मई तक खत्म होने वाले लोकसभा चुनाव के नतीजों में ग्रामीण भारत से ताल्लुक रखने वाले वोटों के भी अपने मायने होंगे। भारत की 1.3 बिलियन आबादी का लगभग 70 प्रतिशत कस्बों और गांवों में रहता है। दिसंबर में आए तीन प्रमुख राज्यों के चुनावों में हार के बाद, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ग्रामीण समुदायों के बीच हुए नुकसान को दूर करने के प्रयास करते हुए दिखाई दी।
लेकिन इस तरह के नुकसान से कुछ खास फर्क ना पड़ते हुए पाकिस्तान के साथ टकराव के कारण फैली राष्ट्रवाद की लहर बीजेपी कई सीटों पर फायदा पहुंचा सकती है। 2014 के आम चुनाव में हिंदू राष्ट्रवादी भाजपा को वोट देने वाले महाराष्ट्र के कई किसानों का कहना है कि वह खेती के प्रति सरकार के उदासीन व्यवहार से नाखुश हैं और उन्होंने विपक्षी कांग्रेस को वोट देने का पूरा मन बना लिया है..“लेकिन पुलवामा और एयर सट्राइक के बाद कईयों ने अपना विचार बदल लिया है। सभी का अब कहना है हमें पाकिस्तान को हराने के लिए मोदी जैसे एक मजबूत नेता की जरूरत है।
किसानों का हृदय परिवर्तन उस भारी नुकसान के बावजूद होता है, जो प्याज और टमाटर के दाम गिरने के कारण उन्हें हुआ है। भारत के कई प्रमुख खाद्य पदार्थों के उत्पादन में भारी गिरावट के कारण महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कीमतों में भारी गिरावट देखी गई है।
वहीं कुछ और किसानों का मानना है कि वो मोदी को “यदि वह पाकिस्तान को सबक सिखाते हैं” तो वोट देंगे। एक किसान ने कहा कि “मैं व्यक्तिगत हितों को एक तरफ रख सकता हूं और अगर वह हमारे देश की सुरक्षा के लिए कुछ करते हैं तो मोदी को वोट दे सकते हैं।”
भारतीय गांवों से पारंपरिक रूप से सशस्त्र बलों के लिए जवान काम करने जाते रहे हैं। इसलिए सेना और देश की सुरक्षा के प्रति गांव के लोगों का यह संवेदनशील रवैया स्वाभाविक है।
पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ने से पहले हुए कई तरह के सर्वे में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि भाजपा धीमी अर्थव्यवस्था, कम ग्रामीण विकास, नौकरी में वृद्धि को बढ़ावा देने में फेल होने के कारण इस बार के चुनावों में बहुमत हासिल करने के लिए कड़ा संघर्ष करेगी। लेकिन एयर सट्राइक और पुलवामा घटना के बाद कई जनमत सर्वे में भाजपा को भारी बढ़त मिल रही है।
एयर स्ट्राइक के बाद की गई कुछ भविष्यवाणियों यह भी कहा जा रहा है कि ग्रामीण इलाकों में भाजपा को कुछ सुधार करना होगा, क्योंकि भारत के सबसे अधिक आबादी वाले तीन-चौथाई लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। सोशल मीडिया जैसे फेसबुक और व्हाट्सएप के साथ-साथ टेलीविजन ने देश भर में राष्ट्रवादी भावना को और हवा दी है, जिसकी चपेट में इससे जुड़े हुए गांव के काफी लोग आए हैं।
पर अब भी गुस्सा बरकरार
कुछ किसानों द्वारा देशभक्ति वाला मोड़ लेने का मतलब यह भी नहीं है कि पिछले कुछ सालों के दुख को भुला दिया गया है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में अब भी काफी किसान वर्तमान भाजपा सरकार ने नाखुश हैं। दिसंबर में तीन बड़े राज्य चुनावों में भाजपा की हार के पीछे किसानों की गिरती फसल की कीमतों पर गुस्सा था, और यह गुस्सा अभी दूर नहीं हुआ है।
कुछ किसान यह सवाल भी कर रहे हैं कि एयर स्ट्राइक से “हमें पैसे कमाने में कैसे मदद मिलेगी।” “मोदी ने पिछले चार सालों में किसानों के लिए कुछ नहीं किया है,”। 2018 में महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक में सामान्य से कम बारिश हुई, फसलों को नुकसान पहुंचा।
ऐसे में लोकसभा चुनावों में राष्ट्रवादी लहर हावी होने के बावजूद भी किसानों के मुद्दे सत्ता और विपक्षी पार्टियों के लिए एक चुनौती साबित होंगे।