राफेल विमान सौदा : कांग्रेस की आस, बीजेपी के गले की फांस

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पिछले कुछ दिनों से चुनावी चर्चा और सियासी हल्कों में सबसे गरमाया हुआ मुद्दा राफेल विमान डील रहा है। आज सुप्रीम कोर्ट ने इस डील को लेकर एक अहम फैसला सुनाया। जहां कोर्ट ने इस मामले में हुई धांधली की जांच की मांग में लगाई गई सारी जनहित याचिकाएं खारिज कर दी। डील पर उठाए गए सभी सवालों को विराम देते हुए सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राफेल विमान की खरीद प्रक्रिया में किसी भी तरह की गड़बड़ी नहीं हुई है।

कोर्ट का फैसला आने के बाद जहां सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा ने राहत की सांस ली है तो कांग्रेस के लिए इसे एक बड़ा झटका माना जा रहा है। अब जब इस मामले में आज अहम फैसले का दिन है ऐसे में हमें यह भी जानना जरूरी है कि राफेल विमान सौदा आखिर है क्या?

राफेल डील क्या है?

सितंबर 2016 में भारत ने 7.87 बिलियन यूरो की रकम के साथ 36 नए राफेल लड़ाकू जेट खरीदने के लिए फ्रांसीसी सरकार के साथ सीधा सौदा किया। भारत को पांच साल पैकेज के अलावा, लड़ाकू की उच्च उपलब्धता सुनिश्चित करने की बात डील में कही गई। वहीं डील में स्केलप मिसाइलों जैसे नवीनतम हथियार देने के बारे में भी कहा गया। भारत ने इस सौदे के लिए 15% रकम का भुगतान कर दिया और जिसकी तीन साल में डिलीवरी शुरू हो जाएगी।

राफेल विमान क्या है?

राफेल एक डबल इंजन वाला मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट होता है, जिसे फ्रेंच कंपनी डासॉल्ट एविएशन द्वारा बनाया जा रहा है। डासॉल्ट का दावा है कि राफेल एक समय में कई काम कर सकता है। इसे ‘ओमनिरोल’ विमानों के रूप में रखा जाता है जो युद्ध में अहम रोल निभाते हैं।

भारत को राफेल जेट की जरूरत क्यों पड़ी?

भारत के पास राफेल के अलावा और भी कई विकल्प थे। कई अंतरराष्ट्रीय विमान निर्माताओं ने भारतीय वायुसेना के सामने उनके विमान लेने की पेशकश रखी थी। सभी पैरामीटर को जांचने के बाद भारतीय वायुसेना ने यूरोफाइटर और राफेल को शॉर्टलिस्ट किया। आखिरकार डसॉल्ट को 126 लड़ाकू विमानों को उपलब्ध कराने के लिए अनुबंध मिला।

खरीद प्रक्रिया की शुरूआत कब हुई?

भारतीय वायु सेना को साल 2001 से ही अपने बेड़े में अतिरिक्त लड़ाकू विमानों की जरूरत थी। उस समय की यूपीए सरकार में रक्षा मंत्री रहे ए के एंटनी के आदेश पर रक्षा अधिग्रहण परिषद ने अगस्त 2007 में 126 विमानों को खरीदने का प्रस्ताव पारित किया।

क्या लागत तय की गई थी ?

राफेल सौदे की शुरुआत में 10.2 अरब डॉलर (5,4000 करोड़ रुपये) की लागत तय की गई थी। 126 विमानों में 18 विमानों को उसी समय लेने और बाद के विमानों को बनाने के लिए उनकी तकनीक भारत को सौंपे जाने की डील हुई थी। लेकिन ऐसा हो ना सका और ये सौदा विवादों में आ गया।

आगे क्या हुआ?

राफेल के लिए बात बीच में अटक गई और जब साल 2013 में मोदी सरकार सत्ता में आई तो उन्होंने इस सौदे के लिए साल 2016 में फिर से नई कीमत और शर्त तय की।

देरी किस वजह से आई?

भारत और फ्रांस दोनों में इस सौदे के दौरान सरकारें बदली। इसके अलावा सबसे मुख्य समस्या लागत को लेकर रही है। राफेल विमान की कीमत करीब 740 करोड़ रुपए है और भारत उनकी डिलीवरी कम से कम 20 फीसदी कम लागत पर चाहता था। डील की शुरूआत में जो 126 जेट खरीदने का कहा गया था वो मोदी सरकार ने घटाकर 36 कर दी।

मोदी सरकार पर क्या आरोप लगे?

अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री मोदी पेरिस दौरे पर थे जहां उन्होंने 36 राफेल खरीदने के फैसले पर मुहर लगा दी और एनडीए सरकार ने इस सौदे पर 2016 में साइन कर दिए। इसके बाद फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांकोइस होलैंड जनवरी में भारत आए और राफेल जेट विमानों की खरीद के लिए 7.8 अरब डॉलर की डील पर साइन किए।

अब विपक्षी दल कांग्रेस को इस पूरे सौदे में विमान की खरीद में घोटाला नजर आता है। कांग्रेस पिछले काफी समय से मोदी सरकार को खरीद प्रक्रिया में गड़बड़ी करने को लेकर घेरा है। उनका कहना है कि इस पूरे सौदे में किसी भी तरह की पारदर्शिता नहीं है।

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