देश की आस्था के सबसे बड़े पर्व कुंभ का आगाज आज से प्रयागराज में हो गया है। कुंभ की औपचारिक शुरूआत मकर संक्रांति के दिन हुए पवित्र स्नान के साथ हुई। लगभग 49 दिन तक चलने वाले इस मेले शाही स्नान को सबसे अहम माना जाता है। शाही स्नान में कई तरह के अखाड़ों से साधु डुबकी लगाते हैं। शाही स्नान के दौरान एक खास समय पर नदी के पवित्र जल में डुबकी लगाई जाती है।
पहले से तय हो जाती है शाही स्नान की तारीखें
शाही स्नान में जिस नदी के तट पर कुंभ का आयोजन होता है उसके पवित्र जल में तेरह अखाड़ों से आए साधु संत स्नान करते हैं। सभी तेरह अखाड़ों के डुबकी लगाने का समय और तारीख पहले से ही तय कर दी जाती है।
कैसे शुरू हुई शाही स्नान की परंपरा
शाही स्नान का काफी सदियों पुराना इतिहास रहा है। माना जाता है कि शाही स्नान की इस परंपरा की शुरुआत 14वीं से 16वीं के बीच कहीं हुई थी। इस दौरान देश में मुगलों का शासन था। समय बीतता गया और साधुओं के समूह के बीच स्नान के अधिकारों को लेकर कई तरह के संघर्ष होने लगे।
मुगल शासकों ने सभी साधुओं के साथ बैठकर उनको काम और एक खास तरह के झंडे दिए। उसके बाद से आज तक साधु-संतों को सम्मान देने के लिए सबसे पहले डुबकी लगाने का मौका उन्हें दिया जाता है। स्नान के बाद साधुओं का राजसी स्वागत और सरोकार किया जाता है। इसी वजह से इसका नाम शाही स्नान पड़ा।
इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के समय में भी साधुओं के इन अखाड़ों के लिए कई नियम बनाए गए।
कैसे किया जाता है शाही स्नान
शाही स्नान के दौरान कुंभ में सबसे भव्य नजारा होता है। इस समय अपने-अपने अखाड़ों से आए साधु-संत हाथी-घोड़े वाली सोने-चांदी की पालकियों पर बैठकर तट पर पहुंचते हैं। मुहूर्त के अनुसार सभी जोर-जोर से नारे लगाते हुए एक साथ डुबकी लगाते हैं।