गिनवा दिए थे। हालांकि, ये बात अलग है कि उस समय कैमरा या मोबाइल की व्यवस्था नहीं होती थी, ऐसे में उन्हें सिलेक्टर्स को नाटकों में काम का सबूत देने की कोई ज़रुरत नहीं थीं। इरफान के एनएसडी में प्रवेश के दिनों में ही उनके पिता का इंतकाल हो गया था। इसके बाद इरफान को घर से पैसे मिलने बंद हो गए। एनएसडी से मिलने वाली फ़ेलोशिप के जरिए उन्होंने अपना कोर्स पूरा किया था।
लंबे स्ट्रगल ने इरफान को बनाया नायाब
एनएसडी से पास आउट होने के बाद इरफ़ान की राह इतनी आसान नहीं रहीं। उन्हें लंबे समय तक स्ट्रगल करना पड़ा। इरफान में एक्टिंग को लेकर जज़्बा था, जिसकी सहारे लंबा स्ट्रगल करते हुए अपनी अभिनय क्षमताओं को तराशकर एक्टिंग की दुनिया में खुद को एक नायाब उदाहरण बना दिया।
इरफान ख़ान ने विश्वभर के लोगों के उस मिथक को तोड़ कर दिखाया, जिसके बारे में कहा जाता था कि सफ़ल एक्टर बनने के लिए गुड लुक यानि अच्छा दिखना बेहद जरुरी है। इरफ़ान ने अपने अभिनय कौशल से साबित कर दिया कि गुड लुक सफ़लता की कोई गारंटी नहीं होता।
वर्ष 1985-86 में इरफ़ान ख़ान एनएसडी से ड्रामा में एमए की डिग्री करके मुंबई पहुंच गए थे। जहां उन्होंने कॅरियर की शुरूआत में ‘चाणक्य, भारत की खोज, सारा जहां हमारा, बनेगी अपनी बात, चंद्रकांता, अणुगूंज, श्रीकांत, स्टार बेस्टसेलर्स एंड स्पर्श’ जैसे टीवी सीरियल्स में छोटी-छोटी भूमिकाएं निभाई। इसके अलावा इरफान ‘डर’ नामक सीरिज में मुख्य विलेन के किरदार में नज़र आए थे। उन्होंने कई प्रसिद्ध नाटकों में भी काम किया है। एक प्ले में इनके द्वारा निभाए गए फ़ेमस उर्दू क्रांतिकारी कवि मख़दूम मोहिउद्दीन का पात्र काफ़ी प्रसिद्ध है।
‘द वॉरियर’ से मिलीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान
इरफ़ान ख़ान को 1988 में मीरा नायर ने ‘सलाम बाॅम्बे’ फिल्म में पहला कैमियो रोल दिया, लेकिन फाइनल एडिट में उनका रोल फिल्म से बाहर हो गया। तब तक इरफान ने लगातार टीवी सीरियल्स में काम करना जारी रखा। इसके बाद उन्होंने ‘एक डॉक्टर की मौत’ और ‘सच ए लॉन्ग जर्नी’ फिल्म में काम किया।
इन फिल्मों में उनके काम की कुछ क्रिटिक्स द्वारा प्रशंसा की गई, लेकिन दुर्भाग्य से उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं गया और फिल्में भी असफ़ल रहीं। वर्ष 2000 में इन्हें लंदन बेस्ड डायरेक्टर आसिफ़ कपाड़िया ने ‘द वॉरियर’ में काम करने का मौका दिया। साल 2001 में विभिन्न फिल्म फेस्टिवल्स में प्रदर्शित की गई इस फिल्म में लाफकेडिया वाॅरियर के प्रमुख किरदार की भूमिका निभाने के बाद इरफान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलीं।
कई फिल्मों के लिए मिल चुकी हैं सराहना
वर्ष 2003-04 में अश्विन कुमार की शॉर्ट फिल्म ‘रोड टू लद्दाख’ में इरफ़ान ख़ान ने मुख्य भूमिका निभाई थी। इस फिल्म को और ख़ास तौर पर इरफान के काम को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में खूब सराहना मिलीं। साल 2004 में उन्होंने शेक्सपियर के नॉवल ‘मैकबेथ’ का एडेपटेशन मकबूल में लीड रोल प्ले किया। वहां भी इरफान की अभिनय कला को क्रिटिक्स की ओर से प्रशंसा मिली थीं। इसके बाद उन्होंने फिल्म ‘रोग’, ‘हासिल’ और तेलुगू फिल्म ‘सैनिकुडू’ में अहम भूमिका निभाई और खूब तारीफ़ भी पाईं। वर्ष 2007 में रिलीज़ हुई ‘मेट्रो’ और ‘द नेमसेक’ ने इरफ़ान को बॉलीवुड में वो पहचान दिलाई, जिसके वो हमेशा से चाह रखते थे।
