महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय को आमेर (जयपुर) का वीर व उच्च कूटनीतिज्ञ राजा माना जाता है। वे बाल अवस्था से ही विद्या का प्रेमी तथा धर्मानुरागी थे। सवाई जयसिंह ने बचपन में ही अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय देकर औरंगज़ेब जैसे कूटनीतिज्ञ एवं कट्टर मुग़ल बादशाह को भी प्रभावित कर दिया था। औरंगज़ेब यह अनुभव कर चुका था कि मुग़ल साम्राज्य की सत्ता बनाये रखने में जयसिंह का सहयोग अत्यावश्यक है। सवाई जयसिंह द्वितीय ने आमेर पर चार दशक से ज्यादा वक़्त तक राज्य किया था। आज 3 नवंबर को महाराजा जयसिंह द्वितीय की 335वीं जयंती है। इस ख़ास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
कच्छवाहा राजा बिशनसिंह के बेटे थे जयसिंह
सवाई जयसिंह द्वितीय का जन्म 3 नवंबर, 1688 ईस्वीं को आमेर के महल में राजा बिशनसिंह की पत्नी इन्द्र कुंवरी के गर्भ से हुआ था। उस समय उनके पिता राजा बिशनसिंह की आयु मात्र 16 वर्ष थी। सवाई जयसिंह का असल नाम विजय सिंह था और उनके छोटे भाई का नाम जयसिंह था। ऐसा कहा जाता है कि जब विजय सिंह 8 साल का था, उसे औरंगज़ेब से मिलवाया गया। वह अप्रैल 1696 ईस्वीं में बादशाह के समक्ष प्रस्तुत हुआ था।
उसकी परीक्षा करने के विचार से बादशाह औरंगज़ेब ने उसके दोनों हाथ पकड़कर पूछा, ‘अब तू क्या कर सकता है? विजय सिंह ने बुद्धिमानी का परिचय देते हुए तुरंत उत्तर दिया, ‘अब तो मैं बहुत कुछ कर सकता हूं, क्योंकि जब पुरुष औरत का एक हाथ पकड़ लेता है, तब उस औरत को कुछ अधिकार प्राप्त हो जाता है।
आप जैसे बड़े बादशाह ने तो मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए हैं, अत: मैं तो सब से बढ़कर हो गया हूं।’ उसका उत्तर सुनकर बादशाह औरंगज़ेब प्रसन्न हुआ और उसने कहा कि, ‘यह बालक बड़ा होकर बड़ा होशियार बनेगा। इसका नाम सवाई जयसिंह अर्थात मिर्जा राजा जयसिंह से बढ़कर रखना चाहिए।’ इसके बाद उसका नाम जयसिंह रखा गया और असली नाम विजय सिंह उसके छोटे भाई को दे दिया गया था।
बहादुरशाह प्रथम के विरुद्ध बग़ावत कर बैठे थे जयसिंह
मुग़ल शासक औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद जब उसके साम्राज्य में अव्यवस्था फैल रही थी, तभी जयसिंह द्वितीय का नाम अचानक चमक उठा। उसने बहादुरशाह प्रथम के खिलाफ़ बग़ावत का बिगुल बज़ा दिया था, लेकिन उसकी बग़ावत को दबाते हुए बादशाह ने भी उसे माफ़ कर दिया। बाद में उसे मालवा में और बाद में आगरा में बादशाह का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया था। पेशवा बाजीराव प्रथम के साथ उसके मैत्रीपूर्ण संबंध हुआ करते थे। मुग़ल साम्राज्य के खंडहरों पर ‘हिन्दू पद पादशाही’ की स्थापना के पेशवा के लक्ष्य से उसे उनके प्रति सहानुभूति थी।
महाराजा कई भाषाओं का था अच्छा जानकार
सवाई जयसिंह द्वितीय संस्कृत और फ़ारसी भाषा के बड़ा विद्वान माना जाता था। इसके साथ ही वह गणित और खगोलशास्त्र का असाधारण पंडित था। उसने 1725 ईस्वीं में नक्षत्रों की शुद्ध सारणी बनाई और उसका नाम तत्कालीन मुग़ल सम्राट के नाम पर जीज मुहम्मदशाही नाम रखा। जयसिंह द्वितीय ने ‘जयसिंह कारिका’ नामक ज्योतिष ग्रंथ की भी रचना की थी। सवाई जयसिंह का दिया कोई बड़ा तोहफ़ा है तो वह जयपुर शहर।
सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा आमेर महल से 11 किलोमीटर दूर जयपुर शहर की स्थापना 1727 ईस्वीं में की गई थी। जयपुर का रोडमेप तैयार करने वाला वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य था। नगर निर्माण के हिसाब से पिंक सिंह जयपुर भारत तथा यूरोप में अपने ढंग का एक अनूठा और पूर्ण व्यवस्थित शहर है। जयपुर शहर समकालीन और वतर्मानकालीन विदेशी यात्रियों ने मुक्तकंठ से खूब प्रशंसा की है।
कई क़िले, बावड़ी और वेधशालाओं का कराया था निर्माण
सवाई राजा जयसिंह द्वितीय ने सुदर्शनगढ़ (नाहरगढ़) क़िले का निर्माण करवाया था। उन्होंने जयगढ़ क़िले में ‘जयबाण’ नामक तोप बनवाई। इसके अलावा उन्होंने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और बनारस में पांच वेधशालाओं का निर्माण ग्रह-नक्षत्रादि की गति को जानने के लिए करवाया था। जयपुर के जतंर-मंतर में जय सिंह द्वारा निर्मित ‘सूर्य घड़ी’ है, जिसे ‘सम्राट यंत्र’ के नाम से जाना जाता है, जो दुनिया की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी भी है।
धर्मरक्षक सवाई जयसिंह द्वितीय ने वाजपेय, राजसूय आदि यज्ञों का आयोजन किया था। वह अंतिम हिन्दू नरेश था, जिसने भारतीय परंपरा के अनुसार ‘अश्वमेध यज्ञ’ करवाया था। उल्लेख किए गए इन तमाम कार्यों से सवाई जयसिंह ने बड़ी ख्याति पाई थी। वह शौर्य, बल, कूटनीति और विद्वता के कारण अपने समय का ख्यातनाम शासक बन गया था। लेकिन वह युग के प्रचलित दोषों से ऊपर नहीं उठ सका। आमेर राज्य पर 44 वर्ष तक राज्य करने के बाद 21 सितंबर, 1743 ईस्वीं को सवाई जयसिंह द्वितीय की मृत्यु हो गई। उनके राज्यकाल में गुलाबी नगर जयपुर के रूप में नई राजधानी बनाई गई थी।
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