क्या है बोफोर्स घोटाला जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की जांच याचिका खारिज कर दी है

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ बोफोर्स मामले में हिंदुजा भाईयों को निर्वहन के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दायर एक अपील को खारिज कर दिया।

सीबीआई ने अदालत में याचिका दायर की थी कि इस केस की जांच दोबारा की जाए। भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह अपील दायर करने में सीबीआई ने 13 साल लगा दिए।

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शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद माना जा सकता है कि बोफोर्स केस अब दफन हो चुका है। लेकिन फिर भी बीजेपी नेता अजय अग्रवाल द्वारा 2005 में इसी मामले पर याचिका दायर की गई थी जिसकी सुनवाई अभी होनी बाकी है।

क्या है बोफोर्स घोटाला

ये घोटाला स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी से जुड़ा है। बात 24 मार्च 1986 की है, जब हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स से भारत ने 155 मिमी की 400 हॉवित्जर तोपें खरीदी थीं। ये घोटाला इसी सौदे से जुड़ा है। उस वक्त ये सौदा 1437 करोड़ रूपयों में हुआ था।

16 अप्रेल 1987 को इसमें एक मोड़ आया। स्वीडिश रेडियो ने ये खुलासा किया कि इस सौदे के लिए कंपनी ने भारतीय रक्षा अधिकारियों और कई नेताओं को रिश्वत दी थी। इसके बाद सीबीआई ने इसमें एक्शन लिया।

सीबीआई ने 22 जनवरी 1990 को एबी बोफोर्स के अध्यक्ष मार्टिन अर्डबो, कथित बिचौलिए विन चड्ढा और हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत मुकदमा दर्ज किया, जिसमें इन लोगों पर आपराधिक साजिश, फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी का मामला शुरू हुआ।

आपको बता दें कि सीबीआई ने इसको लेकर पहली चार्जशीट 22 अक्टूबर 1999 में पेश की थी। इस चार्जशीट में विन चड्ढा, ओतावियो क्वात्रोची, तत्कालीन रक्षा सचिव एसके भटनागर, मार्टिन अर्डबो और बोफोर्स कंपनी को आरोपित बनाया गया था।

लेकिन इसमें दिल्ली की विशेष सीबीआई अदालत ने इटली के कारोबारी ओतावियो क्वात्रोची को 2011 में बरी कर दिया। इस मामले में 9 अक्टूबर, 2000 को हिंदुजा भाइयों के खिलाफ मामला एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की गई थी।

इस केस की सबसे खास बात यह रही कि 64 करोड़ के घोटाले की जांच करने के लिए कोर्ट ने 200 करोड़ रूपए खर्च कर दिए। उस समय राजीव गांधी का नाम भी फाइलों में रहता था क्योंकि उस वक्त वे ही देश के प्रधानमंत्री के पद पर थे लेकिन उनकी मौत के बाद फाइलों से उनका नाम हटा दिया गया। कहा तो यह भी जाता है कि राजीव गांधी सरकार के पतन का सबसे बड़ा कारण यही था।

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