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आदरणीय कप्तान विराट कोहली,
आज चारों ओर आपके व्यवहार की आलोचनाएं हो रही है लेकिन सबसे अच्छी बात ये है कि आपके फैंस आपके साथ पूरी तरह से खड़े हैं। मैदान पर आक्रामक होना स्वभाविक है लेकिन भारतीय टीम के खिलाड़ी कभी अपनी आक्रामकता के लिए नहीं जाने गए हैं। हमारी टीम में राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, सचिन तेंदुलकर, अनिल कुंबले जैसे शांत चित खिलाड़ी भी रहे हैं जिन्होंने केवल अपने खेल से विरोधियों का मुंह बंद कराया है। लेकिन कभी कभी आपके सरल व्यवहार का दूसरे लोग अनचाहे रूप से फायदा उठाने लगते हैं। मैदान में आपका आक्रामक व्यवहार पूर्व सौरव गांगुली की याद दिलाता है जो अपनी टीम के लिए मैदान पर किसी से भी लड़ जाते थे। इसमें कोई शक नहीं की सफल भारतीय टीम की नींव भी पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने ही रखी थी और वो काफी आक्रामक खिलाड़ियों में से एक थे। सब जानते हैं कि वो मैदान के अंदर जितने आक्रामक दिखाई पड़ते थे उतने ही शांत मैदान के बाहर दिखाई देते थे। आप में भी वो सारे गुण दिखाई देते हैं इसी लिए तो कमेंटेटर संजय मांझरेकर ने आपके लिए यहां तक कह दिया था कि मीडिया के सामने जब आप बात करने आते हैं तो ऐसा लगता है कि कोई संत आकर बैठ गया हो।
आॅस्ट्रेलियाई खिलाड़ी आपके व्यवहार को लेकर काफी कुछ बोल रहे हैं जो कि महज उनके द्वारा आप पर दबाव बनाने की एक कोशिश है। 2008 के आॅस्ट्रेलियाई दौरे के वक्त आप काफी छोटे रहे होंगे जब भारतीय टीम और कप्तान अनिल कुंबले के शांत व्यवहार का कंगारुओं ने नाजायज फायदा उठाया था और बेईमानी से सिडनी टेस्ट जीतने में कामयाब हुए थे। आपकी ही आक्रामकता का नतीजा रहा कि इस बार इंग्लैंड दौर पर उनके खिलाड़ियों द्वारा भारतीय खिलाड़ियों को ज्यादा परेशान नहीं किया गया और वो ज्यादातर चुप ही बैठे रहे। ये बात जगजाहिर है कि जब कंगारुओं को ऐसा लगता है कि उन पर कोई भारी पड़ने वाला है तब वो मैदान के अंदर और बाहर दोनों तरफ से दबाव बनाने की कोशिश करने में लग जाते है और उनकी मीडिया भी इस काम में उनका साथ देती है। आपको अपने व्यवहार में जरा सा भी बदलाव नहीं करना चाहिए क्योंकि ये मनोवैज्ञानिक तौर पर टीम के ही काम आता है। आॅस्ट्रेलियाई खिलाड़ी हमेशा इस काम में माहिर रहे हैं और वो मनोवैज्ञानिक तौर पर खेल जीत लेते हैं। अगर टीम से आक्रामकता खत्म हो गई तो हमारे साथ दोबारा मंकीगेट और सिडनी टेस्ट जैसा प्रकरण हो सकता है। अभी दो टेस्ट मैच और बाकी है और निश्चित तौर पर हमें अपना खेल सुधारना ही होगा। मीडिया और आलोचकों की परवाह किए बगैर आप अपनी टीम की कमियों का अध्ययन कीजिए जो कि सबसे ज्यादा जरूरी है। वहीं इस बात का भी खयाल रखिए कि स्लैजिंग की शुरूआत हमारी तरफ से ना हो जिससे आलोचकों को दोबारा बोलने का मौका ही ना मिले। उम्मीद करते हैं आपकी कप्तानी में भारत आॅस्ट्रेलिया में पहली बार सीरीज जीतने में कामयाब होगा और सब आपके व्यवहार की बात को भूलकर आपकी कामयाबी के गुणगान गाना शुरू कर देंगे।
आपका प्रिय
प्रशंसक