भारतीय स्वतंत्रता सेनानी व पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल चंद्र सेन की आज 10 अप्रैल को 126वीं जयंती है। वह वर्ष 1962 से 1967 तक पश्चिम बंगाल प्रांत के मुख्यमंत्री रहे थे। प्रफुल्ल चंद्र सेन को ग्रामीण विकास कार्य और हरिजनोद्धार में योगदान देने की वजह से ‘आरामबाग का गांधी’ उपनाम नाम से जाना जाता है। सेन बंगाल की प्रसिद्ध रसगुला क्रांति के कारण राज्य के दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे। इस खास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ रोचक बातें….
पश्चिम बंगाल में खुलना जिले में हुआ था जन्म
प्रफुल्ल चंद्र सेन का जन्म 10 अप्रैल, 1897 को पश्चिम बंगाल में खुलना जिले के सेनहाटी गांव में हुआ था। वह बंगाल के प्रमुख कांग्रेसी नेता, गांधी जी के अनुयायी और स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका बचपन बिहार में बीता था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं पर शुरू हुई। उन्होंने देवघर के आर. मित्रा संस्थान से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। बाद में सेन ने कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्होंने ग्रेजुएट होने के बाद एक लेखा फर्म जॉइन कर ली थी। वह इंग्लैंड से उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे, लेकिन वर्ष 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में उन्होंने महात्मा गांधी का भाषण सुना तो इंग्लैंड जाने का विचार ही त्याग दिया।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में लिया था भाग
स्वतंत्रता सेनानी प्रफुल्ल चंद्र सेन के जीवन पर बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल के विचारों का प्रभाव पड़ा। बाद में वह गांधीजी के संपर्क में आने के बाद उनके अनुयायी बन गए। उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ असहयोग आंदोलन में भाग लिया और खादी का खूब प्रचार किया। सेन उदार जीवन शैली के साथ जीवन व्यतीत करते रहे। उन्होंने गांधीजी द्वारा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान किए गए सभी आंदोलनों में भाग लिया। वह वर्ष 1930 और 1942 के दौरान जेल भी गए। उनकी रचनात्मक कार्यों में बड़ी निष्ठा थी। सेन ने गांवों के विकास कार्य और हरिजनोद्धार में अहम योगदान दिया। उन्हें सेन को ‘आरामबाग का गांधी’ कहा जाता था।
रसगुल्ला क्रांति ने सेन से छीना था मुख्यमंत्री पद
प्रफुल्ल चंद्र सेन का राजनैतिक सफर वर्ष 1948 से शुरू हुआ। वह डॉ. विधान चंद्र राय के मंत्रिमंडल में मंत्री बने थे। बाद में वर्ष 1962 में विधान चंद्र राय का निधन हो जाने के बाद उन्हें पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बनाया गया और वह इस पद पर वर्ष 1967 तक रहे। वर्ष 1965 में प्रफुल्ल चंद्र के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल सरकार के एक निर्णय ने उनसे सीएम पद छीन लिया। उन्होंने बंगाल में रसगुल्ला बनाने पर बैन लगा दिया था। अचानक लिया गया उनका यह निर्णय बंगाल के रसगुल्ला प्रेमियों और व्यवसायियों के लिए नागवार गुजरा।
दरअसल, तत्कालीन सीएम प्रफुल्ल चंद्र सेन ने नवजात शिशुओं और माताओं को प्रचुर मात्रा में दूध उपलब्ध करवाने के लिए यह कदम उठाया था। रसगुल्ले बनाने के लिए अधिक मात्रा में दूध की आवश्यकता होती थी, क्योंकि छेने से रसगुल्ले बनते थे। इसलिए उन्होंने रसगुल्ले को बैन कर दिया था। राज्य में तब डेयरी उत्पादों की कमी हुआ करती थी। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल रसगुल्ले के लिए काफी प्रसिद्ध है।
रसगुल्लों पर प्रतिबंध के दुष्परिणाम जानते थे प्रफुल्ल चंद्र
पक्के गांधीवादी विचारों वाले प्रफुल्ल चंद्र सेन को रसगुल्लों पर प्रतिबंध के दुष्परिणाम मालूम था, फिर भी वह नहीं माने और उन पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्हें इसके परिणामस्वरूप सत्ता गंवानी पड़ी थी। इसे बंगाल के इतिहास में रसगुल्ला क्रांति के तौर पर भी याद किया जाता है। वामपंथी पार्टियों के तरफ से इस प्रतिबंध के विरोध में राज्यभर में विरोध प्रदर्शन हुए। वर्ष 1968 के कांग्रेस का विभाजन हुआ और वह इंदिरा गांधी के साथ नहीं गए। सेन ने पुराने नेतृत्व के साथ ही रहने का निश्चय किया। इस प्रकार उनकी राजनीतिक गतिविधियाँ समाप्त हो गईं।
राजनेता प्रफुल्ल चंद्र सेन का निधन
स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता प्रफुल्ल चंद्र सेन का निधन 25 सितंबर, 1990 को कलकत्ता में हुआ।
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