LoC से 80 किलोमीटर दूर पाकिस्तान में है बालाकोट, जहां भारतीय वायुसेना ने की बमवर्षा

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भारत अधिकृत कश्मीर के पुलवामा ज़िले में बीते 14 फरवरी को सीआरपीएफ़ के एक काफ़िले पर हुए हमले और 40 से ज़्यादा जवानों के शहीद होने के बाद भारत और पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की सरजमीं पर तनाव के हालात बने हुए हैं।

ऐसे में 26 फरवरी की अलसुबह हुई भारतीय वायुसेना की कार्रवाई के बाद भारत का दावा है कि वायुसेना के मिराज लड़ाकू विमानों की बमबारी के बाद आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के कई अहम ठिकानों को नष्ट कर दिया गया है।

इसके इतर पाकिस्तान लगातार यह दावा कर रहा है कि भारत का हवाई हमला सिर्फ एलओसी का उल्लंघन है और कुछ सीनियर पाकिस्तानी पत्रकारों का यह मानना है कि भारत का यह हमला पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में नहीं बल्कि बालाकोट में हुआ है जो कि आजाद कश्मीर (पाकिस्तान का कश्मीर) में नहीं है।

पाकिस्तानी के पत्रकार मुशर्रफ़ ज़ैदी ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि बालाकोट इलाका ख़ैबर पख़्तुनख़्वा में पड़ता है जो कि आज़ाद कश्मीर में नहीं आता है। अगर इस बालाकोट में भारतीय वायुसेना ने हमला किया है तो यह LoC और आज़ाद कश्मीर के भी पार हैं। इसका मतलब भारत ने एलओसी का उल्लंघन ही नहीं बल्कि सीधा पाकिस्तान पर हमला किया है।

हालांकि इस बात पर बहस अभी भी बरकरार है कि भारत ने कौनसे एरिया में हमला किया है।

वहीं ख़ैबर पख़्तुन्ख़्वा के बालाकोट के कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि वहां तड़के बमबारी की आवाज़ें सुनी गई हैं। अगर इस बात की आगे पुष्टि हो जाती है कि ख़ैबर पख़्तुन्ख़्वा के बालाकोट पर ही हमला हुआ है तो यह 1971 के बाद पहली बार भारत का पाकिस्तान पर हमला होगा।

बालाकोट कहां है ?

बालाकोट पाकिस्तान ख़ैबर पख़्तुनख़्वा प्रांत के मनशेरा ज़िले में बसा एक गांव है जो पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से 160 किलोमीटर की दूरी पर है।

बालाकोट जब चर्चा में आया था जब कश्मीर में 2005 में भयंकर भूकंप ने तबाही मचाई थी। 7.6 की तीव्रता से आए इस भूकंप में बालाकोट पूरी तरह से तबाह हो गया था। भूकंप के बाद यहां के आम जनजीवन को फिर से पटरी पर लाने के लिए सऊदी ने काफी आर्थिक मदद की थी।

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पर्यटन के तौर पर देखा जाए तो कुनहर नदी के तट पर बसा बालाकोट बेहद ख़ूबसूरत इलाक़ा माना जाता है। इसके अलावा यहां की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी लोगों को काफी आकर्षित करती है।

शहर का पुराना इतिहास ब्रिटिश काल से पहले दर्ज नहीं है। यहां तक कि बालाकोट में बने पुराने कब्रिस्तान भी मुस्लिम समुदाय की आबादी को काफी समय पहले से यहां दर्ज करवाते हैं।

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