इसके बाद उन्होंने ‘स्लमडॉग मिलेनियर’, ‘पान सिंह तोमर‘, ‘द लंचबॉक्स’ ‘किस्सा’, ‘तलवार’, ‘पीकू’ जैसी फिल्मों में अहम किरदार निभाते हुए जमकर सराहना बटोरी। साल 2017 में इरफ़ान ख़ान की तीन हिट फिल्में ‘मदारी’, ‘हिंदी मीडियम’ और ‘करीब-करीब सिंगल’ ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की, साथ ही क्रिटिक्स और लोगों से इरफ़ान को बेशुमार प्यार भी मिला। इरफान ने हॉलीवुड में ‘स्पाइडर मैन’, ‘जूरासिक वर्ल्ड’, ‘इन्फर्नो’’ के अलावा कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रोजेक्ट में भी शानदार काम किया है।
साल 2018 में उनकी तीन फिल्में ‘कारवां’, ‘ब्लैकमेल’ और ‘पज़ल’ रिलीज हुई थीं। लेकिन इस दौरान ही इरफ़ान ख़ान को न्यूरो एंडोक्राइन नाम की एक बीमारी हो गई थी। इसके बाद वो इलाज के लिए लंदन चले गए थे। वहां उनका लंबे समय तक इलाज चला और करीब एक साल बाद वो भारत लौटे थे।
नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीत चुके हैं इरफ़ान
इरफ़ान ख़ान को वैसे तो अब तक कई अवॉर्ड मिले हैं, लेकिन फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का ‘नेशनल फिल्म अवॉर्ड’ मिला। अभिनय के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने इरफ़ान को वर्ष 2011 में देश के चौथे सबसे बड़े सम्मान ‘पद्मश्री‘ अवॉर्ड से नवाज़ा। साल 2015 में राजस्थान सरकार ने अपने कैंपेन ‘रिसर्जेंट राजस्थान‘ के लिए इरफान को ब्रांड एंबस्सेडर नियुक्त किया था।
बुरे वक़्त में साथ देने वाली लड़की से किया निकाह
अगर उनके वैवाहिक जीवन की बात करें तो इरफ़ान ख़ान ने अपनी दोस्त एवं एनएसडी बैच-मेट सुतापा सिकदर से 23 फरवरी, 1995 को निकाह किया। इन दोनों के दो बेटे बाबिल और अयान ख़ान हैं। दिलचस्प बात यह है कि इरफान ने जब सुतापा सिकदर से शादी का फैसला किया, तब वो उनके लिए धर्म बदलने के लिए भी तैयार हो गए थे। लेकिन सुतापा के परिवार वाले दोनों की शादी के लिए आसानी से मान गए, जिसके बाद इरफान को धर्म बदलने की जरूरत नहीं पड़ीं। सुतापा उनके सबसे बुरे वक़्त की सच्ची साथी रही हैं।
इरफ़ान ख़ान बीते दो साल के गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। उन्हें न्यूरो एंड्रोक्राइन ट्यूमर नामक एक गंभीर बीमारी थी, जिसका पिछले दो साल से वे लंदन में इलाज करा रहे थे। हालांकि, इरफान कुछ वक्त पहले ही करीना कपूर और राधिका मदान के साथ फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ में नज़र आए थे। लेकिन फिल्म की शूटिंग के दौरान भी इरफान लंदन से आते-जाते रहते थे। इससे पहले उनकी आखिरी बार वर्ष 2018 में रिलीज़ हुई ‘कारवां’ थी। हालिया रिलीज़ ‘अंग्रेजी मीडियम’ में इरफ़ान ख़ान की अदाकारी को क्रिटिक्स और बॉलीवुड के कई स्टार्स से खूब तारीफें मिलीं। यकीनन इरफ़ान जैसा अदाकार सदियों में जन्म लेता हैं। #RIP #IrrfanKhan ….
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