बालाकोट एयर स्ट्राइक: जानिए.. युद्ध में मरने और घायल होने वालों की कैसे होती है गणना?

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पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के पुलवामा अटैक की जिम्मेदारी लेने के बाद भारतीय वायुसेना ने उसके पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत स्थित बालाकोट में ठिकानों पर एक हजार किलो के बम गिराकर तबाही मचा दी। मीडिया ख़बरों के अनुसार इस जवाबी कार्रवाई में करीब 300 आतंकवादी, उनके प्रशिक्षक और कमांडर मारे गए। हालांकि कहीं से भी इसकी पुष्टि नहीं हुई है। इसी बीच केन्द्र सरकार से विपक्ष ने एयर स्ट्राइक और मारे गए आतंकियों की संख्या के सबूत मांग लिए हैं। सरकार से पहले वायुेसना के प्रमुख बीएस धनोआ ने सोमवार को साफ करते हुए कहा, भारतीय वायुसेना मारे गए लोगों की संख्या गिनने का काम नहीं करती, उसका काम कार्यवाही करना है।

दरअसल, पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर हुए आत्मघाती हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सबसे बड़े ट्रेनिंग कैंप पर 26 फरवरी को कार्रवाई की। इस एयर स्ट्राइक में कितने आतंकी मारे गए, इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं हुआ है। वहीं, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने रविवार को कहा कि इस कार्रवाई में 250 से ज्यादा आतंकी मारे गए हैं। ऐसे में यह सवाल जहन में आता है कि युद्ध में कितने लोग मारे गए यह संख्या कौन गिनता है और इसे गिनने के पैमाने क्या है? आइये इन तमाम सवालों के जवाब हम यहां जानते हैं..

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युद्ध में हताहत हुए लोगों की संख्या कौन गिनता है?

इस बारे में सबसे बड़ा सच यह है कि युद्ध या बड़ी सैन्य कार्रवाई में हताहत हुए लोगों की संख्या कोई भी नहीं गिनता है। हर कोई हताहतों की संख्या का आकलन करता है। किसी संघर्ष या युद्ध में मरने वाले लोगों का कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं होता है। खासकर उस समय जब बड़ी तादाद में लोग मारे जा चुके हों। इसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं होता, सिर्फ आकलन ही किया जा सकता है। जब किसी संघर्ष या युद्ध में दो मुल्क शामिल होते हैं तो मारे गए लोगों और घायलों की संख्या पता करना और भी मुश्किल हो जाता है। क्योंकि मरने वाले और घायल लोगों की संख्या गिनने की जिम्मेदारी स्थानीय संस्थाओं के हाथ में होती है। ये संस्थाएं कोई स्वतंत्र संस्थाएं नहीं होती हैं ऐसे में जैसा सरकार चाहती है वैसे ही ये काम करती हैं। हालांकि, बड़े स्तर पर हुए संघर्ष के मामलों में संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं मरने वालों की संख्या का आंकड़ा जारी करती हैं लेकिन वह भी मोटे तौर पर हुए आकलनों पर ही निर्भर होता है।

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ऐक्टिव और पैसिव सर्विलांस में होती है मरने वालों की गिनती

दो दुश्मन मुल्कों के बीच हुए युद्ध या संघर्ष में मरने लोगों की गिनती ऐक्टिव और पैसिव सर्विलांस दोनों के संयुक्त इस्तेमाल के जरिए की जाती है। ऐक्टिव सर्विलांस के जरिए शवों की गिनती या घरों का सर्वे किया जाता है और बाद में स्थापित सैंपलिंग टेक्निक की मदद से तय किया जाता है कि कुल मिलाकर युद्ध में कितने लोग मारे गए हैं। दूसरी ओर, पैसिव सर्विलांस में मीडिया, अस्पतालों, मुर्दाघरों, लॉ एनफोर्समेंट एजेंसियों जैसे तीसरे पक्ष से मिले आंकड़े आदि शामिल होते हैं। उदाहरण की बात की जाए तो जैसे, संयुक्त राष्ट्र के आकलन के अनुसार यमन में जनवरी 2017 तक युद्ध में 10 हजार लोगों की मौत हुई थी। इन मौतों की संख्या के आंकड़े जारी करने में यूएन ने यमन के अस्पतालों से मिलीं रिपोर्ट्स पर भरोसा किया था।

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ऐसे मामलों में आंकड़े इस पर निर्भर करते हैं कि इसके लिए इनपुट देने वाली संस्था कौन है। अगर उदाहरण के तौर पर समझा जाए तो जैसे, 1994 में रवांडा में हुए जातीय नरसंहार में मारे गए लोगों की तादाद 5 लाख से 10 लाख के बीच बताई गई। इसी तरह, इस्लामिक स्टेट के खिलाफ इराक के संघर्ष में कितने आम लोग मारे गए, इसका कोई वास्तविक आंकड़ा सामने नहीं आया है। इसकी वजह यह है कि अमेरिका द्वारा सिर्फ उन्हीं आंकड़ों को माना गया जिन्हें आईएस को काउंटर करने वाली गठबंधन सेना ने अपनी ओर से पेश किए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि किसी युद्ध या संघर्ष में कितने लोग हताहत हुए हैं, इसके आंकड़े भिन्न-भिन्न होते हैं। इस कारण यह है कि संबंधित मुल्कों के दावे अलग-अलग होते हैं। इसलिए इन पर विश्वसनीयता नहीं होती है। आकंड़ों की विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि इन आंकड़ों को बताने वाला कौन हैं।

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